देश के विभाजन हुए 75 वर्ष हो रहे हैं । उस काल को देखने वाले अब बहुत कम ही लोग हमारे बीच हैं । लेकिन विभाजन ने दोनों देश के बीच जो दरार पैदा की थी, जो दर्द छेड़ा था, आज भी रह - रह कर टीस मारता रहता है । लोगों के जेहन से उतर नहीं पाया है । अस्मिता थिएटर ग्रुप ने 3 जुलाई को उस
हर महीने कहानी, कविता और शायरी जैसे रचनात्मक साहित्य को एक नए आयाम के साथ सामने लाने का जो बेहतरीन काम गाजियाबाद में हो रहा है, वह शायद इस स्तर और इस शिद्दत के साथ कहीं और नहीं हो रहा है। देश भर में साहित्यिक आयोजन तो अक्सर होते रहते हैं, किसी लेखक, कवि या रचनाकार की स्मृति में या जन्मदिन पर या फिर किसी और आयोजन के तहत, लेकिन हर महीने दो आयोजन और उसमें इतनी
जाने माने रंगकर्मी और रंगलीला के संस्थापक, पत्रकार और संस्कृतिकर्मी अनिल शुक्ल बेहद जीवट से भरे और रचनात्मक ऊर्जा से भरपूर साथी हैं। हबीब तनवीर से अपनी मुलाकात और अनुभवों को अनिल जी ने अपने फेसबुक वॉल पर साझा किया है.. ये पहली किस्त है और उनका संस्मरण आगे भी आएगा तो हम 7 रंग के पाठकों के लिए साझा करेंगे। अनिल जी से बगैर पूछे ये संस्मरण हम यहां छाप रहे हैं, ये ज
(कौशल किशोर जाने माने कवि हैं, जन संस्कृति मंच उत्तर प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष हैं, संस्कृतिकर्मी, लेखक और पत्रकार हैं साथ ही निरंतर सक्रिय रहने वाले एक बेहद जीवंत शख्सियत हैं। कौशल जी रेवान्त पत्रिका के संपादक हैं और जन संदेश टाइम्स के साहित्य से जुड़े पेज पर
हिंडाल्को के महाराणा प्रताप थे मजदूर नेता रामदेव सिंह
मज़दूरों के हक के लिए अपनी पूरी ज़िंदगी लगा देने वाले और मुफलिसी के बावजूद अपने उसूलों से समझौता न करने वाले रामदेव सिंह की कहानी आज के दौर में मजदूरों के बिखरे संघर्ष और खत्म हो रहे ट्रेड यूनियन आंदोलन को देखते हुए नई पीढ़ी में प्रेरणा का संचार कर सकता है। ये आलेख 7 रंग को भेजा है अरुण तिवारी ने।
हिंडाल्को, रेनूकूट के मजदूर नेता रामदेव सिंह 14 वर्षों तक कंपनी
मोहल्ले बंट रहे हैं मजहबों में, किसे बस्ती बसाने की पड़ी है
रामनिहाल गुंजन का निधन जन सांस्कृतिक आंदोलन के लिए बड़ा धक्का
जाने-माने मार्क्सवादी आलोचक और साहित्यकार रामनिहाल गुंजन का उनके निवास आरा (भोजपुर, बिहार) में 18 अप्रैल की रात निधन हो गया। उनकी उम्र 86 के आसपास थी। इस उम्र म
♦ रवीन्द्र त्रिपाठी
अक्सर ये देखा गया है कि जो सत्ताएं मंगलकारी राज्य के नारे और घोषणाओं के साथ आती है वो एक ऐसे दु:स्वप्न या आतंककारी सत्ता में बदल जाती हैं जिसमें नागरिक सामान्य अधिकारों का हनन होता है। ये
‘शिव, शक्ति और विश्वास’ पर निवेदिता मिश्रा के शिल्प
अपने पिता की विरासत और उनकी कला दृष्टि को एक ऊंचाई तक पहुंचाने की बरसों से कोशिश में लगी निवेदिता मिश्रा के लिए इस बार का महिला दिवस बेहद खास रहा। दिल्ली के त्रिवेणी आर्ट गैलरी में 8 मार्च से 23 मार्च तक आप हर तरफ निवेदिता मिश्रा के बेहतरीन स्कल्पचर और मूर्तिकला को देख और महसूस कर सकते हैं। निवेदिता की इस प्रदर्शनी का नाम है ‘नित्य’। ओडिसा के बोलंगीर से ताल्लुक रखने वाली निवेदिता
'...पिछले लगभग दो साल हिंदी और भारतीय रंगमंच `न होने’ का काल है। यानी नाटक नहीं हुए, रिहर्सल नहीं हए और रंगकर्मी कुछ न करने के लिए अभिशप्त हुए। अब जाकर कुछ नाटक हो रहे हैं पर रंगमंच की दुनिया अभी भी उजाड़ है। ऐसे में बरेली में `जिंदगी जरा सी है’ का मंचन एक ताजा हवा की तरह भी है और अभी के दौर को समझने की कोशिश भी।...'Read More