महात्मा गांधी को देश अपने अपने तरीके से याद कर रहा है। तमाम सरकारी और निजी संस्थाएं भी उन्हें नमन कर रही हैं। लेकिन गांधी अपने तमाम रूपों में कलाकारों के लिए भी एक प्रिय पात्र रहे हैं।
लखनऊ ने याद किया जनकवि गोरख पाण्डेय को
लखनऊ, 28 जनवरी। हिन्दी कविता की जो सुदीर्घ परम्परा है, उसकी समकालीन काव्य धारा के शीर्ष पर गोरख पाण्डेय है। एक तरफ उनमें जहां क्रान्तिकारी विचार की गहराई है, वहीं उनका शिल्प इस कदर तराशा हुआ है कि उसका सौदर्य देखते ही बनता है। जहा
दुनिया के मशहूर शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के जन्मदिन के मौक़े पर आगरा और उत्तर भारत की जानी मानी सांस्कृतिक संस्था रंगलीला की ओर से 'जश्न-ए-फ़ैज़ 19' आने वाली 14 फ़रवरी की शाम 'सूरसदन' में होने वाला है। पिछले साल यानी 2018 में भी यह कार्यक्रम बेहद सफल हुआ था। और इस बार भी वैसी ही सजधज, गर्मजोशी और देश भर से आने वाले
दिल्ली के मयूर विहार फेज 1 के आनंद लोक में उनका घर है पूर्वाशा। अब वहां उनके न होने का सन्नाटा पसरा है। बीमार वो लंबे समय से थीं लेकिन आज यानी 25 जनवरी की सुबह उन्होंने हमेशा के लिए विदा ले लिया। अगले महीने 18 तारीख को कृष्णा सोबती 94 की होने वाली थीं, लेकिन उन्हें इस बात से नफ़रत थी कि कोई उन्हें बूढ़ा या बुज़ुर्ग कहे। आखिरी समय तक वो लिखती रहीं, देश के बारे में सोचती रहीं, सियासत क
94 साल की उम्र में कृष्णा सोबती का चले जाना एक युग के खत्म होने जैसा है। बहुत कम लोग जानते हैं कि कृष्णा सोबती ने कुछ कविताएं भी लिखी हैं। कुछ ऐसी कविताएं जिनसे उनके सत्ता और सरकारों के प्रति नाराज़गी भी झलकती है और उनके भीतर छिपी बेचैनी भी दिखती है। उनके उपन्य
बातें अतीत की, विषाद की, सुखद भी !
करीब तीन दशक बाद गत सप्ताह गायकवाड़ी नगर बडौदा (आज बड़ोदरा) प्रवास का मौका मिला| पत्रकार सुरक्षा हेतु राष्ट्रीय कानून को लेकर गुजरात और महाराष्ट्र के दौरे पर गया थ
भारतीय कला और लोक संस्कृति के विभिन्न आयामों को आगे बढ़ाने और कलाकारों को मंच देने के काम में जुटा किरण नादर म्युजियम ऑफ आर्ट (केएनएमए) फरवरी में तीन दिनों का चित्रकला महोत्सव करने जा रहा है। दिल्ली के साकेत में म्युजियम के परिसर में होने जा रहे इस महोत्सव में देश भर की लोक और आदिवासी कलाओं क
भारत में ग्रैफिटी कला अब एक नए रूप में सामने आ रही है। ग्रैफिटी यानी दीवारों पर बनाए जाने वाले विशाल चित्रों की श्रृंखलाएं या किसी थीम पर की जाने वाली वॉल पेंटिंग। इसकी झलक आपको दिल्ली और दूसरे महानगरों में तो मिल ही जाएगी, लेकिन अब सरकारी विकास की तमाम इबारतों में अब ग्रैफिटी आर्ट का इस्तेमाल एक नई परंपरा की तरह देखने में आ रही है। नोएडा के तमाम अंडरपास हों, मेट्रो के तमा
कुंभ आपने पहले भी देखा होगा। इसके बारे में सुना होगा। तस्वीरों में और चैनलों पर देखा होगा। हर 12 साल में लगने वाले कुंभ की खासियत के बारे में जाना होगा। 2013 में पूर्ण कुंभ का नज़ारा भी देखा होगा और इस बार के अर्धकुंभ की शानदार झलक भी देख रहे होंगे। देश की संस्कृति का एक बेहतरीन आयाम देखने को मिलता है इस महाआयोजन में। इस बार उत्तर प्रदेश सरकार और यहां तक कि क
वरिष्ठ पत्रकार श्रीचंद्र कुमार पिछले दिनों पश्चिम बंगाल के कुछ तीर्थ और पर्यटन स्थलों पर गए। मुख्य रूप से उनका मकसद गंगा सागर जाना था और वो वहां गए भी। लेकिन वहां जाने से पहले उन्होंने कई और धार्मिक स्थलों को घुमक्कड़ी और पत्रकार वाले अंदाज़ में देखा। पहले वो बंगाल के बीरभूम जिले के मशहूर तीर्थ तारापीठ गए फिर कोलकाता के शक्तिपीठ यानी काली मंदि