सब्ज बुर्ज़ : नीली छतरी हरा नाम
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July 7, 2020

♦ सुधीर राघव
अकबर के दरबार में रहीम मीर अर्ज थे। वही अब्दुर रहीम खानखाना जो हिंदी साहित्य में अपने नीति दोहों की वजह से बड़ा ही सम्मानजनक स्थान रखते हैं। इन रहीम के सेवक थे फ़हीम खान। फ़हीम खान बहुत चर्चित नहीं हैं मगर एक वज

सिक्के का दूसरा पहलू …
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July 6, 2020

देख तमाशा दुनिया का... आलोक यात्री की कलम से  मैं छोटा सा रहा होउंगा। यही कोई पांच सात बरस का। गर्मी की एक दोपहर पिताश्री और मोटा ताऊ जी (पिताश्री के कॉलेज के सहयोगी श्री एम.डी.शर्मा जी) के साथ पहली बार किसी गांव के रोमांचक सफर पर निकलने का अवसर मिला था। इससे

‘नेपाल आता हूं, तो लगता है घर में बांसुरी बजा रहा हूं’
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July 1, 2020

82 साल के हो गए बांसुरी के पर्याय बन चुके पंडित हरिप्रसाद चौरसिया

  • अतुल सिन्हा
अभी एक साल भी नहीं बीता है... भारत के 73वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर मशहूर बांसुरी वादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया कांठमांडू गए तो उनका वहां के तमाम युवा कलाकारों न

जब त्रिलोक दीप पहली बार लद्दाख़ गए…
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June 29, 2020

अतीत का आईना त्रिलोक दीप की कलम से 1969 में पहली बार लद्दाख गया था फौजियों के साथ। रास्ते में मुझे दो जानकारियां ऐसी मिलीं जो उस समय मेरे लिए नई थीं। एक, द्रास दुनिया का दूसरा सबसे ठंडा स्थान है और दूसरी लद्दाख में एक ऐसा यूरोपीय

जब अतीत में झांकते हैं जाने माने पत्रकार त्रिलोक दीप….
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June 29, 2020

एक वक्त था जब ‘दिनमान’ को रघुवीर सहाय के साथ साथ त्रिलोक दीप के नाम से भी पहचाना जाता था। सत्तर का दशक था और दिनमान तब की सबसे बेहतरीन, गंभीर और सामयिक समाचार साप्ताहिक पत्रिका हुआ करती थी। टाइम्स ग्रुप की हिन्दी पत्रिकाओं में तब धर्मयुग, दिनमान, सारिका. माधु

सात समंदर पार सरोद की झनकार
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June 28, 2020

सरोद के तार और तबले की लय की अनूठी युगलबंदी देख हर कोई हो जाता है हैरान
विजय विनीत
सरोद के सुरों से श्रोताओं को झुमा देने वाले सरोद वादक पंडित विकास महाराज

सबके अपने, सबके प्यारे चितरंजन भाई को सलाम…
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June 27, 2020

वो जहां जाते थे, जिससे मिलते थे, सबके बहुत अपने हो जाते थे... उनकी सादगी और संघर्ष की कहानियां तमाम हैं... हर साथी की अपनी अपनी यादें हैं, अपने अपने अनुभव हैं... सबके लिए वो चितरंजन भाई थे.. हमारे लिए भी... गमछा गले में लपेटे या कभी कभार पगड़ी की तरह बांध लेते, पान खाते, गोल मुंहवाले बहुत ही प्यारे से लेकिन सबके संघर्ष के साथी... खुद की तकलीफों की कभी परवाह नहीं की... बातें करने से ज्याद

आसान नहीं है कविता पोस्टर की कला…
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June 22, 2020

कविता पोस्टर एक कला है और प्रगतिशील आंदोलन का एक मजबूत हथियार ♦  रवीन्द्र त्रिपाठी पिछले तीस पैंतीस बरसों से हिंदी भाषी इलाके में कविता को लेकर एक नई तरह की उत्सुकता पैदा हुई है।  कविता  पोस्टरों के रूप में। कई ऐसे कविता प्रेमी सामने आए हैं जो कविताओं या काव्य पंक्तियों के पोस्टर बनाते हैं। कुछ इनकी प्रदर्शनियां भी लगाते हैं। कुछ, बल्कि ज्यादातर, स

तुम भी बैठ जाओ किसी की ‘गोदी’ में…
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June 21, 2020

देख तमाशा दुनिया का...
आलोक यात्री की कलम से
  "अजी सुनते हो... पूरी दुनिया के दफ्तर खुल गए... मुए एक तुम्हारे दफ्तर को ही आग लगी है... कुछ तो शर्म करो... घर से ऑफिस कब तक चलाओगे... अब तो कामवाली से ल

ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो…
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June 17, 2020

ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो... भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी.... इतनी कामयाबी, इतनी शोहरत... लेकिन एक ऐसा अकेलापन जिसने एक बेहतरीन और संभावनाओं से भरे कलाकार को खुदकुशी जैसी कायराना ह

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