देश विदेश के अलग अलग हिस्सों में भारतीय साहित्य, कला और संस्कृति से जुड़े तमाम कार्यक्रम होते हैं, ढेर सारी गतिविधियां होती हैं। कई ख़बरें भी होती हैं जो हम तक नहीं पहुंच पातीं। गोष्ठियां, कार्यशालाएं होती हैं, रंगकर्म की तमाम विधाओं की झलक मिलती है और लोक संस्कृति के कई रूप दिखते हैं। नए कलाकार, नई प्रतिभाएं और संस्थाएं साहित्य-संस्कृति को समृद्ध करने की कोशिशों में लगे रहते हैं लेकिन उनकी जानकारी कम ही लोगों तक पहुंच पाती है। हमारी कोशिश है कि इस खंड में हम ऐसी ही गतिविधियों और ख़बरों को शामिल करें … चित्रों और वीडियो के साथ।
11वां सावित्री त्रिपाठी स्मृति सम्मान सुप्रसिद्ध नाटककार राजेश कुमार को दिया जाएगा। सावित्री त्रिपाठी फाउन्डेशन के सचिव पीयूष त्रिपाठी ने यह घोषणा की है। उन्होंने बताया कि स्मृति सम्मान की निर्णायक समिति के सदस्यों प्रो. काशीनाथ सिंह, प्रो. बलराज पांडेय और प्रो. आशीष त्रिपाठी ने सर्वसम्मति से राजेश कुमार का चयन किया है।
Read Moreअस्मिता थिएटर ग्रुप ने 3 जुलाई को उस स्मृति को दर्शकों के बीच रंगकर्म के माध्यम से याद दिलाने का सफल प्रयास किया । नाटक का नाम था ' पार्टीशन' । इसका मंचन हुआ था मंडी हाउस के त्रिवेणी सभागार में । विभाजन पर लिखी मंटो की कहानी को देखने के लिए जितने लोग अंदर बैठे थे, उतने ही बाहर खड़े थे । देखने के लिए दर्शकों का सैलाब टूटा पड़ा था ।
Read Moreहम जब भी लघु पत्रिकाओं पर विचार करते हैं तो वर्तमान में मीडिया और पत्रकारिता की भूमिका हमारे सामने होती है। यह बताने की जरूरत नहीं है कि हमारे यहां पत्रकारिता का विकास राष्ट्रीय आंदोलन के साथ हुआ। उसके सामने देश को आजाद कराने का लक्ष्य था। साहित्यकारों ने पत्रकारिता को आगे बढ़ाने और उसे जनमाध्यम बनाने का काम किया।
Read Moreगाजियाबाद में धीरे धीरे महफ़िल-ए-बारादरी का रंग जमने लगा है। कुछ ही महीनों में तमाम शायरों के लिए इस मंच ने अपनी खास जगह बना ली है। अब इस बार यानी मई की महफ़िल-ए-बारादरी की बात करें तो इसमें आपसी प्रेम और सदभाव के साथ संवेदनाओं से भरी पंक्तियों के कई रंग बिखरे। ज्यादातर शायरों और कवियों ने प्रेम जैसे शाश्वत सत्य और इंसानियत को अपनी पंक्तियों में बेहद भावपूर्ण अंदाज़ में पिरोया।
Read Moreपिछले लगभग दो साल हिंदी और भारतीय रंगमंच `न होने’ का काल है। यानी नाटक नहीं हुए, रिहर्सल नहीं हए और रंगकर्मी कुछ न करने के लिए अभिशप्त हुए। अब जाकर कुछ नाटक हो रहे हैं पर रंगमंच की दुनिया अभी भी उजाड़ है। ऐसे में बरेली में `जिंदगी जरा सी है’ का मंचन एक ताजा हवा की तरह भी है और अभी के दौर को समझने की कोशिश भी।
Read More‘बदलते वक्त के साथ कहानियों का संसार बदला है, उन्हें पढ़ने के तौर तरीके भी बदले हैं। अब वो दौर नहीं है कि कहानियां या उपन्यास सोने से पहले नींद की गोली की तरह इस्तेमाल किए जाते थे... दो चार पेज पढ़ा, नींद आ गई फिर किताब किनारे रख दी। अब इंटरनेट पर तमाम प्लेटफॉर्म्स हैं, सोशल मीडिया है, जहां आप जब चाहें, पढ़ सकते हैं। इसलिए लिखते वक्त हमेशा इस बात का ध्यान रखना ज़रूरी है कि हम लिख किसके लिए
Read Moreसितार सम्राट पंडित रविशंकर से मिलना एक अनुभव था... युवावस्था में खराब आदतों के शिकार और विदेश में रहकर बिगड़ चुके पंडित जी ने कैसे सुधरी अपनी आदतें, कैसे बने एक संवेदनशील और मानवीय इंसान.. उनके गुरु ने कैसे बनाया उन्हें इतना बेहतरीन सितारवादक... संगीत ने कैसे बदली पंडित जी की ज़िंदगी....अतुल सिन्हा के साथ पंडित रविंशकर का एक ऐसा इंटरव्यू जिसमें पंडित जी ने बताई अपने दिल की बहुत सी बाते
Read Moreदेश के सौ से ज्यादा लेखकों और रचनाकारों ने फासीवादी ताकतों के उभार और पत्रकारों को संसद में जाने से रोकने जैसे सवालों पर नौ दिसंबर को प्रतिरोध दिवस मनाने का फैसला किया है। हिंदी के जाने माने कवि पत्रकार रघुवीर सहाय और मंगलेश डबराल की स्मृति में दिल्ली के प्रेस क्लब में आयोजित होने वाले इस प्रतिरोध दिवस कार्यक्रम में ये प्रस्ताव पास किया जाएगा कि देश भर में रचनाकर्म और संस्कृतिकर
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