‘परंपरा में बंधने के बजाय मुक्त भाव से लिखे रचनाकार’
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July 24, 2023

कथा संवाद' के विमर्श के केंद्र में रही कथ्य की विविधता 
'कथा संवाद' जैसे मंच नए रचनाकारों को गढ़ने का काम करते हैं : रवि कुमार सिंह
जटिलता के बजाए सहजता को बनाए लेखन का आधार : प्रितपाल कौर
2291 में से निकले 20 कलाकार, मिलेगा अकादमी पुरस्कार
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June 7, 2023

ललित कला अकादमी के राष्ट्रीय पुरस्कारों का ऐलान सम्मानित होंगे 20 कलाकार 63वें राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी में शामिल होंगी 297 कृतियां नई दिल्ली। अपनी कला को एक खास मुकाम तक पहुंचाने और उनमें विविध आयाम

सदी के बदलाव का बयान है आज की कहानी : अब्दुल बिस्मिल्लाह
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May 22, 2023

ऐसे समारोह नए रचनाकारों को आगे बढ़ने का हौसला देते हैं : मैत्रेयी पुष्पा
 
गाजियाबाद 21 मई को साहित्य की कुंभ नगरी बन गया। पांच सत्रों में कहानी से लेकर रंगमंच और साहित्य की तमाम विधाओं पर बेहद रचनात्मक चर्चा हुई। 'कथा रंग' की ओर से आयोजित कहानी मह

रंगमंच में स्त्री के लिए जगह…
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April 10, 2023

 रंगमंच के क्षेत्र में आखिर महिलाओं की संख्या या जगह इतनी कम क्यों है? क्या इसके पीछे कोई वर्णवादी सोच है या पुरुषवादी वर्चस्व का आदिकालीन नज़रिया? क्या आज के दौर में भी रंगमंच नाट्यशास्त्र के उन्हीं मान्यताओं पर चल रहा है जिसे भरतमुनि ने रचा था? क्या ब्राह्मणवादी साहित्य की अवधारणाओं में महिलाओं का स्थान शूद्रों की तरह रहा है और रंगमंच में भी कहीं न कहीं ये अवध

रचना में यथार्थ से समझौता न करें: अब्दुल बिस्मिल्लाह
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April 2, 2023

अदभुत है उम्रदराज नवांकुर रचनाकारों का रचना संसार और उनसे संवाद : विजयश्री तनवीर
  ग़ाज़ियाबाद। कथा रंग द्वारा आयोजित "कथा संवाद" में सुनाई गई कहानियों पर प्रतिक्रिया

सेज चढ़त डर लागे.. हो रामा..
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March 18, 2023

अगर आपको लोक संगीत और उप शास्त्रीय गायन की विभिन्न शैलियों में दिलचस्पी है तो ये आलेख आपके लिए है। 
होली यानी फाग के बाद चैती का आनंद आपने भी लिया होगा। इस गायन शैली और परंपरा का अपना इतिहास है। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक कुमार नरेन्द्र सिंह ने चैती पर यह शोधपरक और दिलचस्प लेख लिखा है और उनकी किताब का यह एक हिस्सा है। यह लेख पढ़िए और चैत

2022 में रंगमंच: कोरोना काल के बाद नाटकों का सैलाब
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January 6, 2023

कोरोना काल के दो साल रंगकर्मियों के लिए एक दु:स्वप्न की तरह बीते लेकिन 2022 की शुरुआत से लेकर अंत तक जितने नाटक हुए, इतने नाट्य समारोह हुए और रंगकर्मियों ने खुलकर काम करने की कोशिश की, वह काफी हद तक याद रहने वाला है। सबसे बड़ी बात कि कोरोना ने जो शिथिलता और संकट पैदा किया, रंगकर्मियों के प्रति सरकारी संवेदनहीनता का जो रूप दिखा और गंभीर आर्थिक संकट और अनिश्चितता के दौर से गुर

निष्पक्ष पत्रकारिता और संवेदनशीलता के पर्याय थे अतुल माहेश्वरी
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January 3, 2023

हिन्दी पत्रकारिता बेशक आज एक चुनौती भरे दौर से गुजर रही हो, मीडिया का स्वरूप बदल गया हो और तमाम मीडिया संस्थानों ने अपनी कार्यशैली बदल दी हो, लेकिन अमर उजाला एकमात्र ऐसा मीडिया समूह है जिसने अपने मूल्यों से कभी समझौता नहीं किया। न सियासत के बदलते रंगों और सत्ता के इर्द गिर्द खबरें बुनने और परोसने की दौड़ में यह संस्थान कभी रहा और न ही कभी संपादकीय स्वायत्तता पर यहां

कविता में बनारस: नौ सदी के कवियों का दस्तावेज़
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December 30, 2022

  शिव काशी कैसी भई तुम्हारी, अजहूं हो शिव लेहु विचारी। चोवा, चंदन अगर पान घर घर सुमृति होत पुरान।। शिव की नगरी काश

महाबली: इस तुलसीदास को देखना ज़रूरी है
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December 29, 2022

असगर वजाहत के नाटकों में देश और समाज को देखने और इतिहास को वैज्ञानिक तथ्यों के साथ सामने लाने का जो शिल्प है, वह अद्भुत है। उनका ताज़ा नाटक 'महाबली' इसकी मिसाल है। दिल्ली के श्रीराम सेंटर में इस नाटक का पहला शो पिछले दिनों जाने माने रंगकर्मी एम के रैना के निर्देशन में हुआ। महाबली में क्या है खास और कौन हैं इस नाटक के दो महाबली जो हमारे देश में हर वक्त धड़कते रहते हैं, ये जा

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