किसी भी देश की संस्कृति को विकसित करने, इसे सहेजने और खुद को अभिव्यक्त करने का एक बेहतरीन ज़रिया है साहित्य। साहित्य वो विधा है जिसके कई आयाम हैं। कहानियां, कविताएं, गीत, शायरी, लेख, संस्मरण, समीक्षा, आलोचना, नाटक, रिपोर्ताज, व्यंग्य – अभिव्यक्ति के तमाम ऐसे माध्यम हैं जिनसे साहित्य बनता है और समृद्ध होता है। साहित्य में समाज और जीवन के हर पहलू की झलक होती है। संवेदनाओं और दर्शन का बेहतरीन मेल होता है। संस्कृति और तमाम कालखंडों की और राजनीति से लेकर बेहद निजी रिश्तों तक की अद्भुत अभिव्यक्ति होती है। भाषा का एक विशाल संसार गढ़ता है साहित्य। साहित्य के मौजूदा स्वरूप, नए रचनाकर्म और छोटे बड़े साहित्यिक आयोजनों के अलावा आप इस खंड में पाएंगे साहित्य का हर रंग…
गुलज़ार साहब की नज़्में हों या उनकी कविताई का अंदाज़, उनकी ज़िंदगी के फ़लसफ़े हों या साहित्यिक शख्सियतों से उनकी मुलाकातों के किस्से... आप सुनेंगे तो सुनते रह जाएंगे... अमृता प्रीतम की सौंवी सालगिरह मनाते हुए उन्हें चाहने वाले बेशक अमृता जी को अपने अपने तरीके से याद कर रहे हैं, लेकिन ज़रा गुलज़ार साहब और अमृता जी की मुलाकात के ये किस्से भी पढ़िए...
Read Moreअथाह ज्ञान का भंडार रहे त्रिलोचन बातचीत करते करते साहित्य, संस्कृति और राजनीति के इतने आयाम बिखेर देते थे कि उन्हें समेट पाना मुश्किल हो जाता था। आप सवाल कविता पर कीजिए तो त्रिलोचन आपको कई देशों की समृद्ध साहित्यिक परंपरा का परिचय कराते हुए वहां की संस्कृति और राजनीति के बारे में बताएंगे और तब कविता पर आंएंगे। अब आप आपना सही उत्तर तलाश लीजिए। विचारों के धरातल पर आप इस 77 साल के नौजव�
Read Moreविष्णु खरे के कवि-व्यक्तित्व को किसी एक खांचे या सांचे में ढाला नहीं जा सकता। उनके यहां भिन्न प्रकार की कविताएं हैं। कुछ तो ऐसी हैं कि जिनका भरपूर आस्वाद करने के लिए पाठक को अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ सकती है। कई बार शब्दों के अर्थों के लिए शब्दकोष देखने पड़ सकते हैं क्योंकि उर्दू की ऐसी शब्दसंपदा उनके यहां है जो आम बोलचाल में नहीं मिलती।
Read Moreप्रेमचंद को महज एक कहानीकार या कथा सम्राट मानकर उनकी जयंती मना लेना या याद करना शायद उचित नहीं है। दरअसल कोई कहानीकार या लेखक क्यों महान होता है या उसके लेखन में वे कौन से तत्व होते हैं जो उसे अमर या कालजयी बनाते हैं, इन जानकारियों को उसी संदर्भ में देखना चाहिए। महज 56 साल के अपने जीवन काल में प्रेमचंद ने आने वाली कई शताब्दियों के हिन्दुस्तान को देख लिया। उनके वक्त में देश आजाद नहीं ह�
Read Moreयात्री जी की कहानियों के ख़ज़ाने से आपके लिए दो कहानियां महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय की वेबसाइट 'हिन्दी समय' से साभार ला रहे हैं। हमारी कोशिश है कि आप उन्हें पढ़ें और इन कहानियों के भीतर तक पहुंचने की कोशिश करें...
Read Moreनए कविनगर के अपने छोटे से फ्लैट के एक कमरे में यात्री जी का ज्यादातर वक्त बिस्तर पर ही गुजरता है। पिछले कुछ सालों से सेहत ऐसी बिगड़ी है कि चलना फिरना मुश्किल हो गया है। इसी 10 जुलाई को यात्री जी ने अपने 87 साल पूरे कर लिए हैं। अबतक 33 उपन्यास और 18 कहानी संग्रह लिख चुके यात्री जी के ख़जाने में अब भी कई कहानियां हैं, कविताएं हैं, और बहुत सारे ऐसे संस्मरण हैं जिन्हें सहेजने की ज़रूरत है।
Read Moreअमर उजाला ने गिरीश कर्नाड को बेहद सम्मान दिया। उन्हें अपने सर्वोच्च शब्द सम्मान आकाश दीप से सम्मानित किया। उसी दौरान गिरीश कर्नाड ने अपने दिल की बहुत सी बातें अमर उजाला से साझा कीं। इनमें से कुछ को अमर उजाला काव्य ने छापा। वहीं से आभार के साथ हम गिरीश जी की वो बातें आपके साथ साझा कर रहे हैं जिससे उनकी यात्रा के कई पड़ावों के बारे में उन्हीं की जुबानी पता चलता है।
Read Moreअपने ज़माने के मशहूर सांस्कृतिक हस्ताक्षर रहे जाने माने यायावर लेखक राहुल सांकृत्यायन के उपन्यास ‘वोल्गा से गंगा तक’ जिसने भी पढ़ा होगा, उसके लिए भारतीय इतिहास में ब्राह्मणवाद के तमाम ढकोसलों को समझना आसान है। राहुल जी ने यह उपन्यास 1943 में लिखा था। साहित्य अकादमी सभागार में 28 अप्रैल को मशहूर स्तंभकार और लेखक कमलाकांत त्रिपाठी की किताब ‘सरयू से गंगा’ पर चर्चा के दौरान राहुल सांक�
Read Moreनामवर सिंह किसके थे? वामपंथियों के या दक्षिणपंथियों के या फिर मध्यमार्गी? उनकी आखिरी विदाई के वक्त उनके पार्थिव शरीर पर सीपीआई के छात्र संगठन एआईएसएफ ने अपनी पट्टी के साथ फूल चढ़ाए थे। उनके गुज़र जाने पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक ने शोक जताया। भले ही कोई उनकी अंतिम यात्रा में शरीक न हुआ हो, लेकिन संदेश भेजने में कोताही �
Read Moreदिल्ली के मयूर विहार फेज 1 के आनंद लोक में उनका घर है पूर्वाशा। अब वहां उनके न होने का सन्नाटा पसरा है। बीमार वो लंबे समय से थीं लेकिन आज यानी 25 जनवरी की सुबह उन्होंने हमेशा के लिए विदा ले लिया। अगले महीने 18 तारीख को कृष्णा सोबती 94 की होने वाली थीं, लेकिन उन्हें इस बात से नफ़रत थी कि कोई उन्हें बूढ़ा या बुज़ुर्ग कहे। आखिरी समय तक वो लिखती रहीं, देश के बारे में सोचती रहीं, सियासत के खेल से प�
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