दुनिया एक रंगमंच है और हमसब इस रंगमंच की कठपुतलियां हैं। किसी ने ये पंक्तियां यूं ही नहीं कह दीं। अगर आप गहराई से देखें तो हम सब कहीं न कहीं ज़िन्दगी में हर रोज़ कोई न कोई किरदार होते हैं और हर पल हमारे हाव भाव, बोलचाल का अंदाज़ और तमाम घटनाक्रमों के बीच हमारी भूमिका एक नई कहानी गढ़ती है। भारतीय रंगमंच की परंपरा बेहद समृद्ध है और ये कहीं न कहीं हमारे जीवन के तमाम पहलुओं को स्वांग के ज़रिये सामने लाती है। फिल्मों और टेलीविज़न के आने के बाद से रंगमंच की दुनिया में हलचल मच गई और इसके अस्तित्व पर सवाल उठाए जाने लगे। लेकिन हर दौर में देश के तमाम हिस्सों में रंगमंच उसी शिद्दत के साथ मौजूद है और रहेगा। इसकी अपनी दुनिया है और अपने दर्शक हैं। यहां भी नए नए प्रयोग होते रहते हैं और देश भर में लगातार नाटकों का मंचन होता रहता है। कहां क्या हो रहा है, रंगमंच आज किस दौर में है, कौन कौन से प्रयोग हो रहे हैं, कलाकारों की स्थिति क्या है, पारंपरिक और लोक रंगमंच आज कहां खड़ा है – ऐसी तमाम जानकारियां इस खंड में।
अपने नाटकों की बदौलत रंगमंच को जनसरोकारों से जोड़ने और विलुप्त होती लोक शैलियों को जीवित करने की कोशिश में बरसों से लगी संस्था रंगलीला ने पूरे एक महीने तक बस्ती का रंगमंच नाम से जो अभियान चलाया, उससे तमाम बस्तियों में रहने वाले 100 से ज्यादा बच्चों और दूसरे लोगों को रंगमंच और नाटक के बारे में पता चला। रंगलीला ने 3 अप्रैल से 2 मई तक लगातार पूरे पूरे दिन बस्तियों में कार्यशालाएं कीं...
Read Moreकला, संस्कृति और रंगमंच के विकास और बढ़ावे के नाम पर न जाने कितने रूपए स्वाहा होते हैं | किन्तु विकास के सारे दावे ध्वस्त हो जाते हैं जब यह पता चलता है कि देश के अधिकांश शहरों में सुचारू रूप से नाटकों के मंचन के योग्य सभागार तक नहीं हैं | महानगरों में जो हैं भी वे या तो बहुत मंहगे हैं या फिर जैसी-तैसी हालत में हैं। इसलिए इन पैसों से चंद गिने-चुने जुगाडू रंगकर्मियों और संगीत नाटक अकादमियों
Read Moreदेश के एक कोने में जहां एक दलित छात्र की खुदकुशी पर सियासी विमर्श का ज्वारभाटा अपने चरम पर है वहीं शहर में एक शाम दलितों के दर्द को बयान करने वाली प्रेमचंद की अमर रचना ‘कफन’ के नौटंकी शैली में मंचन के नाम रही| इलाहाबाद के उत्तर मध्य सांस्कृतिक केंद्र का जो ऑडिटोरियम बड़ी हस्तियों की मौजूदगी में भी भर नहीं पाता वह ‘कफ़न’ की प्रस्तुति के दौरान खचाखच भरा था|
Read Moreएक तरफ जहां देश में सहिष्णुता और असहिष्णुता की बहस छिड़ी है, वहीं अब रंगमंच और सिनेमा से जुड़ी हस्तियों ने सरकार में एक नए तरीके की असहिष्णुता भी खोज निकाली है| हिंदी फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’ में अपने दमदार अभिनय की बदौलत अपनी पहचान बनाने वाली अभिनेत्री और थिएटर कलाकार सीमा विश्वास को लगता है कि देश में सहिष्णुता और असहिष्णुता की बहस बेमानी है|
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