बंटवारे का दर्द, देश की संस्कृति और सतीश गुजराल

एक कलाकार सिर्फ सम्मानों या रिश्तों से बड़ा नहीं होता। सतीश गुजराल के चित्रों और तमाम कलाकर्म में जो संवेदना दिखती है, वह उन्हें उस पहचान से कहीं दूर खड़ा करती है कि वो पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल के छोटे भाई थे या उन्हें पद्म विभूषण या कला का राष्ट्रीय पुरस्कार तीन तीन बार मिल चुका था। दरअसल जिस कलाकार ने विभाजन का दर्द देखा हो, महसूस किया हो और जिसकी दृष्टि समाज के तमाम वर्गों और हिस्सों पर ज्यादा गई हो, जाहिर है उसके रंग, कलाकृतियां और मूर्तिशिल्प उसे संवेदना के कई आयामों तक ले जाती है।

सतीश 94 साल के थे, जाहिर है स्वस्थ नहीं थे और न ही वह ऊर्जा उनमें बची थी। लेकिन जो दृष्टि तकरीबन 80 दशकों की उनकी कला यात्रा में दिखती है, वह आम तौर पर समकालीन कलाकारों में कम नज़र आती है। जन्म लाहौर में हुआ, लेकिन पारंपरिक शिक्षा ज्यादा नहीं हो पाई। आठ साल के थे, तो पैर फिसलने से ऐसा हादसा हुआ कि सिर में गहरी चोट आई जिससे उन्हें कम सुनाई पड़ने लगा और बोलने में परेशानी होने लगी। उसी हादसे में पैर इस बुरी तरह टूटा कि फिर वो ठीक से चल नहीं सके। लेकिन उनके भीतर का कलाकार अपनी पूरी संवेदना और दृष्टि के साथ लगातार विकसित होता रहा।

पहले लाहौर के ही मेयो स्कूल ऑफ आर्ट में पांच साल तक मूर्ति शिल्प और ग्राफिक्स सीखी, फिर 1944 में मुंबई के जेजे स्कूल ऑफ आर्ट चले गए। बीमार हो गए तो पढ़ाई यहां भी पूरी नहीं हो पाई। इस बीच विभाजन की त्रासदी और भयानक सामाजिक स्थितियों ने गुजराल को बहुत गहराई तक प्रभावित किया। उनके चित्रों में इसकी झलक देखी जा सकती है। खासकर उनकी सीरीज़ – ‘पार्टिशन’ में उस दर्द को साफ तौर पर महसूस किया जा सकता है।

आज के दौर के मशहूर कलाकार अशोक भौमिक कहते हैं कि गुजराल के चित्रों में विभाजन के वक्त का दर्द बहुत शिद्दत के साथ देखाई देता है। उनके स्केचेज कला को एक नया आयाम देते हैं और रंगों का संयोजन, ज्यामितीय आकार में सामाजिक संदर्भों में बनाई गई उनकी पेंटिग्स उन्हें एक अलग पहचान देती हैं। जाहिर है गुजराल को समझना है तो इन चित्रों के भीतर के दर्द और चेतना को समझना होगा।

नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट के महानिदेशक और जाने माने कलाकार अद्वैत गणनायक के मुताबिक गुजराल का जाना कला जगत के लिए एक गहरे शून्य की तरह है। उन्होंने कला की तमाम विधाओं और तरीकों का इस्तेमाल किया और लगातार नए नए प्रयोग करते रहे। नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट के संग्रह में सतीश गुजराल की 1999 से पहले की एक बेहतरीन कलाकृति मौजूद है।

नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट में सतीश गुजराल की पेंटिंग

गुजराल के बेहद करीबी रहे और कला के जानकार रंजीत होसकोटे ने देर रात ट्वीट कर सतीश गुजराल के निधन की खबर दी और अपनी श्रद्धांजलि उन्हें इन शब्दों में दी – गुजराल बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे और उन्हें दुनिया ने 1950 के बाद तब जाना जब उनके तमाम साथी कला के क्षेत्र में नाम कमाने पेरिस और लंदन चले गए, लेकिन गुजराल ने मैक्सिको को चुना। वहां उन्हें स्कॉलरशिप मिली और उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

सतीश गुजराल अपने एक्रेलिक रंगों के लिए एक खास किस्म की खुरदुरी सतह बनाते थे और अपनी तमाम आकृतियों को एक दूसरे में बेहद खूबसूरती से विलीन कर देते थे। आकार आमतौर पर ज्यामीतिय होने की वजह से उनके चित्र अलग से पहचाने जा सकते हैं। गुजराल आमतौर पर चटकीले रंग इस्तेमाल करते रहे और पशु-पक्षियों से लेकर इतिहास और लोक कथाओं, धर्म और संस्कृति से जुड़े पात्रों को कैनवस पर उकेरते रहे।

दुनिया के तमाम देशों में गुजराल के काम देखे जा सकते हैं और भारत में तो दिल्ली हाईकोर्ट की दीवार से लेकर कई प्रमुख जगहों पर सतीश गुजराल आपको अलग अलग तरीके से नजर आ जाएंगे।  

अतुल सिन्हा

Posted Date:

March 27, 2020

2:29 pm Tags: , , , , ,
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