शख्सियत
भारतीय रंगकर्म को अनुशासनबद्ध किया अल्काज़ी ने
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August 6, 2020

भारतीय रंगमंच के पुरोधा कहे जाने वाले इब्राहिम अल्काज़ी ने रंगमंच की दुनिया को क्या क्या दिया, उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के निदेशक के तौर पर क्या क्या किया, एनएसडी जैसे बड़े फलक को संभालते हुए कैसे वो आधुनिक भारतीय रंगमंच के सम्राट बन गए और क्यों उन्हें रंगमंच के 'तुग़लक' जैसी उपाधियां मिलीं... ऐसे तमाम आयामों पर जाने माने रंगकर्मी-पत्रकार और आगरा में एक बेहद ज़मीन से जुड़ी सां

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एक जीवंत किंवदंती बन गए थे इब्राहिम अल्काजी
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August 4, 2020

इब्राहिम अल्काजी का जाना भारतीय रंगमंच के लिए एक बहुत बड़े शून्य की तरह है... उन्होंने रंगमंच के लिए जितना कुछ किया और भारतीय रंगमंच को जो ऊंचाई दी उसे कभी भूला नहीं जा सकता। जाने माने रंगकर्मी अरविंद गौड़ ने अल्काजी  की रंगमंच यात्रा को कैसे देखा और उन्हें कैसे महसूस किया, इसे हर रंगप्रेमी और थिएटर से जुड़े लोगों को ज़रूर पढ़ना चाहिए... 7 रंग परिवार आदरणीय अल्काजी को अरविंद गौड़ के इस

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वो जब याद आए, बहुत याद आए…
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July 31, 2020

साठ से अस्सी के दशक को फिल्म संगीत का सुनहरा दौर कहा जाता था और तब के मधुर गाने आज भी लोगों की ज़ुबान पर हैं। इस दौर को इतना मधुर और यादगार जिन आवाज़ों ने बनाया उनमें मोहम्मद रफी, मुकेश, किशोर कुमार, मन्ना डे, महेन्द्र कपूर, हेमंत कुमार, तलत महमूद, लता मंगेशकर, आशा भोंसले, शमशाद बेगम जैसे नाम हैं जिनकी आवाज़ दिल के भीतर तक उतर जाती थी। इन्हीं में से एक आवाज़ है मोहम्मद रफ़ी साहब की।

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बटालवी ने बताया था, मोहब्बत गुम है
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July 22, 2020

जो लोग थोड़ा बहुत पंजाबी साहित्य को करीब से जानते हैं उनके लिए शिव कुमार बटालवी का नाम उतना अनजाना नहीं है.. लेकिन हिन्दी या अन्य भाषाओं के साहित्य जगत के लोगों के लिए बटालवी कुछ दिनों पहले तक बहुत नहीं जाने जाते थे.. कुछ साल पहले एक फिल्म आई उड़ता पंजाब.. और उसमें एक गीत इस्तेमाल किया गया... नए संदर्भों में...  दर्द और तड़प से भरा हुआ... इक कुड़ी जि दा नां मोहब्बत.. गुम है..गुम  है...गुम है.. ये गी

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गोपाल दास ‘नीरज’ को सुनना और महसूस करना…
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July 19, 2020

19 जुलाई 2018 को जब गोपाल दास ‘नीरज’ ने करीब 94 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहा तो मानो एक युग का अंत हो गया...लेकिन उनकी रचनाएं अमर हैं.. आज भी लोगों की ज़बान पर गूंजती हुई...उनके आखिरी दिनों में उन्हें करीब से देखने, समझने और महसूस करने का मुझे अलीगढ़ के उनके घर में मौका मिला था। एक पूरा दिन उनके साथ गुज़ारना, उनके जीवन के तमाम पहलुओं के बारे में अंतरंग बातें... आज के दौर की कविता से लेकर गीत

