इन आखिरी सांसों में अटल जी के पीछे का पूरा अतीत है... जीवन की जंग है... अस्पताल का वेंटिलेटर है.. कृत्रिम सांसें हैं ... लेकिन अब एक एक पल भारी है... 7 रंग ने अटल जी को हमेशा पूरे सम्मान और संवेदना से अपने साथ पाया है.. आज भी हम उनके अतीत को याद करते हैं.. खुशनुमा और जीवंत लेकिन अकेले व्यक्तित्व को महसूस करते हैं... उनकी चंद कविताएं और तस्वीरें फिर से आपके लिए... Read More
बदलते वक्त और विकास की अंधी दौड़ के साथ तमाम शहर बदल गए। हमारे गाज़ियाबाद की शक्ल-ओ-सूरत भी बदल गई। संस्कार से लेकर संस्कृति तक और विरासत से लेकर राजनीति तक.. आज़ादी के बाद से अबतक कैसे कैसे बदला ये शहर, क्या है इसकी कहानी, कैसी थी इसकी रवायत... हमारे शहर के ऐसे तमाम बुजुर्ग इस बदलाव के गवाह हैं, जिन्होंने गाजियाबाद को पल पल महसूस किया और जिया। ‘अमर उजाला’ ऐसे तमाम आदरणीय बुजुर्गों की या
आँवला (बरेली)। वर्षा ऋतु का आगमन.. आसमान में काले मेघ.. हाथों में मेहंदी और सावन के कजरी गीत एवं नृत्य से इफको परिवार की महिलाओं ने इफको अतिथि गृह के हाल में मनायी तीज। सुबह महिला क्लब द्वारा आयोजित हरियाली तीज की थीम शिव आराधना रही। कार्यक्रम की मुख्य अथिति सुबह महिला क्लब की अध्यक्षा श्रीमती साधना गौतम ने द्वीप प्रज्जवलित कर तीज का शुभारंभ किया। तीज गणेश वंदना से आरम्भ हुई। Read More
भोले के दीवाने, रुकना ना जानें... सावन आया नहीं कि शिवभक्तों की टोली पूरी मस्ती के साथ अपने खास अंदाज़ में सड़कों पर उतर पड़ी। यह हर साल का नज़ारा है। जहां भी शिव का जाना माना मंदिर है, वहां शिवभक्त शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं। पैदल चलकर दूर दूर से गंगाजल लाते हैं, बड़े बड़े कांवड़ उठाते हैं और तरह तरह की झांकियां निकालते हैं। मोटरसाइकिलों पर सवार आखिरी दिनों
साहित्य उत्सवों की श्रृंखला में अब अब हल्द्वानी का नाम भी जुड़ने जा रहा है। यहां 15 अप्रैल को हेने जा रहे साहित्य उत्सव में कई जाने माने पत्रकार, लेखक और साहित्य-संस्कृति से जुड़े लोग हिस्सा ले रहे हैं। इस दौरान टीवी पत्रकार दिनेश मानसेरा की किताब – ‘मंगली – एक पटकथा’ का विमोचन भी होगा। कहानी, कविता, उपन्यास समेत साहित्य के तमाम विधाओं और मीडिया में हाशिए पर पहुंच चुके साहित्य जैसे
कामयाब फिल्मकारों और शख्सियतों की अपनी अपनी कहानियां होती हैं। उतार चढ़ाव से भरी हुई। किसी के घर का माहौल, किसी की गरीबी, किसी के संघर्ष के अलग अलग आयाम, किसी की बचपन से ही हौसलाअफ़ज़ाई तो किसी के जीवन में अचानक मिले मौके। जब आप ऐसी कहानियां सुनते हैं तो लगता है काश, ऐसा ही कुछ आपके साथ भी होता। सई परांजपे की फिल्में जब देखीं तो लगा कितनी सरल और आम लोगों की फिल्मकार हैं। ये भी लगा कि चश्
केदार जी का जाना बेशक मीडिया की तमाम खबरों की तरह न रहा हो, सियासत और बयानबाजियों से भरे अखबार और चैनल बेशक साहित्य, संस्कृति और कला के लिए जगह न निकाल पाते हों और केदार नाथ सिंह का नाम बेशक आज के युवा पत्रकार और मीडियाकर्मी न जानते हों, लेकिन अब भी एक पीढ़ी है जो इस परंपरा को निभा रही है। अब भी कुछ अखबार हैं जहां साहित्य और संस्कृति को समझने वाले संवेदनशील लोग बचे हुए हैं। कुछ अखबारों न