अस्मिता थिएटर ग्रुप के संस्थापक और मशहूर रंगकर्मी अरविंद गौड़ ने गिरीश कर्नाड को काफी करीब से जाना, महसूस किया और उन्हें जिया है। कर्नाड के नाटकों को अरविंद ने अपने कम संसाधनों के बावजूद एक बड़ा आयाम दिया और अपनी कला दृष्टि के विकास में गिरीश कर्नाड की अहम भूमिका मानते हैं। गिरीश कर्नाड का जाना बेशक रंगमंच की दुनिया के लिए एक बड़ी क्षति है। खास
(अमर उजाला ने गिरीश कर्नाड को बेहद सम्मान दिया। उन्हें अपने सर्वोच्च शब्द सम्मान आकाश दीप से सम्मानित किया। उसी दौरान गिरीश कर्नाड ने अपने दिल की बहुत सी बातें अमर उजाला से साझा कीं। इनमें से कुछ को अमर उजाला काव्य ने छापा। वहीं से आभार के साथ हम गिरीश जी की वो बातें आपके साथ साझा कर रहे हैं जिससे उनकी यात्रा के कई पड़ावों के बारे में उन्हीं क
जाने माने रंगकर्मी और फिल्मकार गिरीश कर्नाड नहीं रहे। लंबी बीमारी के बाद आज सुबह उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। गिरीश कर्नाड अपने मशहूर नाटक 'तुगलक' और फिल्मों में अपने अहम किरदारों की वजह से खासे चर्चित रहे और कन्नड़ साहित्य में उनका जबरदस्त योगदान रहा है। कर्नाड कन्नड़ भाषा के सशक्त हस्ताक्षर होने के साथ ही नाटककार, अभिनेता और फ़िल्म निर्देशक थे। उनके बेहतरीन का
रवींद्र त्रिपाठी
क्या धर्म या अध्यात्म इच्छा और अनिच्छा से परे हो सकता है? दूसरे शब्दों में कहें तो क्या कोई ऐसा मंदिर हो सकता है जिसमें किसी ऐसे भक्त का प्रवेश वर्जित हो जिसमें कुछ इच्छा बची हो? वैसे भी सोचने वाली बात ये है कि कोई भक्त किसी मंदिर या भगवान के सामने तभी तो जाता है जब उसकी कोई मन्नत हो या वो भगवान से कुछ चाहता हो। न
रवींद्र त्रिपाठी
कला में सार्वजनीयता होती है लेकिन साथ ही स्थानीयता भी होती है। पर स्थानीयता के भी कई रूप होते हैं। कुछ कलाकार स्थानीयता को लेकर ज्यादा सजग होते हैं। जैसे कि युवा और उदीयमान पेंटर रजनीश सिंह। रजनीश गोरखपुर
रवीन्द्र त्रिपाठी
विजय तेंदुलकर का लिखा मराठी नाटक `सखाराम बाइंडर’ एक आधुनिक भारतीय क्लासिक का दर्जा हासिल कर चुका हैं और अन्य भाषाओं के अलावा ये हिंदी में भी कई बार खेला जा चुका है। अलग अलग निर्देशकों ने इसे अपने अपने तरीके से पेश किया है। इसी कड़ी में पिछले दिनों दिल्ली के इंडिया हैबिटेट
लखनऊ में लगने जा रही है पोस्टकार्ड की कला प्रदर्शनी
इंटरनेट और ईमेल के ज़माने में लोग भले ही चिट्ठी पत्री के परंपरागत जरिये को भूलते जा रहे हों, अंतरदेशीय और पोस्टकार्ड के नाम से वाकिफ न हों, लेकिन आज भी पोस्टकार्ड की कितनी अहमियत है, इसे कुछ कलाकार शिद्दत के साथ महसूस करते हैं। इस दिशा में लखनऊ का
अपने ज़माने के मशहूर सांस्कृतिक हस्ताक्षर रहे जाने माने यायावर लेखक राहुल सांकृत्यायन के उपन्यास ‘वोल्गा से गंगा तक’ जिसने भी पढ़ा होगा, उसके लिए भारतीय इतिहास में ब्राह्मणवाद के तमाम ढकोसलों को समझना आसान है। राहुल जी ने यह उपन्यास 1943 में लिखा था। साहित्य अकादमी सभागार में 28 अप्रैल को मशहूर स्तंभकार और लेखक कमलाकांत त्रिपाठी की किताब ‘सरयू से गंगा
ललित कला अकादमी पिछले दिनों पांच महिला कलाकारों के बेहतरीन काम का गवाह बनी। इन पांचों कलाकारों ने अपनी सामूहिक प्रदर्शनी का नाम दिया था – ‘प्रथमा’। इन पांचों में एक मूर्तिशिल्पी हैं- निवेदिता मिश्रा, एक सेरामिक कलाकार हैं-मीनाक्षी राजेंद्र और तीन पेंटर हैं-माधुरी शर्मा, सोनी खन्ना और विम्मी इंद्रा। इन कलाकारों ने मिलकर
डी एम मिश्र के गजल संग्रह ‘वो पता ढूँढे हमारा’ का विमोचन
लखनऊ। ‘रेवान्त’ पत्रिका की ओर से कवि डी एम मिश्र के नये गजल संग्रह ‘वो पता ढूंढे हमारा’ का विमोचन 21 अप्रैल 2019 को लखनऊ के कैफ़ी आज़मी एकेडमी के सभागार में सम्पन्न हुआ। यह उनका चौथा गजल संग्रह है। जाने माने आलोचक डा जीवन सिंह, मशहूर कवि व गजलकार रामकुमार कृषक, कवि स्वप