दुनिया एक रंगमंच है और हमसब इस रंगमंच की कठपुतलियां हैं। किसी ने ये पंक्तियां यूं ही नहीं कह दीं। अगर आप गहराई से देखें तो हम सब कहीं न कहीं ज़िन्दगी में हर रोज़ कोई न कोई किरदार होते हैं और हर पल हमारे हाव भाव, बोलचाल का अंदाज़ और तमाम घटनाक्रमों के बीच हमारी भूमिका एक नई कहानी गढ़ती है। भारतीय रंगमंच की परंपरा बेहद समृद्ध है और ये कहीं न कहीं हमारे जीवन के तमाम पहलुओं को स्वांग के ज़रिये सामने लाती है। फिल्मों और टेलीविज़न के आने के बाद से रंगमंच की दुनिया में हलचल मच गई और इसके अस्तित्व पर सवाल उठाए जाने लगे। लेकिन हर दौर में देश के तमाम हिस्सों में रंगमंच उसी शिद्दत के साथ मौजूद है और रहेगा। इसकी अपनी दुनिया है और अपने दर्शक हैं। यहां भी नए नए प्रयोग होते रहते हैं और देश भर में लगातार नाटकों का मंचन होता रहता है। कहां क्या हो रहा है, रंगमंच आज किस दौर में है, कौन कौन से प्रयोग हो रहे हैं, कलाकारों की स्थिति क्या है, पारंपरिक और लोक रंगमंच आज कहां खड़ा है – ऐसी तमाम जानकारियां इस खंड में।


रंगमंच
बस्तियों में फलता फूलता रंगमंच
7 Rang
May 5, 2017

अपने नाटकों की बदौलत रंगमंच को जनसरोकारों से जोड़ने और विलुप्त होती लोक शैलियों को जीवित करने की कोशिश में बरसों से लगी संस्था रंगलीला ने पूरे एक महीने तक बस्ती का रंगमंच नाम से जो अभियान चलाया, उससे तमाम बस्तियों में रहने वाले 100 से ज्यादा बच्चों और दूसरे लोगों को रंगमंच और नाटक के बारे में पता चला। रंगलीला ने 3 अप्रैल से 2 मई तक लगातार पूरे पूरे दिन बस्तियों में कार्यशालाएं कीं...

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खस्ताहाल सभागार.. कहां जाएं कलाकार?
mm Indianartforms
November 18, 2016

कला, संस्कृति और रंगमंच के विकास और बढ़ावे के नाम पर न जाने कितने रूपए स्वाहा होते हैं | किन्तु विकास के सारे दावे ध्वस्त हो जाते हैं जब यह पता चलता है कि देश के अधिकांश शहरों में सुचारू रूप से नाटकों के मंचन के योग्य सभागार तक नहीं हैं | महानगरों में जो हैं भी वे या तो बहुत मंहगे हैं या फिर जैसी-तैसी हालत में हैं। इसलिए इन पैसों से चंद गिने-चुने जुगाडू रंगकर्मियों और संगीत नाटक अकादमियों

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दलित छात्र की खुदकुशी के बाद दलित विमर्श का ‘कफ़न’
mm Indianartforms
February 6, 2016

देश के एक कोने में जहां एक दलित छात्र की खुदकुशी पर सियासी विमर्श का ज्वारभाटा अपने चरम पर है वहीं शहर में एक शाम दलितों के दर्द को बयान करने वाली प्रेमचंद की अमर रचना ‘कफन’ के नौटंकी शैली में मंचन के नाम रही| इलाहाबाद के उत्तर मध्य सांस्कृतिक केंद्र का जो ऑडिटोरियम बड़ी हस्तियों की मौजूदगी में भी भर नहीं पाता वह ‘कफ़न’ की प्रस्तुति के दौरान खचाखच भरा था|

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लोक रंगमंच सरकार की असहिष्णुता का शिकार – सीमा विश्वास
mm Indianartforms
November 19, 2015

एक तरफ जहां देश में सहिष्णुता और असहिष्णुता की बहस छिड़ी है, वहीं अब रंगमंच और सिनेमा से जुड़ी हस्तियों ने सरकार में एक नए तरीके की असहिष्णुता भी खोज निकाली है| हिंदी फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’ में अपने दमदार अभिनय की बदौलत अपनी पहचान बनाने वाली अभिनेत्री और थिएटर कलाकार सीमा विश्वास को लगता है कि देश में सहिष्णुता और असहिष्णुता की बहस बेमानी है|

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