साहित्य अकादेमी द्वारा अनुवाद पुरस्कार 2024 की घोषणा नई दिल्ली, 7 मार्च। हिंदी के जाने माने आलोचक मदन सोनी और अंग्रेज़ी के लिए अनीसुर रहमान को साहित्य अकादेमी का अनुवाद पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की गई है। साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक की अध्यक्षता में अकादेमी के कार्यकारी मंडल की बैठक में 21 अनुवादकों को साहित्य अकादेमी अनुवाद पुरस्कार 2024 के लिए अनुमोदित किया गया।
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5 मार्च 1925 को नासिक में जन्में वसंत साठे जब 23 साल के थे तभी उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी से अपना राजनीतिक सफर शुरु किया... इससे पहले आजादी आंदोलन के दौरान साठे ने छात्र जीवन के दौरान तमाम आंदोलनों में हिस्सा लिया.. बचपन से ही साहित्य, कला, संस्कृति में गहरी दिलचस्पी रही। बाद में कांग्रेस में शामिल हुए। 1972 में पहली बार अको�
बिहार आंदोलन के दौरान आनंद बाजार पत्रिका की ओर से छपने वाले रविवार के पहले अंक के कवर पेज पर जेपी और फणीश्वरनाथ रेणु की तस्वीर छपी। यह दौर पूरी तरह छात्र और युवा आंदोलन का था और जेपी आंदोलन ने बदलाव की एक नई आहट का संकेत दे दिया था। पटना के कांग्रेस मैदान से लेकर गांधी मैदान तक में जेपी की सभाओं में रेणु जी भी नज़र आए और आज़ादी आंदोलन के बरसों बाद उन्होंने खुद को राजनीतिक �
क्या आप ऐसे किसी अंग्रेजी जर्नलिस्ट को जानते हैं जिन्हें उर्दू से इतनी मोहब्बत हो कि उसने बकायदा उर्दू सीखकर उर्दू में अखबारनवीसी की हो और उर्दू में किताब भी लिख डाली हो? ऐसे वक़्त में जब सियासत देश में हिंदी उर्दू को आपस में लड़ा रही हो, उर्दू के खिलाफ नफ़रत फैला रही हो ,उस ज़ुबां को धर्म से जोड़ा जा रहा हो और उसे मरती हुई ज़ुबान बताया जा रहा हो, एक मह�
पिछले दिनों जनवादी लेखक संघ ने प्रतिरोध की काव्य संध्या का आयोजन किया जिसमें बड़ी संख्या में कवियों ने भाग लिया। लेकिन सवाल है कि क्या हिंदी में लिखे जा रहे लेख कविताओं का कोई असर समाज पर पड़ रहा है? क्या ये कविताएं सत्ता को चुनौती दे पा रही हैं? विमल कुमार का आलेख..
कुछ सालों से यह कहा जा रहा है कि हिंदी में प्रतिरोध साहित्य नहीं लिखा जा रहा है या अगर लिख