दुनिया एक रंगमंच है और हमसब इस रंगमंच की कठपुतलियां हैं। किसी ने ये पंक्तियां यूं ही नहीं कह दीं। अगर आप गहराई से देखें तो हम सब कहीं न कहीं ज़िन्दगी में हर रोज़ कोई न कोई किरदार होते हैं और हर पल हमारे हाव भाव, बोलचाल का अंदाज़ और तमाम घटनाक्रमों के बीच हमारी भूमिका एक नई कहानी गढ़ती है। भारतीय रंगमंच की परंपरा बेहद समृद्ध है और ये कहीं न कहीं हमारे जीवन के तमाम पहलुओं को स्वांग के ज़रिये सामने लाती है। फिल्मों और टेलीविज़न के आने के बाद से रंगमंच की दुनिया में हलचल मच गई और इसके अस्तित्व पर सवाल उठाए जाने लगे। लेकिन हर दौर में देश के तमाम हिस्सों में रंगमंच उसी शिद्दत के साथ मौजूद है और रहेगा। इसकी अपनी दुनिया है और अपने दर्शक हैं। यहां भी नए नए प्रयोग होते रहते हैं और देश भर में लगातार नाटकों का मंचन होता रहता है। कहां क्या हो रहा है, रंगमंच आज किस दौर में है, कौन कौन से प्रयोग हो रहे हैं, कलाकारों की स्थिति क्या है, पारंपरिक और लोक रंगमंच आज कहां खड़ा है – ऐसी तमाम जानकारियां इस खंड में।


रंगमंच
इतने रंग एक साथ – ‘नाद रंग’ पढ़िए
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October 4, 2017

आज के दौर में अगर लघु पत्रिका और खासकर इस विषय पर केन्द्रित एक पत्रिका को निकालने की हिम्मत जुटाना आसान काम नहीं। लेकिन युवा पत्रकार आलोक पराड़कर की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने अपने इस जज़्बे को बरकरार रखते हुए ‘नाद रंग’ निकालने का साहस किया। व्यावसायिकता और बाज़ारीकरण के इस दौर में पत्रिका निकाल पाना और उसे चला पाना कठिन चुनौती है और खासकर तब भी जब ‘डिजिटल युग’ और ‘मोबाइलीकरण’ न

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अलविदा टॉम ऑल्टर…
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September 30, 2017

अपनी अभिनय प्रतिभा से हिन्दी फिल्मों में नया मुकाम हासिल करने वाले भारत में जन्में पहले अमेरिकी अदाकार टॉम ऑल्टर नहीं रहे। मुंबई में 29 अक्टूबर की रात उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। रंगमंच और फिल्मों के अलावा तमाम टीवी धारावाहिकों में अपने बेहतरीन अभिनय का लोहा मनवा चुके टॉम ऑल्टर 1950 में मसूरी में जन्में, पढ़ने के लिए अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी गए और 1970 में जब लौटकर आए तो दो साल

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‘फेस्टिवल करने या फीते काटने से कला संस्कृति का विकास नही होता’
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September 24, 2017

साहित्य कला परिषद के आगामी नाट्य समारोहों के लिए कलाकारों से जो प्रविष्ठियां मांगी गई हैं, उनकी शर्तें अगर पढ़िए तो साफ लगेगा कि अब सरकार कंटेंट अपने मतलब का चाहती है, स्क्रिप्ट वैसा ही चाहिए जो सरकार की नीतियों की तारीफ करे। इसके खिलाफ दिल्ली के युवा रंगकर्मियों में असंतोष है। मशहूर रंगकर्मी, निर्देशक और जन सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर नाटक करने वाली संस्था अस्मिता के संस्थापक

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प्रेम और आसक्तियों के बीच फंसा ‘कंस’   
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August 5, 2017

गांधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा, तथास्तु एवं प्रिज्म थियेटर ने दिल्ली के श्रीराम सेंटर में महाभारत की महागाथा के नायकों में एक महाराज कंस की मानवीय संवेदनाओं पर आधारित नाटक कंसा का सफल मंचन किया। मंच पर महाराज कंस की भूमिका में जाने-माने कलाकार महेंद्र मेवाती ने अपने अभिनय और संवाद अदायगी से सभागार में उपस्थित दर्शकों को स्तब्ध कर दिया।

