संस्कृति अपने आप में बेहद व्यापक शब्द है। इसमें वो तमाम रंग शामिल हैं जो कहीं न कही समाज के मूल्यों, समृद्द परंपराओं और लोक रंगों की खूबसूरत अभिव्यक्ति होते हैं। किसी भी देश की संस्कृति ही वहां की मूल पहचान होती है और इसके अनेक आयाम होते हैं। देश के किसी कोने में वहां की संस्कृति को संवारने और समृद्ध करने की जो भी कोशिश होती है, इससे जुड़े सरकारी- गैरसरकारी जो भी आयोजन होते हैं, नई संस्कृति और जनता से जुड़ी संस्कृति के साथ साथ जो भी नए नए प्रयोग हो रहे हैं, उसे इस मंच के ज़रिये सामने लाना हमारा मकसद है…


संस्कृति
यह भारतीय कला का आत्मसम्मान विहीन दौर है – अशोक भौमिक
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February 28, 2024

जन संस्कृति मंच की लखनऊ इकाई के सालाना समारोह में लेखक और पत्रकार अनिल सिन्हा की स्मृति में भारतीय चित्रकला का सच विषय पर विस्तृत चर्चा हुई। मुख्य वक्ता, जाने माने चित्रकार और कला समीक्षक अशोक भौमिक ने इस मौके पर भारतीय कला के तमाम पहलुओं और इसके ऐतिहासिक संदर्भों को विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि  भारतीय कला का इतिहास तभी से शुरू होता है जब से हम इन चित्रों के बारे में जानना शु

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सेज चढ़त डर लागे.. हो रामा..
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March 18, 2023

फागुनी बयार में घुली-मिली रंगों की बहार अभी अपने शबाब पर ही होती है कि चैती की धुन चटखने लगती है। यानी होली के दिन ही चैती चढ़ जाती है। होली की विदाई चैती गाकर ही की जाती है। होली की रात में 12 बजे के बाद चैती की रागिनी फिजा में घुलने लगती है। गायकों की टोली जब गांव के अंतिम दरवाजे पर होली गाने पहुंचती है, तो वह अपने साथ वहां चैती की सौगात भी लेकर जाती है।

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यह कौन सा जल है जिसमें पांव डुबोती है संस्कृति?
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November 11, 2021

छठ की कई तरह की स्मृतियां मेरे भीतर हैं। दीपावली के बाद जब धूप नरम पत्तियों की तरह त्वचा को सहलाती थी और हवा की बढ़ती हल्की सी गुनगुनी ठंडक के बीच छठ की तैयारी शुरू होती थी तो उसमें सर्दियों के संकेत को हम पहली बार ठीक से पकड़ते थे। छठ की सुबह पहली बार हमारे स्वेटर निकलते थे। दिवाली में घर की सफाई के बाद झीलों, तालाबों और नदियों की सफ़ाई का सिलसिला शुरू होता और छठ के इस जल यज्ञ में हम डू

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भारतीय संस्कृति की प्रखर प्रवक्ता थीं कपिला जी…
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September 16, 2020

आज जिस इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के सदस्य सचिव के तौर पर डॉ सच्चिदानंद जोशी के कंधे पर संस्कृति के इस विशाल केन्द्र की जिम्मेदारी है, वह केन्द्र अगर बना तो उसके पीछे कपिला वात्स्यायन की दूरदृष्टि थी। कपिला जी इसके संस्थापकों में रहीं और जोशी जी उनकी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। जोशी जी ने जो बेहतरीन काम किया वो ये कि उन्होंने कपिला जी को पूरा सम्मान दिया और इस संस्था को बड़

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और अब कपिला जी भी साथ छोड़ गईं…
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September 16, 2020

