कोणार्क के सूर्य मंदिर को देखिए-समझिए…

आज के दौर में पत्रकारिता जिस दौर में पहुंच चुकी है, उसमें इस पेशे में रहकर अपनी भीतर की संवेदनशीलता और दृष्टि को बचाकर रखना एक चुनौती से कम नहीं… जो लोग इस चुनौती को कबूल करते हैं उनमें से एक अहम नाम है प्रभात सिंह का… लंबे समय तक ‘अमर उजाला ‘के ज़िम्मेदार पदों पर रहने के बाद अब वह अपने मन की पत्रकारिता कर रहे हैं अपनी वेबसाइट संवाद न्यूज़ डॉट इन के ज़रिये। प्रभात सिंह एक बेहतरीन फोटोग्राफर हैं, कला-संस्कृति-इतिहास-पुरातत्व में खासी दिलचस्पी रखते हैं। उनकी वेबसाइट पर तमाम पठनीय चीजें आपको मिल जाएंगी। उनमें से कुछ हम 7 रंग के पाठकों के लिए लाते रहेंगे। फिलहाल प्रभात सिंह का यह फोटो फीचर देखिए जो उन्होंने उड़ीसा के मशहूर कोणार्क के सूर्य मंदिर में घूमते हुए अपने कैमरे में कैद किया है

मुखशाला है. मंदिर नहीं. इसे ही सब कहते हैं कोणार्क मंदिर. पद्मक्षेत्र या अर्कक्षेत्र कोणार्क एक तीर्थस्थान है. कोणार्क सिर्फ़ ओड़िया जाति के भक्ति मानस का ही परिचायक नहीं, उड़िया शिल्प प्रतिभा का अक्षय स्मृति स्तंभ है.

स्थापत्य के इतिहास में कोणार्क मंदिर अद्वितीय है. भग्नावेश में भी भास्कर्य-नैपुण्य हर शिला पर विश्ववासियों को चकित कर देता है. परंतु आज जो कोणार्क देखने जाते हैं, उनमें धर्मभावना या कलानुराग से बढ़कर आमोद-प्रमोद, मनोरंजन या मौज-मस्ती की वासना अधिक मुखर होती है.


उड़िया लेखक प्रतिभा राय ने अपने उपन्यास शिलापद्म यानी कोणार्क की भूमिका में ऐसा ही लिखा है.


इस उपन्यास ने ही पहली बार कोणार्क को देखने से ज्यादा समझने की ललक जगाई. यों सब जानते हैं कि कोणार्क तेरहवीं सदी का सूर्य मंदिर है, बारह जोड़ी सुसज्जित पहिओं वाला रथ, जिसे सात घोड़े खींचते हैं. हज़ारों शिल्प आकृतियां भगवानों, देवताओं, गंधर्वों, इंसानों, वाद्यकों, प्रेमी युगलों, दरबार की छवियों, शिकार एवं युद्ध के चित्रों से भरी हैं और इनके बीच में पशु-पक्षियों और पौराणिक जीवों के अलावा महीन और पेचीदा बेल बूटे तथा ज्यामितीय नमूने हैं.


ये तस्वीरें कोणार्क मंदिर को क़रीब से देखकर समझने की कोशिश का नतीजा है… चलिए कुछ और तस्वीरें देखते हैं….

सभी तस्वीरें और आलेख — प्रभात सिंह

Posted Date:

April 9, 2020

12:10 pm Tags: , , , , , , , ,
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