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संस्कृत नाटक ‘उत्तर प्रश्नम’ का मंचन
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July 13, 2017

आम तौर पर आज के दौर में संस्कृत नाटकों का मंचन अपने देश में कम होता है, लेकिन इलाहाबाद के दर्शकों को उत्तर प्रश्नम नाम के संस्कृत नाटक ने रंगमंच के नए एहसास से भर दिया। समन्वय नामक सांस्कृतिक संस्था की सचिव सुषमा शर्मा के परिकल्पना और निर्देशन में उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र में हुए इस नाटक के लेखक हैं मीराकांत। इसका संस्कृत भाषा में रूपान्तरण किया सुरेन्द्रपाल सिंह न

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अस्मिता समर थिएटर फेस्टिवल 20 मई से 28 जुलाई तक
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May 18, 2017

पिछले पच्चीस सालों से रंगमंच को आम आदमी से जोड़ने और एक आंदोलन की शक्ल देने में लगा अस्मिता थिएटर ग्रुप आगामी 20 मई से 28 जुलाई तक समर थिएटर फेस्टिवल करने जा रहा है। इस दौरान अस्मिता के तमाम चर्चित नाटकों का मंचन दिल्ली के चार सभागारों में होगा। अस्मिता के नाटक मंडी हाउस के श्रीराम सेंटर, लोदी रोड के इंडिया हैबिटेट सेंटर, और गोल मार्केट के पास मुक्तधारा और लोक कला मंच में देखे जा सकते ह

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रंगमंच को आंदोलन बना देने की सिल्वर जुबली
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May 18, 2017

रंगमंच को आम जनता से जोड़ने और जनरोकारों से जुड़े मुद्दों को नुक्कड़ नाटकों के ज़रिये एक आंदोलन बना देने वाले अस्मिता थिएटर ग्रुप ने अपने 25 साल पूरे कर लिए हैं। इस लंबे सफर के दौरान कई तरह की चुनौतियों से रू ब रू होते हुए अपनी एक अलग पहचान बना चुकी अस्मिता के कलाकार इस वक्त देश भर में फैले हैं और फिल्मों में भी अपनी पहचान बना चुके हैं।

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बस्तियों में फलता फूलता रंगमंच
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May 5, 2017

अपने नाटकों की बदौलत रंगमंच को जनसरोकारों से जोड़ने और विलुप्त होती लोक शैलियों को जीवित करने की कोशिश में बरसों से लगी संस्था रंगलीला ने पूरे एक महीने तक बस्ती का रंगमंच नाम से जो अभियान चलाया, उससे तमाम बस्तियों में रहने वाले 100 से ज्यादा बच्चों और दूसरे लोगों को रंगमंच और नाटक के बारे में पता चला। रंगलीला ने 3 अप्रैल से 2 मई तक लगातार पूरे पूरे दिन बस्तियों में कार्यशालाएं कीं...

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खस्ताहाल सभागार.. कहां जाएं कलाकार?
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November 18, 2016

कला, संस्कृति और रंगमंच के विकास और बढ़ावे के नाम पर न जाने कितने रूपए स्वाहा होते हैं | किन्तु विकास के सारे दावे ध्वस्त हो जाते हैं जब यह पता चलता है कि देश के अधिकांश शहरों में सुचारू रूप से नाटकों के मंचन के योग्य सभागार तक नहीं हैं | महानगरों में जो हैं भी वे या तो बहुत मंहगे हैं या फिर जैसी-तैसी हालत में हैं। इसलिए इन पैसों से चंद गिने-चुने जुगाडू रंगकर्मियों और संगीत नाटक अकादमियों

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दलित छात्र की खुदकुशी के बाद दलित विमर्श का ‘कफ़न’
mm Indianartforms
February 6, 2016

देश के एक कोने में जहां एक दलित छात्र की खुदकुशी पर सियासी विमर्श का ज्वारभाटा अपने चरम पर है वहीं शहर में एक शाम दलितों के दर्द को बयान करने वाली प्रेमचंद की अमर रचना ‘कफन’ के नौटंकी शैली में मंचन के नाम रही| इलाहाबाद के उत्तर मध्य सांस्कृतिक केंद्र का जो ऑडिटोरियम बड़ी हस्तियों की मौजूदगी में भी भर नहीं पाता वह ‘कफ़न’ की प्रस्तुति के दौरान खचाखच भरा था|

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