किसी भी देश की संस्कृति को विकसित करने, इसे सहेजने और खुद को अभिव्यक्त करने का एक बेहतरीन ज़रिया है साहित्य। साहित्य वो विधा है जिसके कई आयाम हैं। कहानियां, कविताएं, गीत, शायरी, लेख, संस्मरण, समीक्षा, आलोचना, नाटक, रिपोर्ताज, व्यंग्य – अभिव्यक्ति के तमाम ऐसे माध्यम हैं जिनसे साहित्य बनता है और समृद्ध होता है। साहित्य में समाज और जीवन के हर पहलू की झलक होती है। संवेदनाओं और दर्शन का बेहतरीन मेल होता है। संस्कृति और तमाम कालखंडों की और राजनीति से लेकर बेहद निजी रिश्तों तक की अद्भुत अभिव्यक्ति होती है। भाषा का एक विशाल संसार गढ़ता है साहित्य। साहित्य के मौजूदा स्वरूप, नए रचनाकर्म और छोटे बड़े साहित्यिक आयोजनों के अलावा आप इस खंड में पाएंगे साहित्य का हर रंग…
जाने-माने मार्क्सवादी आलोचक और साहित्यकार रामनिहाल गुंजन का उनके निवास आरा (भोजपुर, बिहार) में 18 अप्रैल की रात निधन हो गया। उनकी उम्र 86 के आसपास थी। इस उम्र में भी वे जिस तरह सक्रिय थे, वह बेमिसाल है। वे कई किताबों पर काम कर रहे थे। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में लिख रहे थे।
Read Moreरूस और यूक्रेन के बीच सैनिक मुठभेड़ (युद्ध) का समापन इकतरफा तौर पर निस्संदेह रूस के पक्ष में होता नज़र आ रहा है, लेकिन इससे मास्को की विश्वव्यापी रणनीति का भी लगभग स्थाई खुलासा हो चुका है कि राष्ट्रहित के मामले में किसी किस्म का अंतरराष्ट्रीयवाद सहन नहीं किया जाएगा। कम्युनिज्म या और कोई समकालीनवाद राष्ट्र के हितों से परे ही बरता जाने को अभिशप्त है।
Read Moreजाने माने वयोवृद्ध कवि कृष्ण मित्र 88 साल के हो चुके हैं... उनकी यादों में तमाम साहित्यकार और कवियों के ढेर सारे अनुभव हैं। कृष्ण मित्र जी ने प्रख्यात गीतकार श्याम निर्मम को बहुत करीब से देखा और महसूस किया.. उनकी रचनाओं से लेकर उनके व्यक्तित्व के बारे में उनकी अपनी राय है। आदरणीय श्याम निर्मम जी की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए 7 रंग के पाठकों के लिए कृष्ण मित्र जी का ये आलेख बहुत माय
Read More‘बदलते वक्त के साथ कहानियों का संसार बदला है, उन्हें पढ़ने के तौर तरीके भी बदले हैं। अब वो दौर नहीं है कि कहानियां या उपन्यास सोने से पहले नींद की गोली की तरह इस्तेमाल किए जाते थे... दो चार पेज पढ़ा, नींद आ गई फिर किताब किनारे रख दी। अब इंटरनेट पर तमाम प्लेटफॉर्म्स हैं, सोशल मीडिया है, जहां आप जब चाहें, पढ़ सकते हैं। इसलिए लिखते वक्त हमेशा इस बात का ध्यान रखना ज़रूरी है कि हम लिख किसके लिए
Read Moreआज हम याद कर रहे हैं रघुवीर सहाय को। लखनऊ में 9 दिसंबर 1929 को जन्मे रघुवीर सहाय ने लखनऊ विश्वविद्यालय से 1951 से एमए किया, लेकिन बीए करने के बाद से ही उन्होंने उस वक्त के मशहूर अखबार नवजीवन में काम करना शुरु कर दिया। सोलह सत्रह साल की उम्र से ही उन्होंने कविताएं औऱ कहानियां लिखनी शुरु कर दी थीं। एमए करने के बाद दिल्ली आए और प्रतीक पत्रिका में काम करने के बाद आकाशवाणी के समाचार विभाग में नौक
Read Moreजाने माने कवि और बेहद आत्मीय मंगलेश डबराल को यूं खो देना आज भी मन में कचोट पैदा करता है। उनकी ढेर सारी यादें हैं। साहित्य जगत और खासकर कविता के क्षेत्र में उनके योगदान की कहानी और उपलब्धियां तो अपनी जगह हैं लेकिन उनके भीतर का संवेदनशील इंसान अपनी जगह। उनके तमाम दोस्त, संघर्षों के साथी और हर उतार चढ़ाव के गवाह हमारे कई वरिष्ठ लेखक, कवि, साहित्यकार औऱ संस्कृतिकर्मी उन्हें कभी नहीं भू
Read Moreइंतज़ार हुसैन ने 1946 ने जब मेरठ से एमए किया, तबतक उन्होंने कुछ भी लिखना शुरु नहीं किया था, अलबत्ता राजेन्द्र सिंह बेदी, सआदत हसन मंटो, इस्मत चुगताई, कृष्ण चंदर जैसे लेखकों को पढ़ते हुए बड़े हुए.. लेकिन जब विभाजन की हवा चली तो उनके तमाम दोस्त, साहित्यकार और बहुत से करीबी लाहौर जाने लगे.. इंतजार हुसैन आखिर क्यों पाकिस्तान गए और कैसे उनका बचपन बीता इस बारे में वो तमाम मौकों पर बताते रहे..
Read Moreहिंदी साहित्य की प्रसिद्ध लेखिका मन्नू भंडारी का निधन हो गया. वह 90 वर्ष की थीं. ‘महाभोज’ और ‘आपका बंटी’ जैसी कालजयी रचनाओं की लेखिका मन्नू भंडारी ने सोमवार की सुबह अंतिम सांस ली. मन्नू भंडारी के पिता सुख सम्पतराय भी जाने माने लेखक थे. वर्तमान में वह गुडगांव में अपनी बेटी रचना यादव के पास रहती थीं. वह लंबे समय से बीमार चल रही थीं.
Read Moreहिंदी के प्रख्यात कवि, गद्यकार विनोद कुमार शुक्ल को साहित्य अकादमी की प्रतिष्ठित महत्तर सदस्यता (फैलोशिप) प्रदान की गई है। उनके साथ प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक रस्किन बांड को भी महत्तर सदस्य घोषित किया गया है। यह फ़ैलोशिप भारत की साहित्य अकादमी द्वारा प्रदान किया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है।
Read Moreयूपी के अदबी शहर इलाहाबाद की शिनाख्त है उर्दू अदब के तंजोमिज़ाह के नामचीन शायर अकबर इलाहाबादी। अपनी शायरी से समाज को वक्त वक्त पर आगाह करने वाले इस शायर को उनके अपने ही शहर और अदब के लोग भूल गए। यह चुभन इसलिए भी सबसे ज्यादा होगी क्योंकि अकबर इलाहाबादी साहब को गुज़रे इसी 9 सितंबर को सौ साल हो गए।
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