रंगमंच का नया ट्रेंड : छत पर नाटक

रंगमंच के तमाम आयामों और थिएटर पर चलने वाली बहसों को करीब से देखने समझने और उसपर  लगातार लिखने वाले नाटककार राजेश कुमार ने दिल्ली के उस नए ट्रेंड को पकड़ने की कोशिश की है जो रंगकर्मियों के लिए नया उत्साह जगाने वाला है। अब तक कई चर्चित नाटक लिख चुके राजेश कुमार ने स्टूडियो थिएटर की इस नई परिकल्पना को करीब से देखा। कैसे बड़े बड़े और महंगे ऑडिटोरियम से निकाल कर थिएटर को घर की छत पर या फिर किसी मकान के बड़े हॉल में करने की परंपरा शुरु हुई है और कैसे युवा रंगकर्मी इस प्रयोग में कामयाब हो रहे हैं, यह अपने आप में सकारात्मक संकेत है। राजेश कुमार ने अपने फेसबुक वॉल पर दिल्ली के लक्ष्मी नगर इलाके में तेजी से बढ़ रहे स्टूडियो थिएटर के इस प्रचलन के बारे में लिखा है और वहीं छत पर एक नाटक देखते हुए उसके बारे में लिखा है। 7 रंग के रंगमंच प्रेमी पाठकों के लिए राजेश कुमार का वही आलेख पेश है।

यमुना पार दिल्ली में लक्ष्मी नगर है । मंडी हाउस के सबसे करीब का मोहल्ला । मोहल्ला छोटे शहरों में चलता है, बड़े शहर में इलाका भी कह सकते हैं । इस इलाके में दर्जन भर स्टूडियो थिएटर है। कोई बेसमेंट में तो कोई दूसरे, तीसरे तल पर तो कोई छत पर । इस इलाके में सैकड़ों एक्टर कमरा ले कर रहते हैं । एनएसडी या फ़िल्म में जाने की तैयारी करते हैं ।

ब्लैक पर्ल आर्ट्स इन्हीं में से एक नाट्य संस्था है जो लक्ष्मी नगर में मेट्रो पिलर 34 के समीप गोयल काम्प्लेक्स की छत पर रेगुलर वर्कशॉप करती है और कोई नाटक तैयार होने पर दर्शकों के बीच मंचन भी करती है । नवंबर 21 को ब्लैक पर्ल आर्ट्स का ऐसा ही मंचन देखने को मिला । कोई कल्पना तक नहीं कर सकता है कि छत पर नाटक देखने का कैसा फील हो सकता है ? पूरा रंगमंच छत पर क्रिएट का दिया गया था। लाइट और विंग्स का समुचित इंतज़ाम । लाइट कंट्रोल करने के लिए अलग केबिन । तकरीबन 100 लोगों के बैठने का इंतज़ाम। नाटक शुरू होने के पहले दीर्घा में पूरे लोगों की उपस्थिति । मंडी हाउस के अभिजात्य रंगमंच का पूरा विकल्प छत पर स्थित था ।

वहां अमूल सागर के निर्देशन में दो नाटकों का मंचन किया गया । दोनों नाटकों के लेखक अमूल सागर ही थे । दोनों की अवधि तकरीबन 25 मिनट की थी । दोनों नाटकों को ब्लैक पर्ल के कलाकारों ने किया ।

पहला नाटक संबंध पर आधारित था । एक दुर्घटना में पुत्र के मरने के बाद पति – पत्नी के बीच परस्पर मतभेद होने के कारण तलाक के द्वंद को लेकर था। संबंधों की टकराहट को सिमरन सिंह और पारिख ने अत्यंत बारीकी से नाटक में उतारा। सिमरन सिंह के संवादों में जो स्पष्टता थी,वो नाटक की संवेदनाओं को दर्शकों तक सहज संप्रेषित कर रही थी ।

दूसरा नाटक ‘धुंध’ समसामयिक और वैचारिक था । इनदिनों विशेष कर अल्पसंख्यकों को जिस तरह निशाने पर लेकर टारगेट किया जा रहा है, गलतफहमियां पैदा की जा रही है , उसकी बड़े तनाव और मनोरंजक ढंग से प्रस्तुत किया गया था ।इसके लिए अमूल सागर बधाई के पात्र हैं जिन्होंने नाटक को कहीं से संकीर्ण नहीं बनने दिया । जहां आजकल के लेखक और रंगकर्मी ऐसे तल्ख विषय से बचने की कोशिश करते हैं , अमूल सागर और उनके तमाम रंगकर्मी अपनी स्पष्ट वैचारिकता से रंगमंच को सार्थकता प्रदान करते हैं ।

जो भी हो , नाटक हॉल में, नुक्कड़ पर देखने का मजा तो है ही, रूफ पर देखने का एक अलग ही मजा है ! बिल्कुल नया स्वाद । कभी मौका मिले तो जरूर देखिए ।

(राजेश कुमार के फेसबुक वॉल से साभार)

Posted Date:

November 24, 2022

10:38 pm Tags: , , , ,
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