सिनेमा को एक गंभीर ऊंचाई तक पहुंचाने वाले सत्यजीत राय के बाद अब श्याम बेनेगल भी चले गए। सार्थक और समानांतर सिनेमा के ऑइकॉन बन गए बेनेगल के लिए सिनेमा समाज की उन सच्चाइयों का आईना रहा जहां जीवन की जद्दोजहद और आम लोगों के सवाल अहम थे... बेशक वह 90 साल के हो चुके थे, डॉयलिसिस पर भी थे, लेकिन आखिरी दिनों तक अपने गंभीर प्रोजेक्ट्स को लेकर चिंतित थे... श्याम बेनेगल के कई आयाम हैं... उन
गाजियाबाद में कहानियों के सार्थक मंच और इसके सफल मासिक आयोजन ने 'कथा रंग' के बैनर तले तमाम दिग्गज कथाकारों को जोड़ने में कामयाबी पाई है। हर महीने होने वाले इस आयोजन में तकरीबन साठ सत्तर लोगों की लगातार मौजूदगी और सक्रिय भागीदारी यह साबित करती है कि कहानी लेखन को लेकर कितनी बारीक बातें लोग सुनना समझना चाहते हैं। बेशक हर बार नई नई कहानियां सामने आना , उनपर चर्चा होना और तमाम वरिष
हिन्दी सिनेमा के सबसे बड़े शो मैन राजकपूर की जन्मशती पर विशेष सिनेमा की दुनिया को बेहद करीब से समझने वाले और राजकपूर जैसे शोमैन की कलायात्रा को गहराई से महसूस करने वाले जाने माने पत्रकार और लेखक प्रताप सिंह ने उनकी जन्मशती के मौके पर बेहद संजीदगा के साथ 7 रंग के लिए ये विशेष पेशकश भेजी है... राज साहब की फिल्म यात्रा को समझने के साथ ही उन
कतरा कतरा कम होता हूं इस मौसम से यारी की, जिस्म पिघल कर बह जाता है कुछ कुछ रोज पसीने में: नबील बारादरी में गूंजे शेर, गीत, दोहों पर देर तक झूमे श्रोता Read More
जोश मलीहाबादी ने अपनी आत्मकथा ‘यादों की बरात’ में लिखा है,‘‘बेहद अफ़सोस है कि मैं यह लिखने को ज़िंदा हूं कि मजाज़ मर गया. यह कोई मुझसे पूछे कि मजाज़ क्या था और क्या हो सकता था. मरते वक़्त तक उसका महज एक चौथाई दिमाग़ ही खुलने पाया था और उसका सारा क़लाम उस एक चौथाई खुले दिमाग़ की खुलावट का करिश्मा है. अगर वह बुढ़ापे की उम्र तक आता, तो अपने दौर का सबसे बड़ा शायर हो