कहते हैं कि जहां संगीत नहीं है, वहां जीवन नहीं है। लय और ताल के बगैर सुर नहीं बनते और मन की गहराइयों तक उतर जाने वाला संगीत नहीं बन सकता।गीत-संगीत किसी भी संस्कृति का सबसे ज़रूरी हिस्सा है और ये एक ऐसी विधा है जो आपको एक सुकून भरे एहसास से भर देती है। दुनिया के निर्माण के साथ ही संगीत का जन्म भी हुआ और तमाम दौर से गुज़रते हुए संगीत में नए नए प्रयोग होते रहे। पारंपरिक वाद्यों से लेकर आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक वाद्यों तक और गायन की तमाम शैलियों से लेकर नए दौर के प्रयोगों तक संगीत हरेक के जीवन का ज़रूरी हिस्सा है – चाहे वो शास्त्रीय संगीत हो, लोक संगीत हो या फिर फ़िल्म संगीत।देश के तमाम हिस्सों में संगीत से जुड़े आयोजनों, कलाकारों, नए प्रयोगों के साथ साथ इस दिशा में होने वाली हर तरह की गतिविधि को समेटने की कोशिश हम करेंगे।
सुर मानो ठहर गए हों... संगीत खामोश हो गया हो... उनकी गायिकी अब महज़ यादों और अथाह संगीत अल्बमों में रह गई है.. अब हम उन्हें कभी लाइव नहीं सुन पाएंगे... पंडित जसराज चले गए... मेवाती घराने की आवाज़ थम गई...90 साल के पंडित जसराज ने अमेरिकी के न्यू जर्सी में सबको हमेशा के लिए अलविदा कह गए... कोराना काल में वैसे भी लगातार ऐसी दुखद और मनहूस खबरें आ रही हैं... पंडित जी भी इसी कतार में शामिल हो गए... बहुत दूर चल
Read Moreअभी एक साल भी नहीं बीता है... भारत के 73वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर मशहूर बांसुरी वादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया कांठमांडू गए तो उनका वहां के तमाम युवा कलाकारों ने बांसुरी बजाकर अभिनंदन किया, भारतीय दूतावास की ओर से आयोजित उनके शो में नेपाल के उप प्रधानमंत्री से लेकर विदेश मंत्री और तमाम मंत्रिगण मौजूद रहे, पूरा हॉल तालियों से गूंज रहा था... नेपाल और भारत के बीच पारंपरिक सांस्कृतिक र
Read Moreसरोद के सुरों से श्रोताओं को झुमा देने वाले सरोद वादक पंडित विकास महाराज बनारस के कबीरचौरा की गलियों में पले-बढ़े और संगीत का ककहरा सीखा। अब वो सात समंदर पार सरोद की झनकार बिखेर रहे हैं। महाराज जर्मनी, आस्ट्रेलिया, फ्रांस, हालैंड और यूनाइटेड स्टेट के तमाम विश्वविद्यालयों में विजिटिंग प्रोफेसर के तौर पर भारतीय शास्त्रीय संगीत का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।
Read Moreशहनाई को शादी- ब्याह के मजमे से उठा कर बुलंदियों तक पहुंचाने वाले खां साहब सुर की बारीक जानकारी को पहली शर्त मानते हैं फिर रियाज़ तो है ही। वे कहते हैं कि गला अच्छा होना या साज बजाना आना ही बहुत नहीं है। सुर और राग की गहरी जानकारी के बग़ैर संगीत में कोई आगे नहीं बढ़ सकता। आरोह-अवरोह की समझ बहुत बारीक चीज़ है। यह धीरे धीरे समझ आती है। लड़कपन में (सन 1930-32) में दालमंडी की गली के कोठों में रात
