महल उदास…गलियां सूनीं…चुप-चुप हैं दीवारें….!

विजय विनीत एक बेहतरीन और समर्पित पत्रकार हैं। जनसरोकार की पत्रकारिता करने वाले विजय विनीत इन दिनों वाराणसी में जनसंदेश टाइम्स के राजनीतिक संपादक हैं। वाराणसी और आसपास के इलाकों से वहां की संस्कृति, समाज, सियासत और आम आदमी से जुड़ी बेहतरीन खबरें भेजते हैं, सरकार और प्रशासन से डरकर काम नहीं करते। कई बार धमकियां भी मिलीं, मुकदमें भी हुए, लेकिन विजय विनीत पूरी ईमानदारी से काम करते रहे हैं। उनकी ज़मीनी रिपोर्टिंग की एक मिसाल 7 रंग के पाठकों के लिए… लॉकडाउन में बनारस की संस्कृति और संगीत भी कैद में है… जीवन घरों में बंद है… एक बिंदास बनारस कितना उदास और वीरान है.. आप भी देखिए….


चौबीस घंटे गुलजार रहने वाला लंका अब खामोश है। लंका रावण वाली नहीं, काशी की अपनी लंका। इसके ठीक सामने है विश्व प्रसिद्ध सर्वविद्या की राजधानी बीएचयू। कोरोना संकट से उपजे लाक डाउन से बीएचयू परिसर भी सन्नाटे में है…। भांय-भांय कर रहा है। बीएचयू प्रशासन ने परिसर में कड़ा पहरा बैठा रखा है। मुख्य गेट को छोड़ सभी रास्तों पर ताले जड़े हैं। लंका पर सिर्फ दवा की चुनिंदा दुकानें ही खुल रही हैं। पूछताछ के बाद ही बीएचयू परिसर में लोग घुस पा रहे हैं। सिर्फ उन्हें ही आने-जाने की आजादी है जो बीएचयू के शिक्षक या कर्मचारी हैं। अथवा जो हैं मरीज या तीमारदार। नहीं तो फिर मोर्चरी में जाने वाले। हालांकि यहां जरूरी सेवाओं पर कोई रोक-टोक नहीं है। रसोई गैस सिलेंडर लोगों के घरों तक पहुंच रहा है। कोई अड़चन नहीं है।
इधर बीएचयू का सबसे चर्चित पीएमसी चौराहा डरावना हो गया है। वही चौराहा जिसे विश्वविद्यालय के छात्रों ने अघोषित नाम दे रखा है-पिया मिलन चौराहा। दरअसल है तो ये तिराहा, लेकिन स्टूडेंट्स ने हंसी-मजाक में इसे ही पिया मिलन चौराहा नाम दिया है। सच मानिए, यह नाम बीएचयू के स्टूडेंट्स के बीच काफी पापुलर्टी हासिल कर चुका है। मदन मोहन मालवीय जी की बगिया में यही एक स्थान है, जहां जाने-अनजाने में स्टूडेंट्स का आमना-सामना होता रहा है। यह तिराहा दूसरे चौराहों से इसलिए ज्यादा अहमियत रखता है कि इसके बायीं तरफ महिला छात्रावास है तो कुछ कदम आगे कस्तूरबा छात्रावास। स्टूडेंट्स की लोकल मीटिंग प्वाइंट्स भी है ये। पीएमसी आजकल अपने कद्रदानों के बगैर विधवा सा महसूस कर रहा है। अभी हंसी-ठिठोली नहीं, सिर्फ पेड़ों के पत्ते उधिरा रहे हैं…।


पीएमसी कई अर्थों में अहमियत रखता है। इसकी एक सड़क लंका की ओर जाती है तो दूसरी बिड़ला हास्टल की ओर। उपन्यासकार ओम प्रकाश राय ‘यायावर’ कहते हैं, -‘कोरोना ने समूचे बीएचयू में उदासी भर दी है। अस्पताल में तो सिर्फ आहें हैं और कराहे हैं। प्यार, उमंग, जोश और उत्तेजना के साथ जिंदगी जीने का संदेश देने वाला पीएमसी अब सन्नाटे में है। बीएचयू में चिकित्सा विज्ञान संस्थान का मेन गेट पीएमसी चौराहे के सामने ही खुलता है। इसी के ठीक सामने है सर सुंदरलाल अस्पताल। लागडाउन से सर सुंदर लाल अस्पताल में अब दर्द और उदासी का आलम है। पहले हर तरह के लोग आते थे तो दर्द की सिसकी और उदासी की आहें उनके शोर में दब जाती थीं। चौबीस घंटे गुलजार रहने वाला लंका चौराहा भी पूरी तरह शांत और खामोश है।’
यायावर कहते हैं, ‘बीएचयू मेन गेट के एक तरफ पीएमसी और दूसरी ओर रविदास गेट। ये बीएचयू की जिंदगी के दो ध्रुव हैं। दोनों के बीच की दुनिया अनूठी और अलग है। लाक डाउन से बीएचयू में जिंदगी भले ही थम गई है, लेकिन यादें नहीं ठहरी हुई हैं। वही यादें जो शाम ढलते ही उदासी छांट देती थीं। दिल्ली और मुंबई के हॉट पिकनिक स्पॉट फीके पड़ जाते थे। एक से एक बढ़कर खूबसूरत चेहरे। दिल्ली के कनाट प्लेस और मुंबई के मरीन ड्राइव को पछाड़ने वाली लंका की शक्ल को कोरोना ने पूरी तरह बदरंग कर दिया है।’


उधर, पीएमसी का एक रास्ता प्रसिद्ध बिड़ला छात्रावास की ओर भी जाता है। यह वही छात्रावास है जो अपने मिजाज के लिए देश भर में जाना जाता है। इस हास्टल में रहने का सुख जिस किसी को मिलता है वो जीवन भर नहीं भूल पाता। लाक डाउन के चलते बिड़ला छात्रावास पूरी तरह खाली है। छात्रावास के बेजान भवन पूरी तरह खामोशी और उदासी की नई इबारत लिख रहे हैं।
सिर्फ लंका ही नहीं। वीटी भी खामोशी की चादर ओढ़े हुए है। वीटी मतलब, विश्वनाथ टैंपल। यानी बीएचयू की राजधानी। विश्वविद्यालय की हृदयस्थली।
बीएचयू के शोध छात्र श्वेतांक मिश्र कहते हैं, ‘वीटी की खामोशी हर किसी को साल रही है। किसी हाल में कभी ये नजारा किसी ने नहीं देखा था। अगर मन वीटी से भर जाता था वो अस्सी की तरफ रुख करते थे। लेकिन अब अस्सी भी वीरान है। वही अस्सी जो बॉलीवुड से लेकर राजनीति और साहित्य को अपनी परिधि में समेटे हुए है।’ अस्सी की खामोश सीढ़ियों पर बैठकर अब साहित्य नहीं गढ़ा जा सकता। काशी का यह वही घाट है जो प्रेम में धोखा खाए लोगों के जख्म सहलाता रहा है। नए प्यार के रंग को गाढ़ा करने वाला अस्सी अब गाढ़े सन्नाटे में है।

(विजय विनीत की यह ग्राउंड रिपोर्ट जनसंदेश टाइम्स से साभार)

Posted Date:

April 10, 2020

11:27 pm Tags: , , , ,
Copyright 2023 @ Vaidehi Media- All rights reserved. Managed by iPistis