कपिला जी को कला के क्षेत्र में अद्भुत योगदान के लिए पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। राज्यसभा की वो पूर्व मनोनीत सदस्य रहीं। कपिला जी इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की संस्थापक सचिव थीं और इंडिया इंटरनेशनल सेंटर की आजीवन ट्रस्टी भी थीं। उन्होंने भारतीय नाट्यशास्त्र और भारतीय पारंपरिक कला पर गंभीर और विद्वतापूर्ण पुस्तकें भी लिखी थीं। वह देश में भारतीय कला शास्त्र की आधिक

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बदहाल कलाकार, राष्ट्रीय नीति की दरकार
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July 8, 2020

इस कोरोना समय में समाज के जिन वर्गों को और भी अधिक सीमांत की तरफ धकेला है उसमें कलाकार भी हैं। हर विधा के कलाकार- चाहे वे रंगकर्मी हों, पेंटर हों, मूर्तिशिल्पी हों, गायक हों, वादक हों, नर्तक या नृत्गांगना हों। या लोक कलाकार हों। फिल्मों में काम करनेवाले हों। देश के बड़े बड़े शहरों से जो खबरें (गावो से भी) आ रही हैं वे तो यही बता रही हैं कि युवा और संघर्षशील कलाकारों की जान पर बन आई है।

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साधारण से असाधारण होने की कहानी हैं तीजन बाई…
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April 24, 2020

यूरोपीय धरती से निकले ओपेरा, बैले, सिम्फ़नी और फ़्लेमिंको विशुद्ध शास्त्रीय हैं. पर बेहद लोकप्रिय हैं. और इनमें से कुछ भी देख रहे हों तो दर्शक सहज रूप से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं, अक्सर भावुक हो जाते हैं और आत्मविभोरता में रोंगटे खड़े हो जाते हैं. ठीक वही अनुभव होता है जब आप तीजन बाई से पंडवानी सुनते हैं. पंडवानी यानी महाभारत के अलग अलग प्रसंगों की संगीतमय प्रस्तुति. एकल नाट्य की तरह.

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कैमरे में उतरा चिकनकारी का दर्द…
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January 14, 2019

लखनऊ की मशहूर चिकनकारी को दुनिया भर में पहचान मिली है लेकिन चिकन के काम में लगे कलाकारों के जीवन और उनके दर्द को कोई नहीं जानता। हज़ारों हुनरमंद हाथ आज किस तरह अपना जीवन काटते हैं और कैसे उनके हुनर को बड़े व्यवसायी अपने लिए इस्तेमाल करते हैं.. इस पूरी यात्रा को एक युवा फोटोग्राफर अविरल सेन सक्सेना ने अपने कैमरे में बहुत करीब से देखा है।

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विश्व हिन्दी सम्मेलन: भविष्य की भाषा बनेगी हिन्दी
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August 21, 2018

अमर उजाला के सलाहकार संपादक उदय कुमार मॉरीशस से लगातार विश्व हिन्दी सम्मेलन पर बेहतरीन रिपोर्ताज अपने अखबार और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भेज रहे हैं। सम्मेलन के आखिरी दिन  यानी सोमवार 20 अगस्त को क्या कुछ हुआ ,  हिन्दी को विश्व की भाषा बनाने के साथ ही बदलते तकनीकी दौर और डिजिटल युग के साथ जोड़ने  और विकसित करने को लेकर सम्मेलन में क्या विचार आए , उदय जी की इस रिपोर्ट से इसकी विस्तृत जानकार

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भारतीय सांस्कृतिक विरासत को चमकाने पर जोर
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August 20, 2018

11वें विश्व हिंदी सम्मेलन के दूसरे दिन चर्चा के केंद्र में भारतीय सांस्कृतिक विरासत ही रही। चर्चा में भाग ले रहे विद्वानों में हिंदी के प्रचार-प्रसार के साथ भारत की सांस्कृतिक विविधता और विशेषता को भी बड़े फलक पर चमकाने की ललक दिखाई दी। इस बात पर लगभग सभी एकमत दिखे कि हिंदी को विश्व भाषा बनाने के साथ भारतीय संस्कृति को भी उसी स्तर पर प्रसारित करने की जरूरत है।

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