.... प्रयाग शुक्ल के ये रेखांकन रेखा या रेखाओं की भाषा में कविता भी हैं और आलोचना भी। कला समीक्षा में लंबे समय तक सक्रिय होने के कारण आलोचक में भी वो अंतश्चेतना आ सकती जो किसी कलाकार में होती है। वैसे उच्च स्तर की कला और उच्च स्तर के कला लेखन में कोई तात्विक भेद नहीं होता। दोनों एक तरह से सृजन हैं और इसी कारण दुनिया के बड़े कवि कला-आलोचक भी हुए हैं।.... Read More
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जाने माने कार्टूनिस्ट काक जितने सरल हैं, उनकी काक दृष्टि उतनी ही पैनी है। उनका आम आदमी देश का वो तबका है जो ज़िंदगी की जद्दोजहद में हर रोज़ दुनिया को अपने नजरिये से देखता है... और सबसे बड़ी बात कि वह खामोश नहीं रहता.. कोई न कोई टिप्पणी जरूर करता है और वह भी देसी भाषा और गंवई अंदाज़ में....
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जाने माने व्यंग्यकार, पटकथा लेखक और कवि रहे शरद जोशी को मौजूदा दौर के पत्रकार और नई पीढ़ी के लोग कम ही जानते हैं... लेकिन परसाई जी के बाद तमाम व्यंग्यकारों की फेहरिस्त अगर बनाई जाए तो शरद जोशी का नाम सबसे ऊपर आता है। दरअसल शरद जी में वो कला थी कि कैसे सामयिक विषयों और सत्ता की विसंगत
देख तमाशा दुनिया का
फोन "मल्लिका" परवीन का था। तखल्लुस वह नाम से पहले लगाती हैं। इससे पहले भी वाट्सएप पर उनके कई मैसेज आ चुके थे। जिनमें स
12 मई 1993 को जब शमशेर बहादुर सिंह के निधन की खबर अहमदाबाद से आई थी, तब अचानक उनके साथ गुज़रे वो सारे पल हमारे दिलो दिमाग में एक सुखद अतीत की तरह उमड़ने घुमड़ने लगे थे। लखनऊ की पेपरमिल कॉलोनी में पत्रकार अजय सिंह और शो
इक्कीसवीं सदी शुरु हो चुकी थी और बीसवीं सदी ने जाते जाते बॉलीवुड संगीत की दुनिया को एक नई शक्ल दे दी थी। इस नए दौर और संगीत के नए माहौल में भला नौशाद के संगीत को उतनी तवज्जो कैसे मिल सकती थी जितनी इस दौर के धूम धड़ाम वाले संगीतकारों को मिलती है। 5 म
देख तमाशा दुनिया का
"लो जी कल लो बात...?" यह बात करने का कोई न्यौता था या वह सज्जन मुझे कुछ बताना चाह रहे थे? लहजा ही बड़ा अटपटा था- "लो जी.
सत्यजीत रे और उनकी फ़िल्मों के प्रशंसकों के लिए एक ख़ास ख़बर है. रे के जन्म शताब्दी वर्ष के मौक़े पर फ़िल्म्स डिविज़न 2 मई से ‘मास्टरस्ट्रोक्स’ के नाम से ऑनलाइन फ़िल्म फ़ेस्टिवल आयोजित कर रहा है. यह फ़ेस्टिवल 6 मई तक चलेगा. इस दौरान आप फ़िल्म्स डिविज़न की वेब