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साहित्य, समाज और संघर्ष के संवेदनशील ‘यात्री’
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July 10, 2020

जब भी आप जाने माने कथाकार, व्यंग्यकार और बेहद संवेदनशील लेखक से रा यात्री से मिलेंगे, आपको इस 88 बरस के नौजवान के भीतर अपार रचनात्मक ऊर्जा मिलेगी... सेहत बेशक साथ नहीं देती, ज्यादातर वक्त बिस्तर पर गुज़रता है और कुछ बीमारियों ने उन्हें बरसों से जकड़ रखा है, लेकिन जब यात्री जी अपनी रौ में बातें करते हैं तो दुनिया जहान की तमाम खबरों, साहित्य जगत की हलचलों के अलावा अपने दौर की ढेर सारी यादो

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एंथोनी पाराकल: पत्रकारिता का एक आयाम ऐसा भी
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July 7, 2020

एक दौर था जब “संपादक के नाम पत्र” का महत्व समाचार पत्रों में अग्रलेखों के ठीक बाद हुआ करता था| चर्चित पत्र अंतिम होता, तो श्रेष्ट पत्र पर पारितोष की परम्परा भी थी| ज़माना बदला| अब विज्ञापनदाता ही भारी भरकम संवाददाताओं को कोहनी मार देते हैं| तो अदना पाठक की क्या विसात? उसका कालम-स्पेस तो सिकुड़ेगा ही| ऐसे मंजर में 4 जुलाई 2020 को मुंबई के मलाड में 90-वर्षीय एंथोनी पाराकल का निधन पीड़ादायक है|

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‘नेपाल आता हूं, तो लगता है घर में बांसुरी बजा रहा हूं’
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July 1, 2020

अभी एक साल भी नहीं बीता है... भारत के 73वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर मशहूर बांसुरी वादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया कांठमांडू गए तो उनका वहां के तमाम युवा कलाकारों ने बांसुरी बजाकर अभिनंदन किया, भारतीय दूतावास की ओर से आयोजित उनके शो में नेपाल के उप प्रधानमंत्री से लेकर विदेश मंत्री और तमाम मंत्रिगण मौजूद रहे, पूरा हॉल तालियों से गूंज रहा था... नेपाल और भारत के बीच पारंपरिक सांस्कृतिक र

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जब अतीत में झांकते हैं जाने माने पत्रकार त्रिलोक दीप….
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June 29, 2020

एक वक्त था जब ‘दिनमान’ को रघुवीर सहाय के साथ साथ त्रिलोक दीप के नाम से भी पहचाना जाता था। सत्तर का दशक था और दिनमान तब की सबसे बेहतरीन, गंभीर और सामयिक समाचार साप्ताहिक पत्रिका हुआ करती थी। टाइम्स ग्रुप की हिन्दी पत्रिकाओं में तब धर्मयुग, दिनमान, सारिका. माधुरी, पराग जैसी पत्रिकाएं थीं और दूसरी तरफ हिन्दुस्तान टाइम्स ग्रुप हिन्दी में साप्ताहिक हिन्दुस्तान, कादम्बिनी, नंदन जैसी पत

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गुलजार देहलवी : तुम याद करोगे हमारे बाद हमें
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June 13, 2020

आनंद मोहन जुत्शी उर्फ गुलज़ार देहलवी साहब बेशक 95साल के रहे हों, लेकिन उनके भीतर का शायर बदस्तूर अपनी पूरी रवानगी के साथ मौजूद था। उनके गुज़रने से दिल्ली वालों का अज़ीम शायर तो चला ही गया, शायरी की दुनिया का वो शख्स भी चला गया जिसकी मौजूदगी का एहसास हर आम ओ खास महफ़िल में ज़रूर होता था। गुलज़ार देहलवी साहब तमाम मंचीय शायरों की उस फ़ौज का हिस्सा नहीं थे, जिनकी मार्केटिंग और वाहवाही के ल

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