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पूरब का खाना, ज़ायके का ख़ज़ाना…
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April 22, 2020

मशहूर खानपान विशेषज्ञ और लेखक केटी अचाया ने इंडियन फूड में देश के हर इलाकों के खानपान, कृषि और खानपान के इतिहास की बात की है. उसी किताब में कहा गया है, 16वीं सदी में उत्तर प्रदेश के गंगा के किनारे के इलाकों में जो खाने लोकप्रिय थे, उसमें सत्तू, जौ का आटा ज्यादा प्रचलन में था, दालें खूब होती थीं. लिहाजा उनसे मुंगोड़ी और बड़ियां बनाई जाती थीं. इनका उपयोग सब्जियों के साथ होता था.

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कोरोना काल के बहाने शानी की याद…
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April 22, 2020

कोरोना संकट में भी चारों तरफ हिंदू मुस्लिम चल रहा है। इस मुश्किल समय में भी नफरत की खेती करने के बजाय क्यों न मुस्लिम अंतर्मन को समझा जाए, इसीलिए शानी को पढ़ने बैठा हूं। जिस गांव में पैदा हुआ और पला बढ़ा, वहां केवल एक मुस्लिम परिवार था, जो बाद में कहीं दूसरी जगह चला गया। वकील मियां जब तक गांव में रहे, मुहर्रम पर तजिया भी गांव के लोगों के परिवार के सहयोग से ही निकलता था। लिहाजा मुसलमानों

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बनारस: शिव की नगरी में 56 विनायक…
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April 16, 2020

जब कोई संवेदनशील पत्रकार किसी शहर में जाता है तो वहां की संस्कृति, परंपराओं, धरोहरों और इतिहास को समझने की कोशिश ज़रूर करता है। सुधीर राघव ऐसे ही पत्रकार हैं। अमर उजाला में समाचार संपादक रहते हुए वह कई शहरों में रहे। सबसे कम वक्त बिताया बनारस यानी शिव की नगरी काशी में। लेकिन इन चंद महीनों में भी उन्होंने वहां के तमाम पहलुओं को तलाशा । बनारस के बारे में वैसे तो बहुत कुछ लिखा जाता रहा

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रेणु ने पद्मश्री को लौटाते हुए कहा था – पापश्री
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April 11, 2020

1974 आंदोलन को बहुत करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार जयशंकर गुप्त ने कालजयी रचनाकार फणीश्वर नाथ रेणु के साथ साथ उस दौर के तमाम साहित्यकारों को गहराई से महसूस किया है। अपने अनुभव और उस दौरान की स्थितियों के साथ मौजूदा हालात को बेबाकी से लिखने वाले जयशंकर गुप्त ने रेणु को उनकी पुण्यतिथि पर कुछ इस तरह याद किया। न्यूज़ पोर्टल न्यूज़ क्लिक में लिखे अपने संस्मरणात्मक लेख में उन्होंने ये

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आज जामिनी रॉय क्यों याद आते हैं…
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April 11, 2020

आज के दौर में जामिनी रॉय जैसे कलाकार क्यों याद आते हैं? क्या बदलते दौर में, विकास की अंधी दौड़ में और 21वीं सदी की तथाकथित आधुनिकतावाद में उनके चित्रों के पात्र ज्यादा ज़रूरी लगते हैं? क्या उनके पात्रों में रची बसी गांवों की खुशबू, संस्कृतियों और परंपराओं की जीवंतता और हमारे मूल्यों की तलाश पूरी होती है? दरअसल जामिनी राय का कालखंड तब का है जब देश तथाकथित तौर पर इतना विकसित नहीं हुआ था।

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कस्तूरबा गांधी को याद करने के मायने…
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April 11, 2020

बेशक गांधी जी देश के लिए महात्मा और राष्ट्रपिता हों, लेकिन अगर कस्तूरबा गांधी का सहयोग, साथ और भरोसा उन्हें नहीं मिलता तो शायद आज गांधी जी की ये स्वीकार्यता न होती। आम तौर पर कस्तूरबा गांधी भुला दी गई हैं, उनके योगदान को उस तरह शायद नहीं समझा गया और उस दौर के भारतीय रूढ़ीवादी समाज में जिस तरह महिलाओं को त्याग की मूर्ति, पतिव्रता और पुरुषों की तमाम कमियों के बावजूद उन्हें आगे बढ़ने मे

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महल उदास…गलियां सूनीं…चुप-चुप हैं दीवारें….!
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April 10, 2020

विजय विनीत एक बेहतरीन और समर्पित पत्रकार हैं। जनसरोकार की पत्रकारिता करने वाले विजय विनीत इन दिनों वाराणसी में जनसंदेश टाइम्स के राजनीतिक संपादक हैं। वाराणसी और आसपास के इलाकों से वहां की संस्कृति, समाज, सियासत और आम आदमी से जुड़ी बेहतरीन खबरें भेजते हैं, सरकार और प्रशासन से डरकर काम नहीं करते। कई बार धमकियां भी मिलीं, मुकदमें भी हुए, लेकिन विजय विनीत पूरी ईमानदारी से काम करते रह

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किशोरी अमोनकर को याद करते हुए…
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April 10, 2020

शास्त्रीय गायन में उनकी आवाज़, किसी राग के भीतर तक उतर जाने और श्रोताओं को एक नई दुनिया में ले जाने की उनकी कला का जवाब नहीं था। किशोरी अमोनकर अगर आज होतीं तो 89 बरस की हो रही होतीं... 10 अप्रैल 1931 को मुंबई में जन्मीं किशोरी अमोनकर तीन साल पहले हमसे रुखसत हो गईं... लेकिन उन्होंने शास्त्रीय संगीत को जो ऊंचाई दी, वह हर शास्त्रीय संगीतप्रेमी के लिए एक अद्भुत एहसास से गुजरने जैसा है... आज तकनीकी क

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भरवां पराठे और सब्ज़ियां, लज़ीज़ बिरयानी
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April 10, 2020

कायस्थ हमेशा से खाने-पीने के शौकीन रहे हैं. लेकिन ये सब भी उन्होंने एक स्टाइल के साथ किया. आज भी अगर पुराने कायस्थ परिवारों से बात करिए या उन परिवारों से ताल्लुक रखने वालों से बात करिए तो वो बताएंगे कि किस तरह कायस्थों की कोठियों में बेहतरीन खानपान, गीत-संगीत और शास्त्रीय सुरों की महफिलें सजा करती थीं.

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कायस्थों का खाना-पीना-1
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April 9, 2020

चाहे खेल हो, संस्कृति हो, परंपराएं हों या फिर इतिहास के पन्नों में बिखरी ढेर सारी जानकारियां वरिष्ठ पत्रकार संजय श्रीवास्तव बहुत बारीकी से उनपर नज़र डालते हैं। इन दिनों अपने फेसबुक वॉल पर कायस्थों के खान-पान पर अपनी शोधपरक और दिलचस्प जानकारियों के साथ कुछ कड़ियां लिख रहे हैं। हालांकि अब कायस्थ के तमाम परिवार इन परंपरागत खान पान से दूर हो चुके हैं लेकिन इन्हें पढ़ना और उन ज़ायकों

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