संस्कृति और कला के क्षेत्र में खास दखल रखने वाले जाने माने पत्रकार रवीन्द्र त्रिपाठी का मौजूदा दौर की पत्रकारिता में कला-संस्कृति को एक हद तक बचाए रखने में अहम भूमिका है। जनसत्ता समेत तमाम अखबारों में नियमित रूप से इस क्षेत्र में लिखते हुए रवीन्द्र त्रिपाठी ने इस यात्रा को बदस्तूर जारी रखा है। अखबार के साथ साथ खबरिया चैनलों में भी अपने
हम लाख कहें कि कलाकारों, संस्कृतिकर्मियों, साहित्यकारों और पत्रकारों को सियासी खेमेबाज़ी से दूर रहना चाहिए लेकिन जब देश की बात आती है, लोकतंत्र बचाने की बात आती है और अपने देश की गंगा-जमुनी संस्कृति को बचाने की बात आती है तो यह बुद्धिजीवी और कलाकार तबका भी खेमे में बंटा नज़र आता है। चाहे वह अवार्ड वापसी के दौरान का मामला हो, कुछ पत्रकारों-साहित्यकारों,
हम लाख कहें कि कलाकारों, संस्कृतिकर्मियों, साहित्यकारों और पत्रकारों को सियासी खेमेबाज़ी से दूर रहना चाहिए लेकिन जब देश की बात आती है, लोकतंत्र बचाने की बात आती है और अपने देश की गंगा-जमुनी संस्कृति को बचाने की बात आती है तो यह बुद्धिजीवी और कलाकार तबका भी खेमे में बंटा नज़र आता है। चाहे वह अवार्ड वापसी के दौरान का मामला हो, कुछ पत्रकारों-साहित्यकारों,
राग विराग कला केंद्र की ओर से आयोजित एक समारोह में कवि सुधा उपाध्याय को उनकी रचना ‘इसलिए कहूंगी मैं’ के लिए 14वें शीला सिद्धान्तकर स्मृति सम्मान से नवाज़ा गया। दिल्ली के त्रिवेणी सभागार में प्रसिद्ध लेखिका डॉ नूर जहीर ने उन्हें सम्मानित किया।
इस मौके पर कवि और आ
चुनाव के मौके पर बयानों की कड़ी में वामपंथी और प्रगतिशील संगठनों ने भी एक साझा बयान जारी करके देश की सांस्कृतिक विरासत और धर्मनिरपेक्ष ढांचे को बचाने के लिए सोच समझ कर वोट देने की अपील की है। यह बयान भी पढ़िए...
एक बार फिर आम चुनाव सामने हैं। और ठीक पांच साल पहले जिन हाथों में केंद्र की सत्ता सौंपी गयी थी, उनकी जनविरोधी कारगुज़ारियाँ भी हमारे सामने हैं।
गंगा प्रसाद स्मृति दिवस का आयोजन
वैचारिक काम को आगे बढ़ाने की जरूरत - राजेश कुमार
आज के दौर में लेनिन और मार्क्स को भले ही कम लोग याद करें, वैचारिक और सियासी उठापटक में बेशक मार्क्सवाद-लेनिनवाद क
अपने देश में हादसों या प्राकृतिक आपदाओं पर भी कम राजनीति नहीं होती। चाहे वो भूकंप की त्रासदी हो या केदारनाथ जैसी आपदाएं, बाढ़ की विभीषिका हो या दंगों के बाद की कड़वा सच। हर मौके का सियासी इस्तेमाल होता रहा है। राहत और बचाव के नाम पर कोशिशें कई होती हैं, श्रेय लेने की होड़ भी मची रहती है, लेकिन ईमानदारी से क
साहित्य, संस्कृति, शिक्षा के साथ सियासत के सेतु थे डॉ शैलेन्द्र नाथ श्रीवास्तव
पटना। अगर आज साहित्यकार और राजनेता डॉ शैलेन्द्र नाथ श्रीवास्तव होते तो शायद संस्कृति और राजनीति के मौजूदा स्वरूप में कु
ललित कला अकादेमी की ओर से हर साल आयोजित की जाने वाली राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी कला समुदाय के कैलेन्डर में सर्वाधिक प्रतिष्ठित आयोजन है। इस वर्ष आयोजित 60वीं राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी उत्कृष्ट कलात्मक कृतियों के प्रदर्शन के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिभाशाली कलाकारों को अनुशंसा और मान्यता प्रदान करने का भी एक मंच है। इसमें प्रदर्शित सभी कृतियाँ
लखनऊ के सामाजिक व सांस्कृतिक संगठनों ने शहीदों को याद किया
23 मार्च की खास अहमियत है। देश भर में इस दिन को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन तीन क्रान्तिकारियों - भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दी गयी थी। इसी दिन पंजाबी के क्रांतिकारी कवि अवतार सिंह पाश को खालिस्तानी आतंकवादियों ने अपनी गोली