देश विदेश के अलग अलग हिस्सों में भारतीय साहित्य, कला और संस्कृति से जुड़े तमाम कार्यक्रम होते हैं, ढेर सारी गतिविधियां होती हैं। कई ख़बरें भी होती हैं जो हम तक नहीं पहुंच पातीं। गोष्ठियां, कार्यशालाएं होती हैं, रंगकर्म की तमाम विधाओं की झलक मिलती है और लोक संस्कृति के कई रूप दिखते हैं। नए कलाकार, नई प्रतिभाएं और संस्थाएं साहित्य-संस्कृति को समृद्ध करने की कोशिशों में लगे रहते हैं लेकिन उनकी जानकारी कम ही लोगों तक पहुंच पाती है। हमारी कोशिश है कि इस खंड में हम ऐसी ही गतिविधियों और ख़बरों को शामिल करें … चित्रों और वीडियो के साथ।


गतिविधियां/ख़बरें
कला और संस्कृति बेटियों को सम्मान दिलाने का सबसे मज़बूत माध्यम – डॉ महेश शर्मा
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August 14, 2016

केन्द्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने कहा है कि बेटियों को आगे बढ़ाने, उन्हें सम्मान दिलाने और आत्म निर्भर बनाने के लिए कला और संस्कृति सबसे बेहतरीन माध्यम है। अगर देश भर के संस्कृतिकर्मी, चिकित्सक और समाजसेवी संस्थाएं मिलकर काम करें तो प्रधानमंत्री के बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान की कामयाबी में कोई संदेह नहीं है।

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बेटी उत्सव के तहत देशव्यापी पेंटिंग प्रतियोगिता
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August 13, 2016

आज़ादी के 70 साल बाद अब देश नई करवट ले रहा है और बेटियों को मुख्य धारा में लाने के साथ साथ उन्हें बराबरी का हक दिलाने की दिशा में कोशिशें तेज़ हुई हैं। सुखी संसार और परिधि आर्ट ग्रुप 14 से 22 अगस्त तक बेटी उत्सव का आयोजन कर रही है जिसके तहत देश भर के स्कूलों की लड़कियों के लिए तमाम तरह के कार्यक्रम रखे गए हैं।

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भारत पर्व में संस्कृति के तमाम रंग
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August 12, 2016

भारतीय संस्कृति के इंद्रधनुषी रंग देखना हो तो दिल्ली के इंडिया गेट आइए। यहां राजपथ के लॉन्स में देश के हर राज्यों की कला और संस्कृति के अलावा वहां के स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ उठाया जा सकता है। संस्कृति मंत्रालय और पर्यटन मंत्रालय की ओर से आयोजित भारत पर्व में आपको 17 राज्यों के थीम पैवेलियन दिखेंगे...

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नोएडा में बनारसी बुढ़वा मंगल
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April 18, 2016

बनारसी रंग में सराबोर शाम को बनारसी खानपान और पुरबिया लोक गीत के इंतज़ार में बुढ़वा मंगल का आयोजन भीड़- भाड़ बढ़ने के साथ धीरे- धीरे गति पकड़ रहा था. नोएडा में आयोजित बुढ़वा मंगल उत्सव पर बनारस से मंगाई गई रसवंती (चौक) की मिठाइयां, बनारसी ठंडई- मलाई, बनारसी भांग, मशहूर दीना का बनारसी चाट, शुद्ध देशी घी में बना बनारस का पारम्परिक नाश्ता कचौरी- जलेबी का व्यवस्थित स्टॉल लगा था.

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इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र की सूरत बदलेगी
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April 14, 2016

कला और संस्कृति के प्रतिष्ठित सरकारी केंद्र की ज़िम्मेदारी सरकार ने वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय को सौंपी है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के बोर्ड को भंग कर संस्कृति मंत्रालय ने पद्मश्री और वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय को इस केंद्र का नया प्रमुख बनाया है. बोर्ड में कला और संस्कृति के क्षेत्र से जुड़े 20 सदस्य होते हैं।

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‘बटरफ्लाई’ दादी का हौसला
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March 25, 2016

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उर्दू अदब की सबसे पुरानी विरासत को बचाने की बड़ी पहल
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February 25, 2016

उर्दू अदब की तमाम अनमोल विरासत आज मुल्क के कई तंजीमो में बिखरी पड़ी है जो बदइन्तज़ामी की वजह से मिटने की कगार पर है| आजादी के पहले उर्दू और हिन्दी अदब की सबसे पुरानी तंजीम हिन्दुस्तानी एकेडमी ने अपनी उर्दू अदब को बचाने के लिए एक बड़ी पहल की है| 90 बरस की हो गई हिन्दुस्तानी एकेडमी में मौजूद उर्दू अदब की 5 हजार से अधिक दुर्लभ ग्रंथों और अभिलेखों को डिजिटल स्वरूप प्रदान किया जायेगा

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सियासत के फेर में उर्दू बेदार
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February 19, 2016

इलाहाबाद : जिस मुल्क में हम रहते है उसमें 5 करोड़ 15 लाख 36 हजार 111 लोग उर्दू के जानकार हैं जो रोजाना जिन्दगी में उर्दू बोलते या लिखते हैं| इस मुल्क के 6 सूबों में उर्दू को सरकारी जुबान का दर्जा भी दे दिया गया है। बावजूद इसके आज मुल्क में इस भाषा का सूरत-ए-हाल उर्दू पसंद लोगों की आँखें खोलने वाला है|

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दलित छात्र की खुदकुशी के बाद दलित विमर्श का ‘कफ़न’
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February 6, 2016

देश के एक कोने में जहां एक दलित छात्र की खुदकुशी पर सियासी विमर्श का ज्वारभाटा अपने चरम पर है वहीं शहर में एक शाम दलितों के दर्द को बयान करने वाली प्रेमचंद की अमर रचना ‘कफन’ के नौटंकी शैली में मंचन के नाम रही| इलाहाबाद के उत्तर मध्य सांस्कृतिक केंद्र का जो ऑडिटोरियम बड़ी हस्तियों की मौजूदगी में भी भर नहीं पाता वह ‘कफ़न’ की प्रस्तुति के दौरान खचाखच भरा था|

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अस्सी पर सुबह-ए-बनारस
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January 30, 2016

दशाश्वमेध घाट और गंगा आरती के विहंगम और मनमोहक दृश्यों वाली काशी आखिर अचानक अपनी खालिस देसी गालियों के लिए खबरों में कैसे आ गई? दशाश्वमेध और अस्सी के बीच का फ़ासला बमुश्किल पांच किलोमीटर का होगा लेकिन यहां तक आते आते पूरी की पूरी संस्कृति आखिर कैसे बदल जाती है? गंगा भी वही है, गंदगी भी वैसी ही है लेकिन अल्हड़ और मस्त अंदाज़ के साथ साहित्य और संस्कृति का अनोखा मेल आखिर अस्सी पर ही क्य

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