Read Moreइक्कीसवीं सदी शुरु हो चुकी थी और बीसवीं सदी ने जाते जाते बॉलीवुड संगीत की दुनिया को एक नई शक्ल दे दी थी। इस नए दौर और संगीत के नए माहौल में भला नौशाद के संगीत को उतनी तवज्जो कैसे मिल सकती थी जितनी इस दौर के धूम धड़ाम वाले संगीतकारों को मिलती है। 5 मई 2006 को जब संगीतकार नौशाद ने दुनिया को अलविदा कहा, तब भी उनके भीतर यही दर्द छलकता रहा - 'मुझे आज भी ऐसा लगता है कि अभी तक न मेरी संगीत की तालीम पूर
Read Moreशास्त्रीय गायन में उनकी आवाज़, किसी राग के भीतर तक उतर जाने और श्रोताओं को एक नई दुनिया में ले जाने की उनकी कला का जवाब नहीं था। किशोरी अमोनकर अगर आज होतीं तो 89 बरस की हो रही होतीं... 10 अप्रैल 1931 को मुंबई में जन्मीं किशोरी अमोनकर तीन साल पहले हमसे रुखसत हो गईं... लेकिन उन्होंने शास्त्रीय संगीत को जो ऊंचाई दी, वह हर शास्त्रीय संगीतप्रेमी के लिए एक अद्भुत एहसास से गुजरने जैसा है... आज तकनीकी क
Read Moreवह 1977 का साल था। पहली दफा तभी जगजीत सिंह को सुनने का मौका मिला। लाइव नहीं, बल्कि उनके पहले अल्बम – ‘द अनफॉरगेटबल्स’ के दो एलपी रिकॉर्ड्स में। फिलिप्स के नए नए स्टीरियो की धमक के बीच जगजीत सिंह जब अपने अंदाज़ में ‘आहिस्ता आहिस्ता’ गाते तो हम सब उनके साथ साथ खुद भी ‘आहिस्ता आहिस्ता’ बरबस ही गाने को मजबूर हो जाते। वो अंदाज़ ही अलग था और उस दौर के नए नवेले ग़ज़ल गायक के इस अकेले अल्बम ने सं
Read Moreउस्ताद बिस्मिल्ला खां को गुज़रे आज 12 साल हो गए, लेकिन न तो शहनाई का कोई और उम्दा कलाकार उभर कर सामने आ सका और न ही शहनाई का वो रुआब अब बाकी रह गया। शादी-ब्याह के दौरान, तमाम शुभ अवसरों पर शहनाई का बजना एक परंपरागत और बेहद संजीदा माहौल पैदा करता था। बिस्मिल्ला खां तब भी सबके आदर्श थे और तमाम पेशेवर शहनाईवादक उनकी ही धुनें बजाने को अपनी शान समझते थे। खासकर फिल्म गूंज उठी शहनाई के उस गीत की
Read Moreतमाम अखबार, सोशल मीडिया और टेलीविज़न चैनल ठुमरी साम्राज्ञी और बनारस घराने की अभूतपूर्व शख्सियत गिरिजा देवी को अपने अपने तरीके से श्रद्धांजलि दे रहे हैं... हर कोई इस महान गायिका की तमाम यादों और मन में बस जाने की उनकी गायन शैली के बारे में अपनी भावनाएं अभिव्यक्त कर रहा है... सोशल मीडिया के कुछ साथियों की पोस्ट हम आपको पढ़वाते हैं.. साथ ही अमर उजाला का वो शानदार पेज भी आपके लिए लाए हैं जो
Read Moreआज पैसा कमाना लोगों की जरूरत है, लेकिन बस यह समझिए कि जैसे आप रोज-रोज बर्गर खाकर जिंदा नहीं रह सकते, क्योंकि जिंदा रहने के लिए चावल-दाल खाना पड़ता है, जिसे खाकर हम पले-बढ़े हैं। वैसे ही, भले ही आज हजार जगहों के साहित्य आ गए हों, हजार जगहों के संगीत आ गए हों, लेकिन हमें अपनी संस्कृति नहीं छोड़नी चाहिए। उनकी अच्छी चीजें ले लीजिए, लेकिन अपने संस्कार, अपनी संस्कृति को कभी मत छोडि़ए।
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