जाने माने पत्रकार और दिनमान के शुरुआती दिनों से ही अज्ञेय, रघुवीर सहाय और सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जैसे साहित्यकारों के साथ काम करने वाले त्रिलोक दीप आज भी जब उन दिनों की याद करते हैं तो मानो वो सारी तस्वीरें सजीव हो जाती हैं। त्रिलोक जी ने 7 रंग से फोन पर अपने अनुभव साझा किए जिसे हम उनकी आवाज़ में पेश कर रहे हैं... साथ ही उन्होंने अपने फेसबुक पर उन दिनों के बारे में और
जाने माने रंगकर्मी और अपने दौर के जबरदस्त नाटककार हबीब तनवीर पर बहुत कुछ लिखा जाता रहा है... उनके नाटकों पर, उनके व्यक्तित्व पर और कभी समझौता न करने वाले उनके मिजाज़ पर। उनके जन्मदिन और पुण्यतिथि पर उन्हें रंगकर्मी अपने अपने तरीके से याद करते हैं... कोई उनके तमाम नाटकों की बात करता है, कोई उनके सामाजिक सरोकार को याद करता है तो कोई नाटकों के प्रति उनके समर्पण के बारे में ब
देख तमाशा दुनिया का....आलोक यात्री की कलम से
"अकल बड़ी या भैंस?" यह जुमला आपने भी अक्सर सुना होगा। दुनिया के तमाम सियाने आज तक इस सवाल का जवाब नहीं तलाश पाए। आए दिन हमारे सामने कई ऐसे मसले आते हैं जो अटकल लगाने पर मजबूर कर देते हैं कि अकल बड़ी या भैंस? अब ताजा म
आज भी बहुत प्रासंगिक हैं आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी....उनकी रचनाओं में सांस्कृतिक-साहित्यिक अभिव्यक्तियों के तमाम आयाम हैं...-- प्रेरणा मिश्रारजनी–दिन नित्य चला ही किया मैं अनंत की गोद में खेला हुआ
कभी चांद की तरह टपकीकभी राह में पड़ी पाईकभी छींख की तरह खनकीकभी जेब से निकल आईअट्ठनी- सी जिंदगीये जिन्दगी…
वैसे तो सब इन्हें इनके मशहूर नाम 'गुलज़ार साहब' के नाम से जानते हैं पर इनका असली नाम
सुर मानो ठहर गए हों... संगीत खामोश हो गया हो... उनकी गायिकी अब महज़ यादों और अथाह संगीत अल्बमों में रह गई है.. अब हम उन्हें कभी लाइव नहीं सुन पाएंगे... पंडित जसराज चले गए... मेवाती घराने की आवाज़ थम गई...90 साल के पंडित जसराज ने अमेरिकी के न्यू जर्सी में सबको हमेशा के लिए अलविदा कह गए... कोराना काल में वैसे भी लगातार ऐसी दुखद और मनहूस खबरें आ रही हैं... पंडित जी भी इसी कतार में शामिल हो गए... बहुत दूर चल
पलक प्रकाश महज़ 12-13 साल की है। पिछले कई सालों से पेंसिल, आर्ट पेपर, कलर पेंसिल और तरह तरह के रंगों से खेलती है। मुंबई में रहती है। जब एकदम छोटी सी थी तब भी रेखाएं और रंग उसके लिए अपनी अभिव्यक्ति के सबसे कारगर माध्यम थे। धीरे धीरे उसने खुद को कला के क्षेत्र में केन्द्रित किया। रोज़ कुछ न कुछ बनाने लगी। कोई ट्रेनिंग नहीं ली, कहीं से कुछ सीखा नहीं। कल्पनाओं की उसकी अपनी दुनिया है और हमेशा ह
उनका जाना बेशक मौजूदा दौर में शायरी की दुनिया में एक बहुत बड़े शून्य की तरह है... राहत इंदौरी साहब की अपनी खास अदा थी, पढ़ने का खास अंदाज़ था.. लेकिन जब वो पढ़ते थे तो बहुत सारे दर्द भी छलकते थे और ज़िंदगी की हकीक़त भी बयां होती थी.. क
भारतीय रंगमंच के पुरोधा कहे जाने वाले इब्राहिम अल्काज़ी ने रंगमंच की दुनिया को क्या क्या दिया, उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के निदेशक के तौर पर क्या क्या किया, एनएसडी जैसे बड़े फलक को संभालते हुए कैसे वो आधुनिक भारतीय रंगमंच के सम्राट बन गए और क्यों उन्हें रंगमंच के 'त