गाजियाबाद में साहित्य की एक स्वस्थ और समृद्ध परंपरा रही है और इसे आज के दौर में जीवंत रखने का अद्भुत काम कर रहा है मीडिया 360 लिट्ररी फाउंडेशन। कोरोना काल के दौरान करीब एक साल तक बंद पड़ी गतिविधियों के बाद जब इस संस्था ने 7 फरवरी को गाजियाबाद में कथा संवाद को फिर से शुरु किया तो मानो हर किसी के भीतर का साहित्यकार और साहित्य के प्रति उसकी जायज चिंता फिर से जाग उठी। बड़ी संख्
भारतीय रंगमंच के वरिष्ठ निर्देशक बंसी कौल का हिन्दी रंगमंच में अविस्मरणीय और महत्वपूर्ण योगदान है। पिछले कुछ समय से उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था, वह कैंसर से जुझ रहे थे, पर उनकी जिजीविषा और जिंदादिली अद्भुत थी। सबको उम्मीद थी कि वह इस स्थिति से उबर कर दोबारा सक्रिय हो जाएंगे। प
बंसी कौल का यूं चले जाना रंगमंच की दुनिया के लिए एक गहरे सदमे की तरह है। अस्मिता थिएटर ग्रुप के संस्थापक और जाने माने रंगकर्मी अरविंद गौड़ ने बंसी कौल को कुछ इस तरह याद किया....
2020 ने जिस तरह कलाकारों समेत पूरी दुनिया को घरों में कैद कर दिया और खासकर कला और कलाकारों के लिए अभिव्यक्ति के रास्ते बंद हो गए, उससे तमाम कला संस्थान, कला अकादमियां और संग्रहालयों बुरी तरह प्रभावित हुए। नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट (एनजीएमए), ललित कला अकादमी और कला संग्रहालयों ने खु
साहित्य की दुनिया 2020
हर साल की तरह इस बार भी जनवरी में जब दिल्ली के प्रगति मैदान में विश्व पुस्तक मेले की शुरुआत हुई तो लगा जैसे 2020 साहित्य और लेखन के क्षेत्र में कुछ नए बदलाव लाएगा। लोगों में किताबें पढ़ने की ललक भी बढ़ेगी और साहित्यिक चर्चाओं और बहसों का सिलसिला और तेज होगा। कुछ हद तक ऐसा हुआ भी। कम से कम पुस्तक मेले के दौरान सौ से ज्यादा नई किताबों का विमोचन हुआ, चर्चाएं ह
स्वागत कीजिए 2021 का...क्या खोया, क्या पाया... जीवन शैली, सोच और रचनात्मकता के नए तौर तरीके‘ज़िंदगी और मौत तो ऊपर वाले के हाथ में है जहांपनाह, हमसब तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं जिनकी डोर ऊपर वाले के हाथ में है... कब, कौन, कैसे उठेगा कोई नहीं जानता...
आज जिस इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के सदस्य सचिव के तौर पर डॉ सच्चिदानंद जोशी के कंधे पर संस्कृति के इस विशाल केन्द्र की जिम्मेदारी है, वह केन्द्र अगर बना तो उसके पीछे कपिला वात्स्यायन की दूरदृष्टि थी। कपिला जी इसके संस्थापकों में रहीं और जोशी जी उनकी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। जोशी जी ने जो बेहतरीन काम किया वो ये कि उन्होंने कपिला जी को पूरा सम्मा
इस कोरोना काल ने बहुतों को हमसे छीना है। कुछ तो उम्र के उस पड़ाव पर थे, तो कुछ असमय ही अलविदा कह गए। देश में सांस्कृतिक चेतना और इसके विस्तार के क्षेत्र में अद्भुत योगदान देने वाली कपिला वात्यायन भी आखिरकार चली गईं।
कपिला जी बे
जाने माने पत्रकार और दिनमान के शुरुआती दिनों से ही अज्ञेय, रघुवीर सहाय और सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जैसे साहित्यकारों के साथ काम करने वाले त्रिलोक दीप आज भी जब उन दिनों की याद करते हैं तो मानो वो सारी तस्वीरें सजीव हो जाती हैं। त्रिलोक जी ने 7 रंग से फोन पर अपने अनुभव साझा किए जिसे हम उनकी आवाज़ में पेश कर रहे हैं... साथ ही उन्होंने अपने फेसबुक पर उन दिनों के बारे में और