यूपी के अदबी शहर इलाहाबाद की शिनाख्त है उर्दू अदब के तंजोमिज़ाह के नामचीन शायर अकबर इलाहाबादी। अपनी शायरी से समाज को वक्त वक्त पर आगाह करने वाले इस शायर को उनके अपने ही शहर और अदब के लोग भूल गए। यह चुभन इसलिए भी सबसे ज्यादा होगी क्योंकि अकबर इलाहाबादी साहब को गुज़रे इसी 9 सितंबर को सौ साल हो गए। हिम्मतगंज में स्थित अकबर इलाहबादी की इस सुनसान मजार में न
कांग्रेस जब भी अपने पूर्वजों की बात करती है यूपी के इलाहाबाद का ज़िक्र ज़रुर उसमें आता है जिसमे वहां का आनंद भवन और स्वराज भवन भी शामिल हैं। इसी की गवाह बनती है ये ऐतिहासिक इमारतें जिनके चप्पे चप्पे में स्वतंत्रता संघर्ष की नीति के चिंतन मनन की खुशबू आती है।
हिंदी सिनेमा की जानी मानी अदाकारा और दिलीप कुमार साहब की बेगम साहिबा सायरा बानो की तबियत खराब हो गई है। उन्हें मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में भर्ती कराया गया है। जानकारी के अनुसार, 77 साल की सायरा बानो को 3 दिन पहले अस्पताल में भर्ती किया गया था। ब्लड प्रेशर की शिकायत के
किशोरावस्था में जब रंगमंच से नाता जुड़ा और लखनऊ में हम थिएटर की दुनिया से जुड़े...अखबारों और पत्र पत्रिकाओं के लिए रंगमंच पर लिखना शुरु हुआ तब एक नाम हम सबके लिए आदर्श हुआ करता था - उर्मिल कुमार थपलियाल। रवीन्द्रालय में अक्सर दर्पण नाम की उनकी संस्था के तमाम शो होते और हम वहां मौजूद होते.. एक वक्त था जब दर्पण ने लखनऊ समेत उत्तर प्रदेश में एक खास पहचान बनाई और रंगमंच की दुनि
भारतीय जन नाट्य संघ (इंडियन प्रोग्रेसिव थिएटर एसोसिएशन) यानी इप्टा ने बहुत ही संज़ीदगी के साथ जाने माने लेखक, पत्रकार, और फिल्मकार ख्वाज़ा अहमद अब्बास को याद किया... इसी कड़ी में अब्बास की फिल्मों और खासकर उनकी फिल्म हिना को केन्द्र में रखकर उनकी रचनात्मक दृष्टि पर चर्चा हुई... इसकी रिपोर्ट इप्टा की ओर से 7 रंग के लिए अर्पिता ने भेजी है...Read More
सिनेमा के शहंशाह आप उन्हें कह सकते हैं। सिनेमा को नई परिभाषा देने वाले और अभिनय को एक ऊंचाई तक पहुंचाने वाले दिलीप कुमार पर तमाम लोग अपने अपने तरीके से अभिव्यक्त कर रहे हैं। फिल्मों को करीब से देखने और महसूस करने वाले जाने माने पत्रकार और लंबे समय तक जनसत्ता से जुड़े रहे प्रताप सिंह ने दिलीप कुमार को कैसे देखा, कैसे याद किया और कैसे उन्हें महसूस किया.. 7 रंग क
हिन्दी के जिन चार बड़े समकालीन कवियों की चर्चा अक्सर होती है उनमें त्रिलोचन, केदार नाथ अग्रवाल, शमशेर और नागार्जुन शामिल हैं। दरअसल प्रगतिशील धारा के इन कवियों को एक ऐसे दौर का कवि माना जाता है जब देश राजनीतिक उथल-पुथल के साथ तमाम जन आंदोलनों के दौर से गुजर रहा था।
सत्तर और अस्सी
आज कबीरदास का जन्मदिन है। आम तौर पर कबीरदास को कबीर ही कहते हैं और उनके अनुयायियों को कबीरपंथी। आज जिस सूफ़ी संगीत की दुनिया दीवानी है, वह सूफ़ीवाद भी कबीर से ही आता है। ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर...यानी सबसे प्यार करो, सबकी मदद करो, बहुत की चाह मत करो। कबीर की नज़र में जीवन के अपने मायने हैं और उनके दोहे कहीं न कहीं आपको ब्रह्म और आध्या