देश भर में पुस्तकालयों की खस्ता हालत के बारे में हम अक्सर पढ़ते रहते हैं। यह बहस भी अक्सर सुनने को मिलती है कि इस डिजिटल ज़माने में किताबों के लिए किसके पास वक्त है। इसके बावजूद देश भर में पुस्तक मेलों का चलन बढ़ रहा है और प्रकाशकों की चांदी हो गई है। पुस्तकालयों को लेकर भी नज़रिये में बदलाव आ रहा है। साक्षरता दर में देश में नंबर वन केरल आखिर कैसे और क्यो
पूरा देश जॉर्ज फर्नांडिस को अपने अपने तरीके से याद कर रहा है। आम आदमी से जुड़े, संघर्षों में तपे और सादगी के पर्याय जॉर्ज साहब बरसों से गुमनामी के अंधेरे में गंभीर बीमारी से अकेले जूझ रहे थे। फिर 29 जनवरी 2019 को आखिरकार उन्होंने सबको हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। जाने माने वरिष्ठ पत्रकार के. विक्रम राव ने उनके साथ लंबा वक्त बिताया, संघर्ष के दि
रेवान्त मुक्तिबोध सम्मान कवयत्री अनामिका को
‘उन्होंने चिट्ठी मरोड़ी/और मुझे कोंच दिया काल-कोठरी में/अपनी कलम से मैं लगातार/खोद रही हूं तब से/काल-कोठरी में सुरंग’
ये काव्य पंक्तिया
महात्मा गांधी को देश अपने अपने तरीके से याद कर रहा है। तमाम सरकारी और निजी संस्थाएं भी उन्हें नमन कर रही हैं। लेकिन गांधी अपने तमाम रूपों में कलाकारों के लिए भी एक प्रिय पात्र रहे हैं।
लखनऊ ने याद किया जनकवि गोरख पाण्डेय को
लखनऊ, 28 जनवरी। हिन्दी कविता की जो सुदीर्घ परम्परा है, उसकी समकालीन काव्य धारा के शीर्ष पर गोरख पाण्डेय है। एक तरफ उनमें जहां क्रान्तिकारी विचार की गहराई है, वहीं उनका शिल्प इस कदर तराशा हुआ है कि उसका सौदर्य देखते ही बनता है। जहा
दुनिया के मशहूर शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के जन्मदिन के मौक़े पर आगरा और उत्तर भारत की जानी मानी सांस्कृतिक संस्था रंगलीला की ओर से 'जश्न-ए-फ़ैज़ 19' आने वाली 14 फ़रवरी की शाम 'सूरसदन' में होने वाला है। पिछले साल यानी 2018 में भी यह कार्यक्रम बेहद सफल हुआ था। और इस बार भी वैसी ही सजधज, गर्मजोशी और देश भर से आने वाले
दिल्ली के मयूर विहार फेज 1 के आनंद लोक में उनका घर है पूर्वाशा। अब वहां उनके न होने का सन्नाटा पसरा है। बीमार वो लंबे समय से थीं लेकिन आज यानी 25 जनवरी की सुबह उन्होंने हमेशा के लिए विदा ले लिया। अगले महीने 18 तारीख को कृष्णा सोबती 94 की होने वाली थीं, लेकिन उन्हें इस बात से नफ़रत थी कि कोई उन्हें बूढ़ा या बुज़ुर्ग कहे। आखिरी समय तक वो लिखती रहीं, देश के बारे में सोचती रहीं, सियासत क
94 साल की उम्र में कृष्णा सोबती का चले जाना एक युग के खत्म होने जैसा है। बहुत कम लोग जानते हैं कि कृष्णा सोबती ने कुछ कविताएं भी लिखी हैं। कुछ ऐसी कविताएं जिनसे उनके सत्ता और सरकारों के प्रति नाराज़गी भी झलकती है और उनके भीतर छिपी बेचैनी भी दिखती है। उनके उपन्य
बातें अतीत की, विषाद की, सुखद भी !
करीब तीन दशक बाद गत सप्ताह गायकवाड़ी नगर बडौदा (आज बड़ोदरा) प्रवास का मौका मिला| पत्रकार सुरक्षा हेतु राष्ट्रीय कानून को लेकर गुजरात और महाराष्ट्र के दौरे पर गया थ
भारतीय कला और लोक संस्कृति के विभिन्न आयामों को आगे बढ़ाने और कलाकारों को मंच देने के काम में जुटा किरण नादर म्युजियम ऑफ आर्ट (केएनएमए) फरवरी में तीन दिनों का चित्रकला महोत्सव करने जा रहा है। दिल्ली के साकेत में म्युजियम के परिसर में होने जा रहे इस महोत्सव में देश भर की लोक और आदिवासी कलाओं क