हमारा देश धरोहरों का देश है। यहां का इतिहास बेहद समृद्ध है। कई कालखंडों से गुज़रते हुए आज हम जिस आधुनिक भारत में रह रहे हैं, उसके पीछे कई लंबी कहानियां हैं। जब हम देश के तमाम हिस्सों में बने किलों को देखते हैं तो हर किले की दर-ओ- दीवार कुछ न कुछ कहती है। मुगलकालीन कला हो या मोहन जोदड़ो – हड़प्पा के ज़माने की संस्कृति, महाभारत काल के अवशेष हों या फिर बौद्धकालीन धरोहर, अंग्रेज़ों के ज़माने की इमारतें हों या फिर इतिहास की ऐसी तमाम हस्तियों की यादगार जगहें – आप देश के किसी हिस्से से गुज़र जाएं, कोई न कोई ऐसी धरोहर आपको ज़रूर मिल जाएगी। बेशक इन धरोहरों का हाल जैसा भी हो, इनके संरक्षण के नाम पर भले ही कोई खास कोशिश न हो रही हो, लेकिन इनके पीछे का लंबा इतिहास है जो हमारी आज की संस्कृति के साथ जुड़ता है। ऐसी तमाम धरोहरों पर हमारी नज़र रहेगी और कोशिश होगी कि इन्हें आपके बीच लाया जाए…


धरोहर
सब्ज बुर्ज़ : नीली छतरी हरा नाम
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July 7, 2020

अकबर के दरबार में रहीम मीर अर्ज थे। वही अब्दुर रहीम खानखाना जो हिंदी साहित्य में अपने नीति दोहों की वजह से बड़ा ही सम्मानजनक स्थान रखते हैं। इन रहीम के सेवक थे फहीम खान। फहीम खान बहुत चर्चित नहीं हैं मगर एक वजह से उनका नाम इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गया। दिल्ली के निजामुद्दीन वेस्ट में सब्जबुर्ज नाम से एक चार सदी पुरानी इमारत है।

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रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय…
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June 10, 2020

अब्दुर रहीम खान-ए-खाना के मकबरे की रेलिंग पर टंगे फटे फ्लैक्स पर उनका यह दोहा हवा के हर झौंके पर फड़फड़ाता है। कोरोना के संकट से घिरे देश में जहां हर सार्वजनिक स्थल और दुकानों के बाहर मोटी-मोटी रस्सियां बंधी हैं, प्रेम का यह फड़फड़ाता धागा शायद ही किसी का ध्यान खींचता है।

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बनारस: शिव की नगरी में 56 विनायक…
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April 16, 2020

जब कोई संवेदनशील पत्रकार किसी शहर में जाता है तो वहां की संस्कृति, परंपराओं, धरोहरों और इतिहास को समझने की कोशिश ज़रूर करता है। सुधीर राघव ऐसे ही पत्रकार हैं। अमर उजाला में समाचार संपादक रहते हुए वह कई शहरों में रहे। सबसे कम वक्त बिताया बनारस यानी शिव की नगरी काशी में। लेकिन इन चंद महीनों में भी उन्होंने वहां के तमाम पहलुओं को तलाशा । बनारस के बारे में वैसे तो बहुत कुछ लिखा जाता रहा

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कोणार्क के सूर्य मंदिर को देखिए-समझिए…
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April 9, 2020

प्रभात सिंह एक बेहतरीन फोटोग्राफर हैं, कला-संस्कृति-इतिहास-पुरातत्व में खासी दिलचस्पी रखते हैं। उनकी वेबसाइट पर तमाम पठनीय चीजें आपको मिल जाएंगी। उनमें से कुछ हम 7 रंग के पाठकों के लिए लाते रहेंगे। फिलहाल प्रभात सिंह का यह फोटो फीचर देखिए जो उन्होंने उड़ीसा के मशहूर कोणार्क के सूर्य मंदिर में घूमते हुए अपने कैमरे में कैद किया है

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चलिए उदयपुर का सिटी पैलेस और कुंभलगढ़ फोर्ट
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March 16, 2020

हमारे साथी और वरिष्ठ पत्रकार पिछले दिनों उदयपुर और कुंभलगढ़ घूमकर आए... उनकी नज़र में उदयपुर के सिटी पैलेस और कुंभलगढ़ के ऐतिहासिक किले के फर्क को आप भी समझिए... क्यों हमारा पुरातत्व विभाग अपनी धरोहरों की ठीक तरह से देखभाल नहीं कर पाता और क्यों आज भी शाही खानदान की बदौलत उदयपुर का सिटी पैलेस जगमगाता रहता है...

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आप बनारस के मणिकर्णिका कुंड के बारे में जानते हैं?
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February 6, 2019

वरिष्ठ पत्रकार सुधीर राघव किसी भी शहर में रहते हैं, वहां के इतिहास को तलाशने की कोशिश ज़रूर करते हैं। आप उनके ब्लॉग sudhirraghav.blogspot.com में उनके कई ऐसे आलेख पढ़ सकते हैं और कई जगहों के बारे में जान समझ सकते हैं। फिलहाल कुछ महीनों से सुधीर राघव काशी नगरी यानी वाराणसी में हैं। घुमक्कड़ी की उनकी आदत है, सो वहां के तमाम दुर्लभ और चर्चित जगहों का इतिहास तलाश रहे हैं। इस आलेख में उन्होंने बनारस के मण

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कैमरे में उतरा चिकनकारी का दर्द…
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January 14, 2019

लखनऊ की मशहूर चिकनकारी को दुनिया भर में पहचान मिली है लेकिन चिकन के काम में लगे कलाकारों के जीवन और उनके दर्द को कोई नहीं जानता। हज़ारों हुनरमंद हाथ आज किस तरह अपना जीवन काटते हैं और कैसे उनके हुनर को बड़े व्यवसायी अपने लिए इस्तेमाल करते हैं.. इस पूरी यात्रा को एक युवा फोटोग्राफर अविरल सेन सक्सेना ने अपने कैमरे में बहुत करीब से देखा है।

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लुम्बिनी – एक खूबसूरत पर्यटक स्थल
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December 1, 2018

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हमारी संस्कृति की खास पहचान हैं भील जनजाति
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November 12, 2017

भारतीय जनजातियों में भील जनसंख्या के नज़रिए से दूसरे स्थान पर आते हैं। मध्य प्रदेश में भी गोंड जनजाति के बाद भील जनजाति जनसंख्या के आधार पर दूसरे स्थान पर है। श्याम रंग, छोटा-मध्यम कद, गठीला शरीर और लाल आंखें, यह सब इनकी शारीरिक रचना है। लेकिन इन्हें देखकर कोई भी इनके इतिहास के बारे अंदाज़ा नहीं लगा सकता। पर... ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर इनका वजूद कुछ अलग ही दृष्टिकोण से देखा जा सकता है। भ

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क्या आपको बाइस्कोप की याद है?
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October 25, 2017

सत्तर और अस्सी के दशक तक गांव -गांव 'बाइस्कोप' वाले खूब दिखते थे और उनके पूरे परिवार का पेट इसकी कमाई से चल जाता था । कालान्तर में टीवी, इंटरनेट, डीवीडी - सीडी , मोबाइल फोन आदि ने 'बाइस्कोप' का क्रेज प्रायः खत्म ही कर दिया। ' बाइस्कोप ' वालों ने शहर छोड़ दूर - दराज गांवों का रुख करना शुरू किया, लेकिन वहां भी उन्हें देखने वाले मुश्किल से मिलते हैं।

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