आनंद स्वरूप वर्मा बेशक अस्सी बरस के हो गए हों, लेकिन उनके भीतर का जुझारू पत्रकार, लेखक और जनांदोलनों के प्रति उनका समर्पित एक्टिविज्म अब भी किसी उत्साही युवा की तरह बरकरार है। वो लगातार लिखते हैं, अनुवाद करते हैं, आज के तमाम जरूरी सवालों पर उसी शिद्दत के साथ बोलते हैं, साथ ही एक जनपक्षधर पत्रकारिता को जिंदा रखने की कोशिश करते हैं।
जाने माने कवि और बेहद आत्मीय मंगलेश डबराल को यूं खो देना आज भी मन में कचोट पैदा करता है। उनकी ढेर सारी यादें हैं। साहित्य जगत और खासकर कविता के क्षेत्र में उनके योगदान की कहानी और उपलब्धियां तो अपनी जगह हैं लेकिन उनके भीतर का संवेदनशील इंसान अपनी जगह। उनके तमाम दोस्त, संघर्षों के साथी और हर उतार चढ़ाव के गवाह हमारे कई वरिष्ठ लेखक, कवि, साहित्यकार औऱ संस्कृतिकर्मी उन्हें कभी नहीं भू
वो जहां जाते थे, जिससे मिलते थे, सबके बहुत अपने हो जाते थे... उनकी सादगी और संघर्ष की कहानियां तमाम हैं... हर साथी की अपनी अपनी यादें हैं, अपने अपने अनुभव हैं... सबके लिए वो चितरंजन भाई थे.. हमारे लिए भी... गमछा गले में लपेटे या कभी कभार पगड़ी की तरह बांध लेते, पान खाते, गोल मुंहवाले बहुत ही प्यारे से लेकिन सबके संघर्ष के साथी... खुद की तकलीफों की कभी परवाह नहीं की... बातें करने से ज्यादा सुनने में भ