जब अतीत में झांकते हैं जाने माने पत्रकार त्रिलोक दीप….

एक वक्त था जब ‘दिनमान’ को रघुवीर सहाय के साथ साथ त्रिलोक दीप के नाम से भी पहचाना जाता था। सत्तर का दशक था और दिनमान तब की सबसे बेहतरीन, गंभीर और सामयिक समाचार साप्ताहिक पत्रिका हुआ करती थी। टाइम्स ग्रुप की हिन्दी पत्रिकाओं में तब धर्मयुग, दिनमान, सारिका. माधुरी, पराग जैसी पत्रिकाएं थीं और दूसरी तरफ हिन्दुस्तान टाइम्स ग्रुप हिन्दी में साप्ताहिक हिन्दुस्तान, कादम्बिनी, नंदन जैसी पत्रिकाएं निकालता था। सारिका के संपादक थे कमलेश्वर जी, धर्मयुग के धर्मवीर भारती, दिनमान के रघुवीर सहाय और पराग के कन्हैयालाल नंदन। वक्त बदला और टाइम्स ग्रुप की पत्रिकाएं भी अपना स्वरूप बदलते बदलते बंद होती गईं। दिनमान बाद में दिनमान टाइम्स हो गया और सर्वेश्वर दयाल सक्सेना से होते हुए घनश्याम पंकज तक के दौर देखते हुए ये पत्रिकाएं दफ्न हो गईं। जब दिनमान अपने स्वर्णिम काल में था तो सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, त्रिलोक दीप, जवाहर लाल कौल, श्रीकांत वर्मा, महेश्वर दयालु गंगवार, नरेश कौशिक की रिपोर्ट्स के बगैर कोई भी अंक पूरा नहीं होता था। देश के तमाम हिस्सों से लिखने वाले कई पत्रकार तो होते ही थे। दिनमान में छपना अपने आप में बहुत गर्व की बात मानी जाती थी।

ऐसे में घुमंतू, जीवंत और देश दुनिया को बारीकी से देखकर उनके सधे हुए रिपोर्ताज के लिए त्रिलोक दीप को उस दौर की पत्रकारिता का हर शख्स जानता था… सत्ता से लेकर विपक्ष तक और राजनयिक से लेकर नौकरशाह तक… देश ही नहीं दुनिया के तमाम हिस्सों में त्रिलोक जी जाने जाते थे। पत्रिकाओं के अवसान के दौर में जब संडे मेल और संडे ऑब्जर्वर जैसी पत्रिकाएं जोर शोर से निकाली गईं तो संडे मेल में त्रिलोक जी ने अहम ज़िम्मेदारी संभाली। मेरी मुलाकात उन्हीं दिनों त्रिलोक दीप से हुई थी। हमारे तमाम वरिष्ठ और हमउम्र साथी वहां पहले से थे – अनिल शुक्ल, वीरेन्द्र सेंगर, विनोद चंदोला वगैरह। त्रिलोक जी को पढ़ता तो अक्सर था, लेकिन मिला वहीं।

अब जब पत्रकारिता नए दौर में नई परिभाषा के साथ अजीबोगरीब हालत में पहुंच गई है और सोशल मीडिया अपने विशाल आकार और अस्तित्व के साथ हर आदमी की ज़िंदगी में बेहद गहराई के साथ घुसपैठ कर चुका है, तो उस दौर के उन तमाम पत्रकारों के अनुभव बेहद अनमोल हो गए हैं। आप सभी वरिष्ठ पत्रकारों के फेसबुक वॉल पर चले जाइए, आपको अनुभवों का खजाना मिलेगा, विचारों की बाढ़ और हर मुद्दे पर अपनी बात रखने की होड़ नज़र आएगी। आज हर कोई पत्रकार है, हर कोई लेखक और कवि है, हर किसी के भीतर छिपी प्रतिभा उबाल ले रही है और ऐसे में फर्जी सूचनाओं का भंडार, झूठ का व्यापार और अफवाहों का बाज़ार आपको हर तरफ नज़र आएगा। आप सही-गलत नहीं पहचान पाएंगे, लेकिन वक्त ने ऐसी लत लगाई है कि हर आदमी अपने मोबाइल पर हर वक्त उंगलियां फिराता और आंखें गड़ाए नज़र आता है। खुद ही पढ़ता है, हंसता है, दुखी होता है, गुस्सा होता है और अपने अपने वॉल पर अपने मन की तमाम भावनाएं लिख डालता है। और तो और लीजिए, इस कोरोना काल ने तो लोगों के पास वक्त ही वक्त दे रखा है। लगे रहिए।

बहुत ही दिलचस्प ज़माना है। लेकिन ऐसे में उस दौर के तमाम संवेदनशील, गंभीर और पढ़ने लिखने वाले पत्रकार खूब याद आते हैं। उनका लेखन याद आता है। बेशक इस सोशल मीडिया का ये भी बड़ा फायदा है कि आप उनमें से कई लोगों को यहां पढ़ सकते हैं। और उनमें से कई जब अपने दौर की यादें शेयर करते हैं, पुराने अल्बम से तस्वीरें निकालते हैं और अपनी उसी भाषा को फिर से जीवंत करते हैं तो आज के दौर के लिए वो बेशक एक खजाने की तरह होते हैं।

त्रिलोक दीप जी के फेसबुक वॉल पर भी इन दिनों उनके अतीत का आईना नज़र आता है। उनकी तमाम स्मृतियां जीवंत हो उठती हैं और जब उनकी डायरी के पन्ने खुलते हैं तो पढ़ने वाले खुद को रोक नहीं पाते… हमने उनसे फेसबुक पर ही पूछा कि क्या हम आपके इन संस्मरणों को 7 रंग में इस्तेमाल कर लें… तो एक पत्रकार के कुछ जायज़ सवालों के साथ और हमारी सीमाओं को देखते हुए उन्होंने इसकी इजाज़त दे दी, वैसे भी सोशल मीडिया की इस सार्वजनिक संपत्ति को हम उनसे साभार ‘7 रंग’ के पाठको के लिए ला रहे हैं। उम्मीद है आपको अच्छा लगेगा। त्रिलोक जी को धन्यवाद और आभार के साथ….

पढ़िए ये लिंक –

जब त्रिलोक दीप पहली बार लद्दाख़ गए….https://7rang.in/trilok-deep-in-laddakh/

Posted Date:

June 29, 2020

3:09 pm Tags: , , , , ,
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