संस्कृति अपने आप में बेहद व्यापक शब्द है। इसमें वो तमाम रंग शामिल हैं जो कहीं न कही समाज के मूल्यों, समृद्द परंपराओं और लोक रंगों की खूबसूरत अभिव्यक्ति होते हैं। किसी भी देश की संस्कृति ही वहां की मूल पहचान होती है और इसके अनेक आयाम होते हैं। देश के किसी कोने में वहां की संस्कृति को संवारने और समृद्ध करने की जो भी कोशिश होती है, इससे जुड़े सरकारी- गैरसरकारी जो भी आयोजन होते हैं, नई संस्कृति और जनता से जुड़ी संस्कृति के साथ साथ जो भी नए नए प्रयोग हो रहे हैं, उसे इस मंच के ज़रिये सामने लाना हमारा मकसद है…
अमर उजाला के सलाहकार संपादक उदय कुमार इन दिनों पोर्ट लुई में चल रहे 11वें विश्व हिन्दी सम्मेलन में हिस्सा लेने मॉरीशस में हैं। अमर उजाला और अमर उजाला डॉट कॉम पर उदय जी वहां के सत्रों के कई पहलुओं पर लिख रहे हैं। हिन्दी फिल्मों का भारतीय संस्कृति से कितना गहरा नाता है ये बताने की कोशिश की प्रसून जोशी ने। उदय कुमार की ये रिपोर्ट हम अमर उजाला से साभार '7 रंग 'के पाठकों के लिए पेश कर रहे ह
Read Moreजिनके जीवन में रंग नहीं हैं, वृंदावन की गलियां उन्हें भी रंगीन बना देेती हैं... विधवाओं के लिए समाज में जो परंपरागत सोच है, वृंदावन उसे खारिज करता है। कहते हैं कि देश में ये इकलौती ऐसी जगह है जहां समय-असमय सफ़ेद कपड़ों में लिपट जाने वाली महिलाओं के जीवन में यहां रंग भर जाते हैं। कृष्ण भक्ति में रमी और राधे राधे करती ये महिलाएं यहां ज़िंदगी के मायने तलाशती हैं, कुछ नए रंगों को अपने जीवन
Read Moreब्रज की होली के कई रंग हैं। ब्रज की होली की छटा अलग है, कहते हैं कि जग में होली ब्रज में होला.. बाकी ज्यादातर जगहों पर जहां होली एक दिन खेली जाती है, वहीं मथुरा, वृंदावन, गोकुल, नंदगांव, बरसाने में कुल एक हफ्ते तक होली चलती है। कान्हा के गांव नंदगांव और ब्रज की गलियों में घूमते और अपने कैमरे में होली के तमाम रंग कैद करते वरिष्ठ फोटोग्राफर रवि बत्रा ने जो रंग 7 रंग के लिए भेजा, वो आप भी देखिए.
Read Moreबनारस का अपना ही रस है। बनारस के गंगा तटों की अपनी संस्कृति है। मौज मस्ती और बिंदास जीवन शैली के अद्भुत नज़ारे आपको बनारस के सभी घाटों पर मिल जाएंगे। क्रिकेट खेलने के लिए यहां बच्चों को किसी मैदान या स्टेडियम की ज़रूरत नहीं - गंगा मइया के किनारे इसका जो मज़ा है, वो तो यहां खेलने वालों को ही पता है।
Read Moreअंतर्राष्ट्रीय कला मेला इतने बड़े पैमाने पर पहली बार हो रहा है। लेकिन इतनी कोशिशों के बावजूद मेले में मीडिया और आम लोगों की दिलचस्पी कम होने की वजह से यहां आए कलाकारों में कुछ मायूसी का भाव नज़र आ रहा है। तमाम कलाकार ये कहते नज़र आ रहे हैं कि अभी तक उनके स्टॉल का खर्च तक नहीं निकल पाया है, लेकिन उम्मीद है 18 फरवरी तक स्थितियां बदलेंगी।
Read Moreइंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र में आयोजित प्रथम अंतर्राष्ट्रीय कला मेला ने रंग जमाना शुरू कर दिया है। मेले के दूसरे दिन नोबल पुरस्कार विजेता डॉ. कैलाश सत्यार्थी भी मेला देखने पहुंचे जबकि शाम में साहित्य कला परिषद् की ओर से फ्यूज़न डांस पेश किया गया। डॉ सत्यार्थी ने कई कलाकारों से मुलाकात की और उनसे उनकी कला के बारे में जाना। उनका मानना है कि देश भर के स्कूली बच्चों को और नई पीढ
Read Moreललित कला अकादमी का पहला अंतर्राष्ट्रीय कला मेला 4 फरवरी से दिल्ली में शुरू हो गया। पहले अंतर्राष्ट्रीय कला मेला की शुरूआत करते हुए उप राष्ट्रपति एम वेंकय्या नायडू ने कला की विविधता और संस्कृति की बहुलता वाले अपने देश को दुनिया का सबसे बेहतरीन देश बताया और कहा कि यहां के रंग आपको और कहीं नहीं मिल सकते। उन्होंने कला मेले को एक शानदार पहल बताते हुए इसे कला और कलाकारों का एक अंतर्राष्
Read Moreकला और संस्कृति की बेहतरी, संरक्षण और प्रोत्साहन के लिए काम करने वाली देश की सबसे बड़ी संस्था ललित कला अकादमी 4 से 18 फरवरी तक अन्तर्राष्ट्रीय कला मेला का आयोजन करने जा रही है। दिल्ली के इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र में रोजाना 12 बजे से रात 8 बजे तक पहली बार इतने बड़े पैमाने पर हो रहे इस कला मेले में देश विदेश के कलाकार और कला समूह अपनी कलाकृतियाँ और सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश करने
Read Moreहमारे गणतंत्र की अपनी खासियत है। हमारे शौर्य, ताकत और विकास की कहानी के साथ साथ हमारी संस्कृति के तमाम रंगों से मिलकर बनता है हमारा गणतंत्र। हर साल 26 जनवरी को राजपथ पर इसकी झलक मिलती है। 69वें गणतंत्र दिवस की कुछ बेहतरीन तस्वीरें हम 7 रंग के पाठकों के लिए ले कर आए हैं जिन्हें अपने कैमरे में उतारा है जाने माने फोटोग्राफर रवि बत्रा ने। रवि के कैमरे का कमाल देखिए इस फोटो फीचर में।
Read Moreसत्तर और अस्सी के दशक तक गांव -गांव 'बाइस्कोप' वाले खूब दिखते थे और उनके पूरे परिवार का पेट इसकी कमाई से चल जाता था । कालान्तर में टीवी, इंटरनेट, डीवीडी - सीडी , मोबाइल फोन आदि ने 'बाइस्कोप' का क्रेज प्रायः खत्म ही कर दिया। ' बाइस्कोप ' वालों ने शहर छोड़ दूर - दराज गांवों का रुख करना शुरू किया, लेकिन वहां भी उन्हें देखने वाले मुश्किल से मिलते हैं।
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