कुंवर नारायण बेशक 90 साल के हो गए हों, बीमार भी रहे हों, लेकिन उनका चले जाना कई स्मृतियों को फिर से ताजा कर गया। लखनऊ में हुई उनसे एकाध मुलाकातें और कुछ समारोहों में उनकी बेहद संज़ीदा और सरल उपस्थिति। वो किसी वाद के शिकार नहीं थे फिर भी वो जनवादी थे। वो किसी विचारधारा में बंधे नहीं थे लेकिन लिखने में वो आपके बेहद करीब खड़े दिखते थे, एकदम हमारे आपके पास, ज़िंदगी की उलझनों और हकीकतों के सा
Read Moreकर्नाटक में बाल दिवस के मौके पर हर साल 'मक्काला हब्बा' के नाम से एक बेहतरीन आयोजन होता है। इस मौके पर राज्य के सभी मंत्रालय और विभागों के साथ साथ तमाम स्वयंसेवी संगठन, स्कूल और संस्थान अपने अपने तरीके से कला-संस्कृति और परंपरागत ग्रामीण खेलों से जुड़े तमाम रंग पेश करते हैं। यह एक ऐसा सामूहिक और दिलचस्प आयोजन होता है जहां अभिभावक, माता-पिता और बच्चे साथ साथ अपने बचपन को जीते हैं, हर तरह
Read Moreभारतीय जनजातियों में भील जनसंख्या के नज़रिए से दूसरे स्थान पर आते हैं। मध्य प्रदेश में भी गोंड जनजाति के बाद भील जनजाति जनसंख्या के आधार पर दूसरे स्थान पर है। श्याम रंग, छोटा-मध्यम कद, गठीला शरीर और लाल आंखें, यह सब इनकी शारीरिक रचना है। लेकिन इन्हें देखकर कोई भी इनके इतिहास के बारे अंदाज़ा नहीं लगा सकता। पर... ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर इनका वजूद कुछ अलग ही दृष्टिकोण से देखा जा सकता है। भ
Read Moreमैं कार से उतर कर हेमंत जी के पीछे-पीछे घर की सीढ़िया चढ़ने लगा. सीढ़ियां एक बड़े से ड्राइंग रूम के सामने जाकर रुकीं. दायें हाथ की ओर घूमा तो देखा- फर वाली टोपी लगाए, सोफ़े पर एक बुज़ुर्ग बैठे हैं. मेरी तरफ़ उनकी पीठ थी. मैं घूम कर जैसे ही सामने पहुंचा, दंग रह गया. वे मनु शर्मा थे. एकाएक मेरी स्मृतियों में ‘राणा सांगा’, ‘छत्रपति’ और ‘मरीचिका’ मुस्कुराने लगे. 'दौपदी', 'द्रोण', 'कर्ण' और 'कृष्ण' आ
Read Moreजाने माने साहित्यकार मनु शर्मा अपने पीछे साहित्य की एक ऐतिहासिक विरासत छोड़कर पंचतत्व में विलीन हो गए। वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर उन्हें अंतिम विदाई देने वालों की आंखें नम थीं। पद्मश्री मनु शर्मा को पौराणिक कथाओं और पात्रों को आधुनिक संदर्भ में उपन्यासों-कहानियों के जरिए जीवंत करने वाला हिंदी साहित्य का पुरोधा माना जाता था। 89 वर्षीय शर्मा ने वाराणसी के बड़ी पियरी स्थित आवास
Read Moreविजयदान देथा ने साहित्य को क्या दिया और उनकी कहानियों पर बनी कुछ चुनिंदा फिल्मों ने अपनी क्या छाप छोड़ी, ये समझना है तो देथा का जानना ज़रूरी है। बेशक देथा राजस्थान के हों, उनकी कहानियों में परिदृष्य भी वहीं के हों, लेकिन जो सवाल उन्होंने उठाए और जिस रचना संसार के लिए वो जाने जाते हैं उसका दायरा बहुत बड़ा है। उन्होंने समाज को इतने करीब से देखा, परंपराओं और सामाजिक विसंगतियों के जो कथा
Read Moreशिक्षण के क्षेत्र में कला की स्वीकार्यता अब तक नहीं हो पाई है। स्कूलों में जहां इसे एक अतिरिक्त या शौकिया विषय के तौर पर लिया जाता है, वहीं तमाम कला संस्थानों में आने वाले छात्र अपने भविष्य को लेकर चिंतित रहते हैं। न तो कला को समझने वाले मिलते हैं, न मीडिया में इसके बारे में लिखने वाले बचे हैं और न ही कला के तमाम आयामों को करियर के तौर पर मान्यता मिल पा रही है। नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्
Read Moreअखिल भारतीय लोक व आदिवासी कला परिषद के जनरल सेक्रेटरी, मार्शल आर्ट के मास्टर और अपने स्टंट की बदौलत फिल्म इंडस्ट्री में अलग पहचान बनाने वाले हसन को उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए कर्नाटक सरकार ने राज्योत्सव अवार्ड से सम्मानित किया। बेंगलुरू के एक राजकीय समारोह में मुख्यमंत्री सिद्धारमैय्या और संस्कृति मंत्री उमाश्री ने हसन रघु को यह सम्मान दिया।
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