किसी भी देश की संस्कृति को विकसित करने, इसे सहेजने और खुद को अभिव्यक्त करने का एक बेहतरीन ज़रिया है साहित्य। साहित्य वो विधा है जिसके कई आयाम हैं। कहानियां, कविताएं, गीत, शायरी, लेख, संस्मरण, समीक्षा, आलोचना, नाटक, रिपोर्ताज, व्यंग्य – अभिव्यक्ति के तमाम ऐसे माध्यम हैं जिनसे साहित्य बनता है और समृद्ध होता है। साहित्य में समाज और जीवन के हर पहलू की झलक होती है। संवेदनाओं और दर्शन का बेहतरीन मेल होता है। संस्कृति और तमाम कालखंडों की और राजनीति से लेकर बेहद निजी रिश्तों तक की अद्भुत अभिव्यक्ति होती है। भाषा का एक विशाल संसार गढ़ता है साहित्य। साहित्य के मौजूदा स्वरूप, नए रचनाकर्म और छोटे बड़े साहित्यिक आयोजनों के अलावा आप इस खंड में पाएंगे साहित्य का हर रंग…
नामवर सिंह किसके थे? वामपंथियों के या दक्षिणपंथियों के या फिर मध्यमार्गी? उनकी आखिरी विदाई के वक्त उनके पार्थिव शरीर पर सीपीआई के छात्र संगठन एआईएसएफ ने अपनी पट्टी के साथ फूल चढ़ाए थे। उनके गुज़र जाने पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक ने शोक जताया। भले ही कोई उनकी अंतिम यात्रा में शरीक न हुआ हो, लेकिन संदेश भेजने में कोताही
Read Moreदिल्ली के मयूर विहार फेज 1 के आनंद लोक में उनका घर है पूर्वाशा। अब वहां उनके न होने का सन्नाटा पसरा है। बीमार वो लंबे समय से थीं लेकिन आज यानी 25 जनवरी की सुबह उन्होंने हमेशा के लिए विदा ले लिया। अगले महीने 18 तारीख को कृष्णा सोबती 94 की होने वाली थीं, लेकिन उन्हें इस बात से नफ़रत थी कि कोई उन्हें बूढ़ा या बुज़ुर्ग कहे। आखिरी समय तक वो लिखती रहीं, देश के बारे में सोचती रहीं, सियासत के खेल से प
Read More94 साल की उम्र में कृष्णा सोबती का चले जाना एक युग के खत्म होने जैसा है। बहुत कम लोग जानते हैं कि कृष्णा सोबती ने कुछ कविताएं भी लिखी हैं। कुछ ऐसी कविताएं जिनसे उनके सत्ता और सरकारों के प्रति नाराज़गी भी झलकती है और उनके भीतर छिपी बेचैनी भी दिखती है। उनके उपन्यास, उनकी कहानियां और संस्मरण खूब चर्चा में रहे हैं। एक लंबी फेहरिस्त है उनकी किताबों की
Read Moreहमारे समय के हिंदी के सबसे कद्दावर और सबसे वरिष्ठ साहित्यकार नामवर सिंह अस्वस्थ हैं। कल उन्हें ब्रेनहेमरेज होने की खबर आई। किसी ने बताया कि उन्हें सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया है। फिर किसी ने बताया कि वह एम्स के ट्रामा सेंटर में भरती हैं। हिंदी के अखबारों में उनके अस्वस्थ होने की छोटी सी खबर आई। हिंदी के एकाध चैनल में भी यह खबर थी।
Read Moreआज रंगमंच और साहित्य जिस दौर में है, या कहिए कि मीडिया और अभिव्यक्ति के तमाम माध्यम जिन दबावों में काम करते हैं, वहां हबीब तनवीर, दुष्यंत कुमार और राही मासूम रज़ा (जिनका जन्मदिन एक ही तारीख यानी 1 सितंबर को आता है) के लिए जगह तलाश पाना आसान काम नहीं है। लेकिन भला हो डिजिटल ज़माने का जहां कई प्लेटफॉर्म पर कंटेंट की किल्लत की वजह से इन शख्सियतों को ठीक ठाक जगह मिल जाती है।
Read Moreपरसाई जी ने व्यंग्य को जो नए आयाम दिए, उन्होंने देश, समाज, रिश्ते-नाते, राजनीति और साहित्य से लेकर मध्यवर्ग की महात्वाकांक्षाओं को अपनी चुटीली शैली में जिस तरह पेश किया, वह अब के लेखन में आप नहीं पा सकते। हरिशंकर परसाई के विशाल रचना संसार से गुजरते हुए आपको उनके व्यक्तित्व की पूरी झलक मिल जाएगी। ये भी पता चलेगा कि दौर चाहे कोई भी हो, अगर आपका नज़रिया साफ हो, समाज और व्यक्ति को देखने की
Read Moreत्रिलोचन जी को याद करना एक पूरे युग को याद करने जैसा है। उनका विशाल रचना संसार और बेहद सरल व्यक्तित्व अब आपको कहीं नहीं मिलेगा। उनकी कविताओं को, उनकी रचना यात्रा को और उनके साथ बिताए गए कुछ बेहतरीन पलों को साझा करना शायद बहुत से लोग चाहें, लेकिन बदलते दौर में, नए सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में और साहित्यिक जमात की खेमेबाजी में त्रिलोचन आज भी हाशिए पर हैं। उनकी जन्म शताब्दि की औपचारि
Read Moreइन आखिरी सांसों में अटल जी के पीछे का पूरा अतीत है... जीवन की जंग है... अस्पताल का वेंटिलेटर है.. कृत्रिम सांसें हैं ... लेकिन अब एक एक पल भारी है... 7 रंग ने अटल जी को हमेशा पूरे सम्मान और संवेदना से अपने साथ पाया है.. आज भी हम उनके अतीत को याद करते हैं.. खुशनुमा और जीवंत लेकिन अकेले व्यक्तित्व को महसूस करते हैं... उनकी चंद कविताएं और तस्वीरें फिर से आपके लिए...
Read Moreसाहित्य उत्सवों की श्रृंखला में अब अब हल्द्वानी का नाम भी जुड़ने जा रहा है। यहां 15 अप्रैल को हेने जा रहे साहित्य उत्सव में कई जाने माने पत्रकार, लेखक और साहित्य-संस्कृति से जुड़े लोग हिस्सा ले रहे हैं। इस दौरान टीवी पत्रकार दिनेश मानसेरा की किताब – ‘मंगली – एक पटकथा’ का विमोचन भी होगा। कहानी, कविता, उपन्यास समेत साहित्य के तमाम विधाओं और मीडिया में हाशिए पर पहुंच चुके साहित्य जैसे स
Read Moreकेदार जी का जाना बेशक मीडिया की तमाम खबरों की तरह न रहा हो, सियासत और बयानबाजियों से भरे अखबार और चैनल बेशक साहित्य, संस्कृति और कला के लिए जगह न निकाल पाते हों और केदार नाथ सिंह का नाम बेशक आज के युवा पत्रकार और मीडियाकर्मी न जानते हों, लेकिन अब भी एक पीढ़ी है जो इस परंपरा को निभा रही है। अब भी कुछ अखबार हैं जहां साहित्य और संस्कृति को समझने वाले संवेदनशील लोग बचे हुए हैं। कुछ अखबारों न
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