20वां भारत रंग महोत्सव खत्म
रंगमंच की दुनिया में नए नए प्रयोगों और कई नए नाटकों के मंचन के साथ 20वां भारत रंग महोत्सव खत्म हो गया। कथक की पाठशाला कहे जाने वाले पद्मविभूषण पंडित बिरजू महाराज को इस मौके पर सुनना एक अनुभव था। राष्ट्रीय नाट्य वि
रोहित वेमुला की आत्महत्या और उसके बाद उठे जनाक्रोश ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। दलित राजनीति के नाम पर वेमुला की खुदकुशी एक बड़ा मुद्दा बनी लेकिन इस घटना के पीछे के सच को तलाशने की कोशिश सही तरीके से कभी नहीं हुई। इस घटना के चार साल बाद फिल्मकार दीपा धनराज ने इस पूरी घटना पर और इसके तमाम पहलुओं पर फिल्म बनाई – वी हैव नॉट कम हियर टू डाई ।
वरिष्ठ पत्रकार के. विक्रमराव की कलम से
वसन्त पंचमी मतलब वाणी पुत्र कवि निराला की सालगाँठ। कौन सी थी? बहस अभी जारी रहेगी। निराला किस सदी के थे? वे तो एक युग के हैं। किन्तु युग के मायने भी एक सीमित काल खण्ड से ही होगा। निराला तो कालजयी हैं। ऐसी हस्ती को एक सदी या एक युग के दायरे में बाँधने की मजाल कौन करें? फिर भी चन्द फितरतियों ने वृथा चर्चा चलवा दी थी। उनकी जन्म तिथ
वह 1977 का साल था। पहली दफा तभी जगजीत सिंह को सुनने का मौका मिला। लाइव नहीं, बल्कि उनके पहले अल्बम – ‘द अनफॉरगेटबल्स’ के दो एलपी रिकॉर्ड्स में। फिलिप्स के नए नए स्टीरियो की धमक के बीच जगजीत सिंह जब अपने अंदाज़ में ‘आहिस्ता आहिस्ता’ गाते तो हम सब उनके साथ साथ खुद भी ‘आहिस्ता आहिस्ता’ बरबस ही गाने को मजबूर हो
(वरिष्ठ पत्रकार सुधीर राघव किसी भी शहर में रहते हैं, वहां के इतिहास को तलाशने की कोशिश ज़रूर करते हैं। आप उनके ब्लॉग sudhirraghav.blogspot.com में उनके कई ऐसे आलेख पढ़ सकते हैं और कई जगहों के बारे में जान समझ सकते हैं। फिलहाल कुछ महीनों से सुधीर राघव काशी नगरी यानी वाराणसी में हैं। घुमक्कड़ी की उनकी आदत है, सो वहां के तमाम दुर्लभ और चर्
जाने माने फोटोग्राफर निर्मल वैद कुंभ के तमाम रंगों को कैमरे में समेट रहे हैं। वहां उन्होंने अलग अलग ऋृंखलाओं में कई तस्वीरें उतारीं और जिस एंगल से कुंभ को पकड़ा, वो दिलचस्प है। निर्मल वैद की फोटोग्राफी की कुछ झलक वहां आए दुर्लभ साधुओं और बाबाओं की ऋृंखला से...
क्या आप जानते हैं कि दुनियाभर में अपनी जुझारू और लड़ाकू छवि के लिए मशहूर ममता बनर्जी एक बेहतरीन पेंटर, कवियत्री और लेखिका भी हैं? संगीत में उनकी गहरी रूचि है और पिछले ही साल दुर्गापूजा के मौके पर ममता बनर्जी ने रौद्रर छाया नाम का एक अल्बम भी जारी किया है जिसमें उनके कंपोज किए गए सात
कला और संस्कृति के क्षेत्र में मज़बूत दखल रखने वाले पत्रकार आलोक पराड़कर ने पंडित बिरजू महाराज को उनके 80 साल पूरे करने पर किस बारीकी से देखा और महसूस किया, यह उन्होंने अपने फेसबुक वॉल पर पोस्ट किया। 7 रंग के पाठकों के लिए आलोक पराड़कर का वही आलेख साभार पेश है...
देश भर में पुस्तकालयों की खस्ता हालत के बारे में हम अक्सर पढ़ते रहते हैं। यह बहस भी अक्सर सुनने को मिलती है कि इस डिजिटल ज़माने में किताबों के लिए किसके पास वक्त है। इसके बावजूद देश भर में पुस्तक मेलों का चलन बढ़ रहा है और प्रकाशकों की चांदी हो गई है। पुस्तकालयों को लेकर भी नज़रिये में बदलाव आ रहा है। साक्षरता दर में देश में नंबर वन केरल आखिर कैसे और क्यो
पूरा देश जॉर्ज फर्नांडिस को अपने अपने तरीके से याद कर रहा है। आम आदमी से जुड़े, संघर्षों में तपे और सादगी के पर्याय जॉर्ज साहब बरसों से गुमनामी के अंधेरे में गंभीर बीमारी से अकेले जूझ रहे थे। फिर 29 जनवरी 2019 को आखिरकार उन्होंने सबको हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। जाने माने वरिष्ठ पत्रकार के. विक्रम राव ने उनके साथ लंबा वक्त बिताया, संघर्ष के दि