झूमते इठलाते, खुशबू बिखेरते, अपनी खूबसूरती से सबको लुभाते इन फूलों की बात ही कुछ और है। ये फूल कहीं और होते तो आम होते, लेकिन देश के महामहिम के विशाल अहाते में इनकी अदा ही कुछ और है, यहां ये इतने खास हैं कि इन्हें देखने लाखों लोग आते हैं। फूलों को तो कम लेकिन महामहिम के बेहतरीन राष्ट्रपति भवन को एकदम करीब से देखने के उत्साह और कौतूहल से लबरेज़ होकर ज्यादा। इस बार मुगल गार्डन आम लोगों के
हमारे गणतंत्र की अपनी खासियत है। हमारे शौर्य, ताकत और विकास की कहानी के साथ साथ हमारी संस्कृति के तमाम रंगों से मिलकर बनता है हमारा गणतंत्र। हर साल 26 जनवरी को राजपथ पर इसकी झलक मिलती है। चाहे वो अलग अलग राज्यों की सांस्कृतिक झांकियां हों या फिर अलग अलग मंत्रालयों और विभागों के ज़रिये देश के विकास की कहानी - गणतंत्र दिवस परेड के दौरान 90 मिनट में ये बेहतरीन नजारे किसी भी देशवासी के भीत
(हरीश नवल जी के फेसबुक वॉल से) 'पृथ्वी थियेटर' के संरक्षक स्वर्गीय शशि कपूर नहीं रहे.. यह समाचार आहत कर गया..अरसे से वे बहुत अस्वस्थ थे लेकिन थे.... ...सन १९८४ में मुझे उनके साथ कुछ दिन बिताने का सौभाग्य मिला था। मैं 'पृथ्वी थियेटर' संदर्भित शोध पत्र तैयार कर रहा था ...हम रोज़ 'कौशल्या कोटेज'में मिलते थे जहाँ शशि कपूर जी की शूटिंग चल रही थे ...उनके साथ तनुजा और नीलू फूले भी दृश्यों में थे ..
कोई वाद नहीं, फिर भी असली जनवादी कुंवर नारायण बेशक 90 साल के हो गए हों, बीमार भी रहे हों, लेकिन उनका चले जाना कई स्मृतियों को फिर से ताजा कर गया। लखनऊ में हुई उनसे एकाध मुलाकातें और कुछ समारोहों में उनकी बेहद संज़ीदा और सरल उपस्थिति। वो किसी वाद के शिकार नहीं थे फिर भी वो जनवादी थे। वो किसी विचारधारा में बंधे नहीं थे लेकिन लिखने में वो आपके बेहद करीब खड़े दिखते थे, एकदम हमारे आ
नहीं रहे मनुष्यता के लेखक मनु शर्मा ♦ आलोक श्रीवास्तव साल 2005, जुलाई की कोई तारीख़. भोपाल की प्रिंट पत्रकारिता से सीधे दिल्ली आया था. वो भी टीवी पत्रकारिता में. जीवन में इस बड़े बदलाव का श्रेय वरिष्ठ पत्रकार और अग्रज हेमंत शर्मा जी को जाता है. वही लाए थे भोपाल से दिल्ली. विदिशा जैसे छोटे से नगर का युवा पहली बार दिल्ली में न्यूज़ टीवी चैनल का भव्य और सुसज्जित दफ
कृष्ण को समझना है तो मनु शर्मा का उपन्यास 'कृष्ण की आत्मकथा' पढ़िए जाने माने साहित्यकार मनु शर्मा अपने पीछे साहित्य की एक ऐतिहासिक विरासत छोड़कर पंचतत्व में विलीन हो गए। वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर उन्हें अंतिम विदाई देने वालों की आंखें नम थीं। पद्मश्री मनु शर्मा को पौराणिक कथाओं और पात्रों को आधुनिक संदर्भ में उपन्यासों-कहानियों के जरिए जीवंत करने वा