मजाज़ की ख़ूबसूरत, पुरसोज़ शायरी के पहले भी सभी दीवाने थे। इतने सालों बाद भी यह दीवानगी क़ायम है. मजाज़ सरापा मुहब्बत थे. तिस पर उनकी शख़्सियत भी दिलनवाज़ थी. सुरीली आवाज़ और पुरकशिश तरन्नुम में नज़्म पढ़ते तो बस उनकी आवाज़ महसूस की जाती, उनका क़लाम सुना जाता. सामयीन उनकी नज़्मों में डूब जाते. बाज़ आलोचक उन्हें उर्दू का कीट्स कहते थे, तो फ़िराक़ गोरखपुरी की नज़र में, ‘‘अल्फ़ाज़ के इंतख़ाब और संप्रेषण के लिहाज से मजाज़, फ़ैज़ के बजाय ज्यादा ताक़तवर शायर थे.’’19 अक्टूबर को बाराबंकी में रुदौली के एक ज़मींदार परिवार में जन्में मजाज़ यानी असरार उल हक़ के वालिद सिराज़ उल हक थे। वह दौर इंकलाब का था, शायरी का था.. असरार को पढञा लिखा कर वालिद साहब ने इंजीनियर बनाना चाहा लेकिन जनाब बन गए शायर... क्या था मजाज़ का मिजाज़..उनके जन्मदिन पर खास पेशकश...
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