मशहूर कथक नृत्यांगना पद्मश्री शोवना नारायण ने लॉकडाउन के दौरान कथक को कई नए आयाम देने और ज्यादा से ज्यादा बच्चों और युवाओं तक कथक को पहुंचाने का अभियान चलाया है। सूरज की पहली किरण के साथ उनके पैर थिरकने लगते हैं और देर रात तक डिजिटल क्लास के
मोहब्बत और इंसानियत को सबसे बड़ा मज़हब मानते रहे ऋषि कपूर
बॉलीवुड ही नहीं पूरा देश सदमे में है। आखिर ये क्या हो रहा है। इरफ़ान के जाने का ग़म और अब बेहद ज़िंदादिल ऋषि कपूर के ऐसे चले जाने का सदमा। एक ऐसे कलाकार जिसकी सूरत में एक मुस्क
इरफान खान का जाना एक सदमे की तरह है। महज 53 साल की उम्र में इस कलाकार ने अपने संघर्षों और खास अंदाज़ की वजह से अपनी जगह बनाई। बॉलीवुड के साथ साथ करोड़ों दर्शकों के दिलों में अपनी छाप छोड़ी। बिंदास अंदाज़ में ज़िंदगी को लेने वाले और बेहद संवेदन
देख तमाशा दुनिया का...
बहुत दिनों से प्रिंट मीडिया का चेहरा सलीके से नहीं देखा था। दिन निकलते ही खबरिया चैनल अपने पिटे पिटाये अंदाज़
उषा गांगुली का गुज़र जाना रंगमंच के लिए आखिर क्यों इतना बड़ा शून्य पैदा करता है.. दरअसल उषा जी उन सुलझी हुई रंगकर्मियों में रही थीं जिन्होंने रंगकर्म को सामयिक संदर्भों में जोड़ने के साथ ही समाज और सियासत को भी बेहद बारीकी से देखा, समझा। दिसंबर 2018 में नव
-- जय नारायण प्रसाद
जय नारायण प्रसाद जाने माने पत्रकार रहे हैं, रंगमंच और कला-संस्कृति में उनकी खासी दिलचस्पी रही है। जनसत्ता से रिटायर होने के बाद वो लगातार कला-संस्कृति पर संवतंत्र लेखन कर रहे हैं। उषा गांगुली के साथ जय नारायण प्रसाद की कई मुलाकातें हैं। फिलहाल उषा जी की याद में उनका लिखा ये आलेख
पश्चिम बंगाल में हिन्दी रंगमंच को स्थापित करने वाली और अपने रंगकर्म से देश और दुनिया में खास मुकाम बनाने वाली उषा गांगुली अब नहीं रहीं। उनका जाना तमाम संस्कृतिकर्मियों और रंगमंच से जुड़े लोगों के भीतर एक गहरा सूनापन छोड़ गया है। सोशल मीडिया और खासकर फेसबुक पर उषा जी को करीब से जानने वाले, उनके रंगकर्म को समझने वालों ने अपने अपने तरीके से लि
यूरोपीय धरती से निकले ओपेरा, बैले, सिम्फ़नी और फ़्लेमिंको विशुद्ध शास्त्रीय हैं. पर बेहद लोकप्रिय हैं. और इनमें से कुछ भी देख रहे हों तो दर्शक सहज रूप से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं, अक्सर भावुक हो जाते हैं और आत्मविभोरता में रोंगटे खड़े हो जाते हैं. ठीक
एक संवेदनशील चित्रकार कैसे एक बेहतरीन फिल्मकार बन सकता है, सत्यजित राय इसके अद्भुत मिसाल हैं। उन्हें गुज़रे 18 साल हो गए... आने वाली 2 मई से उनके जन्म शताब्दी वर्ष की शुरुआत हो जाएगी। आज उन्हें याद करते हुए ये सोचने को हम बरबस मजबूर हो जाते हैं क
कायस्थों का खाना-पीना (छठी कड़ी)
अब बात पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में रहने वाले कायस्थों की बात करते है. जिनके खानों में बहुत समानता देखने को मिलती है. गंगा, यमुना और गोमती जैसी नदियों से उर्वर होने वाले इस इलाके में प्रचुर मात्रा में कृषि है. उपजने वाले तरह तरह की सब्जिया