इस कोरोना काल में राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक स्तर पर तालाबंदी (लॉकडाउन) हुई है। लेकिन दूसरे स्तर पर तालाखुलंदी भी हुई है। ये कला और साहित्य के स्तर पर हुआ है। कलाकार और साहित्यकार का मन किसी भी स्थिति में, तालाबंदी में भी, कैद नहीं रह सकता है और एकांत में भी अच्छी कलाकृतियां रची जा सकती हैं। ऐसा पहले भी हुआ है और इस कोरोना काल में भी हो रहा है।
Read Moreजाने माने कार्टूनिस्ट काक जितने सरल हैं, उनकी काक दृष्टि उतनी ही पैनी है। उनका आम आदमी देश का वो तबका है जो ज़िंदगी की जद्दोजहद में हर रोज़ दुनिया को अपने नजरिये से देखता है… और सबसे बड़ी बात कि वह खामोश नहीं रहता.. कोई न कोई टिप्पणी जरूर करता है और वह भी देसी भाषा और गंवई अंदाज़ में…
Read Moreजाने माने व्यंग्यकार, पटकथा लेखक और कवि रहे शरद जोशी को मौजूदा दौर के पत्रकार और नई पीढ़ी के लोग कम ही जानते हैं… लेकिन परसाई जी के बाद तमाम व्यंग्यकारों की फेहरिस्त अगर बनाई जाए तो शरद जोशी का नाम सबसे ऊपर आता है। दरअसल शरद जी में वो कला थी कि कैसे सामयिक विषयों और सत्ता की विसंगतियों के खिलाफ दिलचस्प तरीके से व्यंग्य किया जाए, भाषा की रवानगी के साथ ही आंचलिकता को बरकरार रखते हुए मुद
Read Moreफोन "मल्लिका" परवीन का था। तखल्लुस वह नाम से पहले लगाती हैं। इससे पहले भी वाट्सएप पर उनके कई मैसेज आ चुके थे। जिनमें से सुप्रभात, गुड मार्निंग जैसे तीन-चार मैसेज का मैं जवाब भी दे चुका था। हमने फोन उठाना ही मुनासिब समझा। क्योंकि मल्लिका जी अनुग्रह-विग्रह में बहुत यकीन रखती हैं।
Read More12 मई 1993 को जब शमशेर बहादुर सिंह के निधन की खबर अहमदाबाद से आई थी, तब अचानक उनके साथ गुज़रे वो सारे पल हमारे दिलो दिमाग में एक सुखद अतीत की तरह उमड़ने घुमड़ने लगे थे। लखनऊ की पेपरमिल कॉलोनी में पत्रकार अजय सिंह और शोभा सिंह के घर शमशेर जी अक्सर आते और ठहरते रहे। वामपंथी आंदोलनों का दौर था, राजनीतिक-सांस्कृतिक गतिविधियां तेज़ थीं और शमशेर जी जैसे तमाम प्रगतिशील रचनाकार हमारी ताकत हुआ कर
Read Moreइक्कीसवीं सदी शुरु हो चुकी थी और बीसवीं सदी ने जाते जाते बॉलीवुड संगीत की दुनिया को एक नई शक्ल दे दी थी। इस नए दौर और संगीत के नए माहौल में भला नौशाद के संगीत को उतनी तवज्जो कैसे मिल सकती थी जितनी इस दौर के धूम धड़ाम वाले संगीतकारों को मिलती है। 5 मई 2006 को जब संगीतकार नौशाद ने दुनिया को अलविदा कहा, तब भी उनके भीतर यही दर्द छलकता रहा - 'मुझे आज भी ऐसा लगता है कि अभी तक न मेरी संगीत की तालीम पूर
Read More"लो जी कल लो बात...?" यह बात करने का कोई न्यौता था या वह सज्जन मुझे कुछ बताना चाह रहे थे? लहजा ही बड़ा अटपटा था- "लो जी... कल लो बात?" हमने गरदन मरोड़ कर चारों तरफ को देखा। ओरे-धोरे कोई नहीं था। फिर यह बात वाली "बात" किसने छेड़ी थी? अलबत्ता एक पड़ोसी अपनी छत पर खींसे निपोरता जरूर नजर आया।
Read Moreसत्यजीत रे की फिल्में देखते हुए आपको अपने आसपास की जन्दगी, सामाजिक सच्चाइयों और उनकी गहरी कला दृष्टि का एहसास होता है। आज के दौर के फिल्मकारों को उनसे बहुत कुछ सीखने की जरूरत है... जन्मशती वर्ष पर रे को नमन...
Read Moreएक ज़माने में सक्रिय पत्रकारिता में रहीं डॉ तृप्ति की कला, साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में गहरी पकड़ रही है। तमाम सामाजिक सवालों के साथ ही तमाम मनोवैज्ञानिक मसलों पर अपनी अहम् राय रखने वालीं डॉ तृप्ति ने इस आलेख के ज़रिये कला के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाने वाले ब्रजमोहन आनंद की कला यात्रा पर बारीक नज़र डाली है।
Read Moreमशहूर कथक नृत्यांगना पद्मश्री शोवना नारायण ने लॉकडाउन के दौरान कथक को कई नए आयाम देने और ज्यादा से ज्यादा बच्चों और युवाओं तक कथक को पहुंचाने का अभियान चलाया है। सूरज की पहली किरण के साथ उनके पैर थिरकने लगते हैं और देर रात तक डिजिटल क्लास के जरिये वो सैंकड़ों युवा कलाकारों से जुड़ी रहती हैं। देश ही नहीं बाहर के देशों में भी उनसे सीखने वाले पहले से कहीं ज्यादा वक्त अब अपनी प्रतिभा क
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