दुनिया एक रंगमंच है और हमसब इस रंगमंच की कठपुतलियां हैं। किसी ने ये पंक्तियां यूं ही नहीं कह दीं। अगर आप गहराई से देखें तो हम सब कहीं न कहीं ज़िन्दगी में हर रोज़ कोई न कोई किरदार होते हैं और हर पल हमारे हाव भाव, बोलचाल का अंदाज़ और तमाम घटनाक्रमों के बीच हमारी भूमिका एक नई कहानी गढ़ती है। भारतीय रंगमंच की परंपरा बेहद समृद्ध है और ये कहीं न कहीं हमारे जीवन के तमाम पहलुओं को स्वांग के ज़रिये सामने लाती है। फिल्मों और टेलीविज़न के आने के बाद से रंगमंच की दुनिया में हलचल मच गई और इसके अस्तित्व पर सवाल उठाए जाने लगे। लेकिन हर दौर में देश के तमाम हिस्सों में रंगमंच उसी शिद्दत के साथ मौजूद है और रहेगा। इसकी अपनी दुनिया है और अपने दर्शक हैं। यहां भी नए नए प्रयोग होते रहते हैं और देश भर में लगातार नाटकों का मंचन होता रहता है। कहां क्या हो रहा है, रंगमंच आज किस दौर में है, कौन कौन से प्रयोग हो रहे हैं, कलाकारों की स्थिति क्या है, पारंपरिक और लोक रंगमंच आज कहां खड़ा है – ऐसी तमाम जानकारियां इस खंड में।
अस्मिता थिएटर ग्रुप ने 3 जुलाई को उस स्मृति को दर्शकों के बीच रंगकर्म के माध्यम से याद दिलाने का सफल प्रयास किया । नाटक का नाम था ' पार्टीशन' । इसका मंचन हुआ था मंडी हाउस के त्रिवेणी सभागार में । विभाजन पर लिखी मंटो की कहानी को देखने के लिए जितने लोग अंदर बैठे थे, उतने ही बाहर खड़े थे । देखने के लिए दर्शकों का सैलाब टूटा पड़ा था ।
Read Moreजो आपके सपनों का राजकुमार हो, उससे आप राजकुमारी न होकर किसी और रूप में रूबरू हों ऐसा ही मेरे साथ तब हुआ जब मैंने पहली बार हबीब तनवीर से मुलाक़ात की। हबीब तनवीर का पहला नाटक 'चरणदास चोर' मैंने सन 76 में आगरा के सर्किट हाउस मैदान में चल रहे 'आगरा बाजार' में देखा था। बंसी कौल की वर्कशॉप से ट्रेनिंग लेकर मैं हाल ही में 'अमेचर' रंगकर्मी बना था। मैंने हबीब साहब के नाटक को देखा और छत्तीसगढ़ी लोक 'नाच
Read Moreपिछले लगभग दो साल हिंदी और भारतीय रंगमंच `न होने’ का काल है। यानी नाटक नहीं हुए, रिहर्सल नहीं हए और रंगकर्मी कुछ न करने के लिए अभिशप्त हुए। अब जाकर कुछ नाटक हो रहे हैं पर रंगमंच की दुनिया अभी भी उजाड़ है। ऐसे में बरेली में `जिंदगी जरा सी है’ का मंचन एक ताजा हवा की तरह भी है और अभी के दौर को समझने की कोशिश भी।
Read Moreकोरोना के कारण भारतीय और हिंदी रंगमंच को जो क्षति हुई है उसकी गिनती की जाए तो उसमें एक बड़ा नाम एस एम अज़हर आलम (जन्म 17 अप्रेल 1968) का होगा। लगभग एक साल पहले यानी 20 अप्रेल 2021 को वे कोरोना के शिकार हुए थे। उसके कुछ ही दिन पहले उनको मौलिक नाट्य लेखन के लिए नेमीचंद्र जैन नाट्यलेखन सम्मान मिला था। पर ये सम्मान अज़हर आलम का महत्त्वपूर्ण पर छोटा परिचय ही था।
Read Moreभारतीय रंगमंच के वरिष्ठ निर्देशक बंसी कौल का हिन्दी रंगमंच में अविस्मरणीय और महत्वपूर्ण योगदान है। पिछले कुछ समय से उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था, वह कैंसर से जुझ रहे थे, पर उनकी जिजीविषा और जिंदादिली अद्भुत थी। सबको उम्मीद थी कि वह इस स्थिति से उबर कर दोबारा सक्रिय हो जाएंगे। पर ऐसा नहीं हो सका। जिंदगी के नाटक का पटापेक्ष कर बंसी नेपथ्य में चले गए।
Read Moreजाने माने रंगकर्मी और अपने दौर के जबरदस्त नाटककार हबीब तनवीर पर बहुत कुछ लिखा जाता रहा है... उनके नाटकों पर, उनके व्यक्तित्व पर और कभी समझौता न करने वाले उनके मिजाज़ पर। उनके जन्मदिन और पुण्यतिथि पर उन्हें रंगकर्मी अपने अपने तरीके से याद करते हैं... कोई उनके तमाम नाटकों की बात करता है, कोई उनके सामाजिक सरोकार को याद करता है तो कोई नाटकों के प्रति उनके समर्पण के बारे में बताता है। इप्�
Read Moreभारतीय रंगमंच के पुरोधा कहे जाने वाले इब्राहिम अल्काज़ी ने रंगमंच की दुनिया को क्या क्या दिया, उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के निदेशक के तौर पर क्या क्या किया, एनएसडी जैसे बड़े फलक को संभालते हुए कैसे वो आधुनिक भारतीय रंगमंच के सम्राट बन गए और क्यों उन्हें रंगमंच के 'तुग़लक' जैसी उपाधियां मिलीं... ऐसे तमाम आयामों पर जाने माने रंगकर्मी-पत्रकार और आगरा में एक बेहद ज़मीन से जुड़ी सां�
Read Moreइब्राहिम अल्काजी का जाना भारतीय रंगमंच के लिए एक बहुत बड़े शून्य की तरह है... उन्होंने रंगमंच के लिए जितना कुछ किया और भारतीय रंगमंच को जो ऊंचाई दी उसे कभी भूला नहीं जा सकता। जाने माने रंगकर्मी अरविंद गौड़ ने अल्काजी की रंगमंच यात्रा को कैसे देखा और उन्हें कैसे महसूस किया, इसे हर रंगप्रेमी और थिएटर से जुड़े लोगों को ज़रूर पढ़ना चाहिए... 7 रंग परिवार आदरणीय अल्काजी को अरविंद गौड़ के इस
Read Moreपिछले साल आज के ही दिन प्रख्यात नाटककार गिरीश कर्नाड का निधन हुआ था। निर्भीक संस्कृतिकर्मी, अद्भुत रचनाकार और बैखौफ योद्धा गिरीश कर्नाड को उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर सलाम। वरिष्ठ नाटककार, सामाजिक कार्यकर्ता, एक्टर और डायरेक्टर गिरीश कर्नाड से मेरा व्यक्तिगत रिश्ता था। गिरीश कर्नाड के नाटकों को पढ़ते, देखते और खेलते हुए ही मेरा थियेटर शुरू हुआ।
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