कला के कई रूप हैं। रंगों की अपनी भाषा है। रेखाएं बोलती हैं। कलाकृतियां कुछ कहती हैं। चित्रों के पीछे पूरा एक दर्शन छुपा होता है और रंगों के संयोजन के पीछे कहीं न कहीं कोई कल्पना होती है। देशभर में कलाकार तो भरे पड़े हैं, दिल्ली, मुंबई समेत तमाम बड़े शहरों में बनी आर्ट गैलरी किसी न किसी कलाकार के काम का एक बेहतरीन आईना भी हैं। लेकिन तमाम कलाकारों का दर्द है कि इस देश में कला की कद्र नहीं। तमाम अकादमियां हैं, आर्ट और स्कल्पचर के तमाम कॉलेज हैं, बड़ी संख्या में यहां ये हुनर सीखने वाले भी हैं लेकिन ऐसा क्या है जो कलाकारों के भीतर उपेक्षा का भाव भरता है। हमारा मकसद इन सवालों पर बहस के साथ साथ देश भर के उन कलाकारों को मंच देना है और उनके काम को एक बड़ा आयाम देना है जो महज गैलरी में सिमट कर रह जाते हैं और चंद पेंटिग्स के बिक जाने का इंतज़ार भर करते हैं। कला के क्षेत्र में नया क्या हो रहा है, नई पीढ़ी के कलाकार क्या कर रहे हैं और जाने माने कलाकारों के काम को दुनिया किस तरह देख रही है – ये सब हम बताने की कोशिश करेंगे।
नए साल की शुरुआत के साथ ही कलाकारों में एक नया जोश देखने को मिला है और वो करीब नौ महीनों के बाद खुलकर अपनी कला का प्रदर्शन करने एक जगह जमा हो रहे हैं। ये पहल की है दिल्ली की नेशनल गैलरी ऑफ मॉर्डर्न आर्ट्स (एनजीएमए) ने। 2020 की तमाम बंदिशों के बाद एनजीएमए ने नए साल के पहले शनिवार और रविवार से हर हफ्ते कलाकारों के लिए ये बेहतरीन और उत्साह बढ़ाने वाला सिलसिला शुरु किया है। पहले दिन इसके मुख्य
Read Moreपलक प्रकाश महज़ 12-13 साल की है। पिछले कई सालों से पेंसिल, आर्ट पेपर, कलर पेंसिल और तरह तरह के रंगों से खेलती है। मुंबई में रहती है। जब एकदम छोटी सी थी तब भी रेखाएं और रंग उसके लिए अपनी अभिव्यक्ति के सबसे कारगर माध्यम थे। धीरे धीरे उसने खुद को कला के क्षेत्र में केन्द्रित किया। रोज़ कुछ न कुछ बनाने लगी। कोई ट्रेनिंग नहीं ली, कहीं से कुछ सीखा नहीं। कल्पनाओं की उसकी अपनी दुनिया है और हमेशा ह
Read Moreपिछले तीस पैंतीस बरसो से हिंदी भाषी इलाके में कविता को लेकर एक नई तरह की उत्सुकता पैदा हुई है। कविता पोस्टरों के रूप में। कई ऐसे कविता प्रेमी सामने आए हैं जो कविताओं या काव्य पंक्तियों के पोस्टर बनाते हैं। कुछ इनकी प्रदर्शनियां भी लगाते हैं। कुछ, बल्कि ज्यादातर, सोशल मीडिया के माध्यम से अपने पोस्टरों को प्रचारित करते हैं। इस सिलसिले मे जिन लोगों के नाम प्रमुख रूप से उल्लेखनीय है
Read Moreइस कोरोना काल में राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक स्तर पर तालाबंदी (लॉकडाउन) हुई है। लेकिन दूसरे स्तर पर तालाखुलंदी भी हुई है। ये कला और साहित्य के स्तर पर हुआ है। कलाकार और साहित्यकार का मन किसी भी स्थिति में, तालाबंदी में भी, कैद नहीं रह सकता है और एकांत में भी अच्छी कलाकृतियां रची जा सकती हैं। ऐसा पहले भी हुआ है और इस कोरोना काल में भी हो रहा है।
Read Moreसत्यजीत रे की फिल्में देखते हुए आपको अपने आसपास की जन्दगी, सामाजिक सच्चाइयों और उनकी गहरी कला दृष्टि का एहसास होता है। आज के दौर के फिल्मकारों को उनसे बहुत कुछ सीखने की जरूरत है... जन्मशती वर्ष पर रे को नमन...
Read Moreएक ज़माने में सक्रिय पत्रकारिता में रहीं डॉ तृप्ति की कला, साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में गहरी पकड़ रही है। तमाम सामाजिक सवालों के साथ ही तमाम मनोवैज्ञानिक मसलों पर अपनी अहम् राय रखने वालीं डॉ तृप्ति ने इस आलेख के ज़रिये कला के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाने वाले ब्रजमोहन आनंद की कला यात्रा पर बारीक नज़र डाली है।
Read Moreएक संवेदनशील चित्रकार कैसे एक बेहतरीन फिल्मकार बन सकता है, सत्यजित राय इसके अद्भुत मिसाल हैं। उन्हें गुज़रे 18 साल हो गए... आने वाली 2 मई से उनके जन्म शताब्दी वर्ष की शुरुआत हो जाएगी। आज उन्हें याद करते हुए ये सोचने को हम बरबस मजबूर हो जाते हैं कि कम्प्यूटर ग्राफिक्स और एनिमेशन के इस आधुनिकतम दौर में क्या किसी फिल्मकार में इतना सब्र, इतनी गहरी दृष्टि, हर दृश्य और हर फ्रेम को पहले चित्रो
Read Moreआज के दौर में जामिनी रॉय जैसे कलाकार क्यों याद आते हैं? क्या बदलते दौर में, विकास की अंधी दौड़ में और 21वीं सदी की तथाकथित आधुनिकतावाद में उनके चित्रों के पात्र ज्यादा ज़रूरी लगते हैं? क्या उनके पात्रों में रची बसी गांवों की खुशबू, संस्कृतियों और परंपराओं की जीवंतता और हमारे मूल्यों की तलाश पूरी होती है? दरअसल जामिनी राय का कालखंड तब का है जब देश तथाकथित तौर पर इतना विकसित नहीं हुआ था।
Read Moreएक कलाकार सिर्फ सम्मानों या रिश्तों से बड़ा नहीं होता। सतीश गुजराल के चित्रों और तमाम कलाकर्म में जो संवेदना दिखती है, वह उन्हें उस पहचान से कहीं दूर खड़ा करती है कि वो पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल के छोटे भाई थे या उन्हें पद्म विभूषण या कला का राष्ट्रीय पुरस्कार तीन तीन बार मिल चुका था। दरअसल जिस कलाकार ने विभाजन का दर्द देखा हो, महसूस किया हो और जिसकी दृष्टि समाज के तमाम
Read Moreश्रीधराणी कला दीर्घा में चल रही सुनील यादव की कलाकृतियों की प्रदर्शनी इस सुखद विस्मय से भर देती हैं कि कैसे एक अपेक्षाकृत अत्यंत युवा कलाकार ने अपना एक विशिष्ट मुहावरा विकसित कर लिया है। कई बड़ी उम्र के कलाकार भी लंबे समय तक काम करने के बाद अपना मुहावरा विकसित नहीं कर पाते। ज्यादातर वे कई दिशाओं में भटकते रहते हैं। पर सुनील ने आरंभिक दिनो में वो पा लिया है। आरंभिक नजर में ही ये कला
Read More