उषा गांगुली का जाना और रंगमंच का सूनापन…

पश्चिम बंगाल में हिन्दी रंगमंच को स्थापित करने वाली और अपने रंगकर्म से देश और दुनिया में खास मुकाम बनाने वाली उषा गांगुली अब नहीं रहीं। उनका जाना तमाम संस्कृतिकर्मियों और रंगमंच से जुड़े लोगों के भीतर एक गहरा सूनापन छोड़ गया है। सोशल मीडिया और खासकर फेसबुक पर उषा जी को करीब से जानने वाले, उनके रंगकर्म को समझने वालों ने अपने अपने तरीके से लिखा, उन्हें याद किया। 7 रंग परिवार उषा जी को अपनी श्रद्धांजलि देता है और उन लोगों के अनुभवों को साझा कर रहा है जिन्होंने उषा जी के रंगकर्म को समझा और महसूस किया…

जाने माने पत्रकार और लेखक आनंद भारती लिखते हैं…

‘मशहूर रंगकर्मी उषा गांगुली का जाना निश्चित रूप में कला की दुनिया को ही नहीं, मनुष्यता को बचाने की लड़ाई में शामिल लोगों को आहत कर गया है…चार दिन पहले ही ‘परिकथा’ पत्रिका के एक पुराने अंक में प्रकाशित उनका साक्षात्कार पढ़ रहा था… और साहित्यकार चित्रा मुद्गल जी की वर्धा में कही बातों को याद कर रहा था. चित्रा जी ने कहा था, ‘अगर उषा पैसे के पीछे भागती तो यह उषा नहीं रह पाती जो आज है…उसने न तो कभी बाजार की तरफ देखा और न कभी अत्याधुनिक जीवन-शैली की ओर भागी…साधारण जीवन जीना, उसका आप्त-दर्शन था…’ मेरी सीधी मुलाकात उषा जी से नहीं हुई लेकिन देखा जरुर था…
उषा जी ने परिकथा में जो बातें कही थी, उन्हें उद्धृत करना आज जरुरी लग रहा है…
“… जो थियेटर को छोड़कर फिल्म और टीवी सीरियलों में चले गए हैं, उनकी बात अलग है लेकिन जो लोग थियेटरों में नाटक मंचन करते हैं, उनको आप कभी भी साबुन, तेल, चॉकलेट, क्रीम, सोने की चेन बेचते नहीं पाएंगे. क्योंकि थियेटर की दुनिया अलग है. वह बाजार को कभी महत्व नहीं देता. उसकी भूरी-भूरी प्रशंसा नहीं करता इसीलिए बाजार भी नाटककारों को नहीं अपनाता है. हम नाटक में समाज की बात करते हैं, परिवार की, नैतिक रिश्तों की बात करते हैं, राष्ट्र की बात करते हैं. बाजार के खिलाफ बात करते हैं, मनुष्यता की बात करते हैं… ऐसी परिस्थितियों में हम बाजार के साथ कैसे समझौता कर सकते हैं?… ”
“ … व्यवस्था का, सत्ता पक्ष का विरोध करने का अपना अलग-अलग तरीका होता है. हम अपनी रचनाओं और प्रस्तुति के माध्यम से विरोध करते हैं… हमलोग कोई राजनीतिक पार्टी या दल नहीं हैं, सांस्कृतिक दल हैं. मैं हमेशा से सत्ता के गलत फैसलों का विरोध करती रही हूं और मानवीयता से जुड़ी रही हूं. वैसे भी नाटक का मतलब ही होता मानवीय सरोकारों को अपनाना…”

बेहद संवेदनशील और कला-संस्कृति की दुनिया को बेहद गहराई से महसूस करने वाली कवि-पत्रकार तृप्ति ने उषा गांगुली को कुछ इस तरह याद किया…

‘हां! यही चेहरा था जिसे पहली बार उस दिन तस्वीरों से बाहर अपने सामने देख रही थी।#उषा_गांगुली! सौम्य और आकर्षक , प्रभावशाली लेकिन साधारण। भारतीय रंगमंच की शीर्षस्थ निर्देशकों में से एक।
कल वे नहीं रहीं।सब नाटक खेले जा चुके थे शायद। इसलिए इस रंगमंच से विदा तो होना ही था!
लेकिन यह खबर उदास कर देने वाली है।वे लोग जो अपनी कार्य सिद्धियों के कारण बड़ी ऊंची पीठिका पर प्रतिष्ठित हों लेकिन आप से मिलते समय वे
उस ऊंचाई का एहसास न होने दें तो फिर स्मृतियों में एक महीन रजत रेख से खिंचे रह जाते हैं।
मुझे याद पड़ता है उनसे तीन बार भेंट हुई–दो बार #लखनऊ में और एक बार #जयपुर में। वे अपनी रंग टोली #रंगकर्मी के साथ नाटृय समारोह के लिए आई थीं।हठात् सब बातें याद भी नहीं आ रही हैं।
उनके नाटक #लोक_गाथा और #होली के रिहर्सल मे भी उन्हें देखा।उनके दल के सशक्त अभिनेता #अशोक_सिंह के साथ कुछ ज्यादा वक्त गुज़ार सकी थी। #अशोक_सिंह को #दूरदर्शन_धारावाहिक #गणदेवता के क्रूर ज़मींदार के रुप में अच्छी पहचान मिली थी।उनका एक पत्र और खींची हुई तस्वीरें अब भी पुराने कागज़ों में कहीं दबी पड़ी होंगी।शायद नाटक के भी कुछ चित्र..
एक दो और कलाकारों से अच्छा परिचय हुआ पर फिर जीवन की अस्थिरता में जाने कितनी चीजें जाने कहां कहां छूट जाती हैं।
फिर कोई दिन होता है जब जाने कब – कब का क्या- क्या याद आ जाता है ! ये 1987
से मई 1995 के बीच की स्मृतियां हैं। ठीक ठीक तारीखें याद आ जाएं तो भी क्या फर्क पड़ जाएगा।
उषा गांगुली तो नहीं रहीं!

मशहूर रंगकर्मी और अस्मिता थिएटर ग्रुप के संस्थापक अरविंद गौड़ ने उषा जी से बहुत सीखा, अरविंद गौड़ के लिए उषा जी का जाना एक सदमे की तरह है…

वरिष्ठ निर्देशक, अभिनेत्री और सामाजिक कार्यकर्ता उषा गांगुली को अंतिम सलाम। लगभग 32 सालों से उनका स्नेह और अपनापन मुझे मिलता रहा। उषा जी ने ‘रंगकर्मी नाट्य संस्था’ के साथ 44 साल लगातार दिन रात सिर्फ थियेटर किया, जिया और अब अचानक नेपथ्य में चली गई। जब खबर आई तब विश्वास नहीं हुआ। उन्हें बार बार फोन किया। पर बिजी आया। अभी अभी उनके फोन पर किसी ओर से बात हुई। आमतौर पर तुरंत फोन उठाने वाली उषा जी अब हमेशा के लिए फोन नहीं उठाएगी। उषा जी ने भारतीय रंगमंच की दुनिया में एक महत्वपूर्ण और अद्भुत भूमिका निभाई। उनके नाटकों ने बंगाल और देशभर में जनपक्षीय नाटकों की नई जमीन तैयार की। उनका जाना, मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है। उषा जी आपको विनम्र श्रद्धांजलि। सादर नमन।

Posted Date:

April 24, 2020

9:24 pm Tags: , , , , , , ,
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