भारतीय संस्कृति की प्रखर प्रवक्ता थीं कपिला जी…
आज जिस इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के सदस्य सचिव के तौर पर डॉ सच्चिदानंद जोशी के कंधे पर संस्कृति के इस विशाल केन्द्र की जिम्मेदारी है, वह केन्द्र अगर बना तो उसके पीछे कपिला वात्स्यायन की दूरदृष्टि थी। कपिला जी इसके संस्थापकों में रहीं और जोशी जी उनकी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। जोशी जी ने जो बेहतरीन काम किया वो ये कि उन्होंने कपिला जी को पूरा सम्मान दिया और इस संस्था को बड़े मनोयोग से संस्कृति और कला की इस विरासत को आगे बढ़ाया। कपिला जी का जाना डॉ जोशी को गहराई तक उद्वेलित कर गया जिसे उन्होंने सोशल मीडिया के जरिये शेयर किया…
जब चार साल पहले पहली बार IGNCA की सीढ़ियां चढ़ रहा था तो मन मे उत्साह तो था साथ ही संकोच भी था। उस संस्था में काम करना जिसकी स्थापना विदुषी कपिला वात्सायन जी ने की है। उस संस्था में काम करना जिसके कण कण का सृजन कपिला जी की कल्पना से हुआ हो। इन संस्थान की कल्पना और इसके विस्तार को समझने में ही काफी दिन लग गए। चुनोती थी कि जो उच्च मानदंड उन्होंने स्थापित किये है उनके अनुरूप आगे काम को ले जाना।
इसलिए IGNCA में काम शुरू करने के बाद उनसे पहली मुलाकात करने में कुछ दिन का समय लिया। सोचा कि पहले कुछ जान समझ लूँ फिर जाऊंगा। वैसे कपिला जी से भोपाल में एकाधिक बार मिलना हुआ था जब वे “रंगश्री लिटिल बैले ट्रुप ” की ट्रस्ट की बैठकों में आती थी। उनके साथ उस ट्रस्ट में सदस्य होने का भी सौभाग्य मिला। लेकिन तब उनसे बहुत बात करने की हिम्मत नही होती थी। हम लोग बस उनकी , मेरे गुरु प्रभात दा की और गुल दी की गप्पो और नोंक झोंक का आनंद लिया करते थे। मन मे ये भी शंका थी कि क्या कपिला जी उन मुलाकातों को याद रख पायी होंगी।
लेकिन जब उनसे मुलाकात हुई तो उनकी आत्मीयता और स्नेह ने संकोच के सारे बंध धराशायी कर दिए। आश्चर्य की बात थी कि उन्हें भोपाल में हुई मुलाकातें याद थीं और सारे संदर्भ भी। प्रभात दा की याद करते समय वो थोड़ी दुखी भी हुई थी। पहली मुलाकात न्यास के अध्यक्ष आदरणीय श्री राम बहादुर राय जी के साथ हुई थी। उस दिन उन्होंने चलते चलते कहा था “एक दिन और आना फिर बात करेंगे। “
उसके कुछ दिन बाद जब “बौधायन श्रोत सूत्र” के खंड छप कर आये तो विचार आया उसकी पहली प्रतियां कपिला जी को प्रस्तुत की जाएं। उस दिन उनसे ढेर सारी बातें हुईं। आश्चर्य था कि उन्हें संस्था की गतिविधियों की जानकारी थी और वे उससे संतुष्ट दिखीं।
उसके बाद मुलाकातों का सिलसिला जारी रहा। कभी IGNCA में तो कभी IIC में। मुझे याद है IIC में गोविंदचंद पांडे जी स्मृति में आयोजित व्याख्यान में वे आकर पीछे बैठ गयी। मेरा व्याख्यान था। उन्हें ऑडियंस में देखकर हाथ पांव फूलना स्वाभाविक था। गनीमत कि व्याख्यान ठीक ठाक हो गया और उन्होंने स्नेहपूर्ण आशीर्वाद दिया। बेटे के विवाह के अवसर पर बच्चों को आशीर्वाद देने वे खराब स्वास्थ्य के बावजूद आयीं।
उनके ग्रंथ संग्रह को उन्होंने IGNCA को दिया था। जब उस कक्ष का शुभारंभ हुआ उस दिन भी वे बहुत प्रसन्न थी।
भारतीय संस्कृति को देखने की जो दृष्टि कपिला जी ने विकसित की थी वह अद्भुत थी। वह भारतीय संस्कृति के अध्ययन को सिर्फ अतीतजीवी होने से बचाती हुई , वर्तमान का बोध करते हुए भविष्योन्मुखी बनाने में सक्षम थी। इसलिए उनका लक्ष्य था श्रेष्ठतम संदर्भो का निर्माण। वे लगातार कार्य करती अपने उसी लक्ष्य को पूरा करने में जुटी रही। आयु के इस दौर में भी उन्हें लगातार काम करते देखना प्रेरणा देने वाला था।
उन्होंने स्वामी विवेकानंद की तरह सदा अपने कार्यो का श्रेय अपने गुरु श्री वासुदेव शरण अग्रवाल जी को दिया।
आज हमने भारतीय संस्कृति की एक प्रखर प्रवक्ता को खो दिया है। लेकिन विश्वास है कि अपनी बहुमूल्य कृतियों और उन तमाम संस्थाओं जिनका निर्माण उन्होंने किया है के रूप में वे सदा हमारे बीच रहेंगी और हमे प्रेरणा देती रहेंगी।
Posted Date:

September 16, 2020

5:04 pm
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