और विनोद दुआ भी चले गए... कुछ महीने पहले चिन्ना दुआ गई थीं तो कोरोना से टूट चुके विनोद जी बेहद अकेले हो गए थे... खुद को उबारने की कोशिश बहुत की, लेकिन बाहर नहीं निकल सके...उनका जाना एक जीवंत और जुझारू शख्सियत का बहुत जल्दी चले जाने जैसा है... उनमें एक पत्रकार के साथ साथ पूरा देश बसता था, यहां की संस्कृति, मिट्टी की महक, जायके की खूशबू और सियासत की बात करें तो सत्ता की विद्रूपताओं पर उनकी तल्ख व्
Read Moreहिंदी साहित्य की प्रसिद्ध लेखिका मन्नू भंडारी का निधन हो गया. वह 90 वर्ष की थीं. ‘महाभोज’ और ‘आपका बंटी’ जैसी कालजयी रचनाओं की लेखिका मन्नू भंडारी ने सोमवार की सुबह अंतिम सांस ली. मन्नू भंडारी के पिता सुख सम्पतराय भी जाने माने लेखक थे. वर्तमान में वह गुडगांव में अपनी बेटी रचना यादव के पास रहती थीं. वह लंबे समय से बीमार चल रही थीं.
Read Moreनेहरू गांधी की इस विरासत से जुड़ा एक और स्थान भी हर साल आठ सितम्बर को बरबस ही जेहन में कौंध जाता है जिसकी पहचान गांधी नेहरू परिवार के सदस्य फिरोज़ गांधी के साथ जुड़ी हुई है। यह विरासत है शहर के ममफोर्ड गंज में स्थित वह पारसी कब्रिस्तान जिसकी एक कब्र का रिश्ता पंडित जवाहर लाल नेहरु के दामाद उस फिरोज़ गांधी से है जो अपनी बेदाग़ और निष्पक्ष जनप्रिय नेता की छवि के रूप में इतिहास में दर्ज ह
Read Moreअभिनय के आसमान दिलीप कुमार सौ बसंत पूरे होने से पहले ही स्मृति-लोप के साथ इस दुनिया से विदा ले गए। हमारे समय के सबसे कड़े लिक्खाड़ कवि और सिने विशेषज्ञ विष्णु खरे जी ने उनकी रेंज पहचानते हुए कभी दिलीप कुमार को विश्व कोटि के बेहतरीन अदाकार पाल मुनि और मार्लेन ब्रांडो की कद-काठी और उन्हीं की श्रेणी का बताया था। तो इसमें अतिश्योक्ति नहीं है।
Read Moreहिन्दी के जिन चार बड़े समकालीन कवियों की चर्चा अक्सर होती है उनमें त्रिलोचन, केदार नाथ अग्रवाल, शमशेर और नागार्जुन शामिल हैं। दरअसल प्रगतिशील धारा के इन कवियों को एक ऐसे दौर का कवि माना जाता है जब देश राजनीतिक उथल-पुथल के साथ तमाम जन आंदोलनों के दौर से गुजर रहा था।
Read Moreसुंदरलाल बहुगुणा के देह त्यागने के साथ ही आज जैसे एक हिमयुग का अंत हो गया. लेकिन वास्तव में देह तो उन्होंने दशकों पहले तब ही त्याग दी थी जब हिमालय और नदियों की अक्षुण्णता बनाए रखने और बांधों से उन्हें न जकड़ने की मांग को लेकर उन्होंने लंबे सत्याग्रह और उपवास किए. प्रकृति की ख़ातिर तभी वो विदेह हो चुके थे. अपने शरीर को कष्ट दे ये समझाने की कोशिश करते रहे कि कुदरत का कष्ट कहीं ज़्यादा बड
Read Moreअपनी कविता के माध्यम से प्रकृति की सुवास सब ओर बिखरने वाले कवि सुमित्रानंदन पंत का जन्म कौसानी (जिला बागेश्वर, उत्तराखंड) में 20 मई, 1900 को हुआ था। जन्म के कुछ ही समय बाद मां का देहांत हो जाने से उन्होंने प्रकृति को ही अपनी मां के रूप में देखा और जाना। दादी की गोद में पले बालक का नाम गुसाई दत्त रखा गया; पर कुछ बड़े होने पर उन्होंने स्वयं अपना नाम सुमित्रानंदन रख लिया। सात वर्ष की अवस्था से
Read Moreएक बेहद जीवंत और उम्मीदों से भरे कवि-गीतकार कुंअर बेचैन का जाना आहत करने वाली ख़बर है... गाज़ियाबाद में अमर उजाला का संपादक रहते हुए मैं डॉ बेचैन के करीब आया... उनसे मुलाकातें हुईं.. उनकी जीवंतता का गवाह बना... शहर के तमाम अति वरिष्ठ और आदरणीय शख्सियतों को हमने अपने अखबार के जरिये सम्मानित करने का एक छोटा सा प्रयास किया। उनके अनुभवों को अखबार में विस्तार से छापा...उन्हीं में हमारे डॉक्टर
Read Moreआखिर राहुल सांकृत्यायन में ऐसा क्या है जो उन्हें बार बार पढ़ने और याद करने की ज़रूरत महसूस होती है? आखिर मौजूदा दौर में राहुल सांकृत्यायन क्यों ज़रूरी हैं? क्यों उनकी किताब 'वोल्गा से गंगा' का ज़िक्र हमेशा आता है और क्यों एक ब्राह्मण होने के बाद भी उन्होंने ब्राह्मणवाद और ढकोसलों का खुलकर विरोध किया? उनके तार्किक विश्लेषणों और समाज को देखने के उनके नज़रिये ने कैसे एक नए समाज की परि
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