देश विदेश के अलग अलग हिस्सों में भारतीय साहित्य, कला और संस्कृति से जुड़े तमाम कार्यक्रम होते हैं, ढेर सारी गतिविधियां होती हैं। कई ख़बरें भी होती हैं जो हम तक नहीं पहुंच पातीं। गोष्ठियां, कार्यशालाएं होती हैं, रंगकर्म की तमाम विधाओं की झलक मिलती है और लोक संस्कृति के कई रूप दिखते हैं। नए कलाकार, नई प्रतिभाएं और संस्थाएं साहित्य-संस्कृति को समृद्ध करने की कोशिशों में लगे रहते हैं लेकिन उनकी जानकारी कम ही लोगों तक पहुंच पाती है। हमारी कोशिश है कि इस खंड में हम ऐसी ही गतिविधियों और ख़बरों को शामिल करें … चित्रों और वीडियो के साथ।
गाजियाबाद में 'कथा रंग' की ओर से आयोजित कथा संवाद में सुनी गई कहानियों पर विमर्श के दौरान सुप्रसिद्ध रचनाकार व कार्यक्रम अध्यक्ष योगेंद्र दत्त शर्मा ने कहा कि मशीनीकरण के इस दौर में संवेदना का क्षरण हो रहा है। इस क्षरण की वजह से समाज में संवेदनशीलता का लोप होता जा रहा है। साहित्य मनुष्य में संवेदना उत्पन्न करता है। उन्होंने कहा कि यह सुखद स्थिति है कि एनसीआर में कहानी लिखने का एक ऐ
Read Moreमुंबई में पिछले दिनों आयोजित कविता मुंबई कार्यक्रम में तीन दिनों तक कविता के विभिन्न आयामों पर सार्थक चर्चा हुई और देश के अलग अलग हिस्सों से आए कवियों ने अपनी कविताएं सुनाईं। इस दौरान मुंबई विश्वविद्यालय के तमाम कॉलेजों में कैंपस में कविता कार्यक्रम आयोजित हुए जिसमें बड़ी संख्या में युवा और उभरते हुए कवियों ने खुद को अभिव्यक्त किया।
Read Moreजन संस्कृति मंच की ओर से मशहूर अवामी शायर तश्ना आलमी के सातवें स्मृति दिवस के मौके पर लखनऊ के इप्टा दफ़्तर में ‘याद ए तश्ना आलमी’ का आयोजन किया गया। इसकी अध्यक्षता डॉ नदीम हसनैन ने की। मुख्य अतिथि थीं प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा। इस मौके पर त्रैमासिक ई पत्रिका 'तज़किरा' जारी की गई। प्रोफ़ेसर रूप रेखा वर्मा ने मीर तक़ी मीर के “शे’र ख़शका खैंचा” और मजाज़ का मुस्लिम महिलाओं को संबोधित किय
Read Moreजाने माने रंगकर्मी और नाटकों के शिल्प से लेकर कथ्य तक को बेहद समृद्ध करने वाले हबीब तनवीर की याद में हर साल दिए जाने वाले कारवां-ए-हबीब सम्मान इस साल मशहूर नाट्य समीक्षक और लेखक डॉ जयदेव तनेजा को दिया जाएगा। सत्तर और अस्सी के दशक से लेकर अबतक जयदेव तनेजा ने रंगकर्म के क्षेत्र में जबरदस्त काम किया है और उनके लेख और नाट्य समीक्षाएं जनसत्ता, नवभारत टाइम्स समेत देश के तमाम प्रतिष्ठित अ
Read Moreलखनऊ में कवि वीरेन डंगवाल के 77वें जन्मदिन पर 5 अगस्त को उनकी याद में जन संस्कृति मंच (जसम) की ओर से गोष्ठी का आयोजन शायरा सईदा सायरा के निवास पर किया गया जिसकी अध्यक्षता कवि-आलोचक चन्द्रेश्वर ने की। संचालन किया कथाकार फरजाना महदी ने। इस मौके पर चंदेश्वर और कौशल किशोर ने वीरेन डंगवाल के कवि कर्म और सरोकारों पर अपनी बात रखी।
Read Moreरंगकर्मियों और नाटक करने वाली संस्थाओं पर शिकंजा कसने की पहले भी कई बार कोशिशें हुईं लेकिन जबरदस्त विरोध की वजह से ऐसा नहीं हो सका। पिछले कुछ सालों से ये कोशिश नए नए रूपों में सामने आ रही है। दिल्ली में अब ज्यादातर फैसले उप राज्यपाल की ओर से लिए जा रहे हैं। हाल ही में ऐसा ही एक संस्कृतिविरोधी फैसला लिया गया है जिसे लेकर कलाकारों और रंग संस्थाओं में जबरदस्त आक्रोश है।
Read Moreगाज़ियाबाद में साहित्य की महफिलों का अब लगातार रंग जमने लगा है। हर महीने कथा संवाद और महफ़िल-ए-बारादरी का जो सिलसिला शुरु हुआ है उसमें देश भर के नामचीन लेखक, कवि, शायर और गीतकार निरंतर शामिल हो रहे हैं। यह कोशिश पुरानी के साथ साथ नई पीढ़ी में साहित्य के प्रति गहरी अभिरुचि पैदा करने के साथ उनमें लिखने पढ़ने की आदत डालने, एक बेहतर सामाजिक दृष्टि विकसित करने की दिशा में एक जरूरी और उल्ल
Read Moreगाजियाबाद में एक बार फिर साहित्य की नई इबारत लिखी जा रही है। 'कथा रंग' की ओर से आयोजित अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता के पुरस्कृत रचनाकार 13 जुलाई को गाजियाबाद लिट्रेरी फेस्ट में सम्मानित किए जाएंगे। 'कथा रंग' कहानी महोत्सव एवं अलंकरण समारोह" के नाम से आयोजित यह एक दिवसीय कार्यक्रम बुलंदशहर रोड औद्योगिक क्षेत्र स्थित सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में संपन्न होगा।
Read Moreजन संस्कृति मंच की लखनऊ इकाई के सालाना समारोह में लेखक और पत्रकार अनिल सिन्हा की स्मृति में भारतीय चित्रकला का सच विषय पर विस्तृत चर्चा हुई। मुख्य वक्ता, जाने माने चित्रकार और कला समीक्षक अशोक भौमिक ने इस मौके पर भारतीय कला के तमाम पहलुओं और इसके ऐतिहासिक संदर्भों को विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि भारतीय कला का इतिहास तभी से शुरू होता है जब से हम इन चित्रों के बारे में जानना शु
Read Moreफोसवाल महोत्सव के तीसरे दिन की शुरुआत 'दो निर्रथक युद्धों की पीड़ा' पर चर्चा से हुई। इस सत्र में केरल के लेखक, कवि के वी डोमिनिक, डिफेन्स जर्नलिस्ट नीरज राजपूत और समाजशास्त्री आशीष नंदी ने हिस्सा लिया। युद्धों के पीछे के कारणों पर चर्चा करते हुए के वी डोमिनिक ने कहा, "दुनिया भर में युद्ध कराने में धर्म का बड़ा हाथ रहा है। अधिकतर धार्मिक नेता लोगों को शांति और सहिष्णुता का पाठ पढ़ाने की
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