लॉकडाउन के दौरान शुरुआत के कुछ दिनों की निराशा-हताशा और डर को छोड़कर फिर जो सोशल मीडिया साहित्य का दौर शुरु हुआ, वर्चुअल संवाद, वेबिनार और लाइव का सिलसिला शुरु हुआ, वह दिसंबर आते आते हरेक के जीवन का हिस्सा बन गया। इस मायने में कोरोना काल इतिहास में दर्ज किया जाएगा कि कैसे एक झटके में इसने सबको डिजिटल बना दिया और फासलों के बावजूद इस ‘काल’ ने आभासी दुनिया में सबको एक दूसरे के पास पहुंचा
Read More2020 ने तो एक झटके में सबकी चांदी ही चांदी कर दी। अब भी अगर आप डिजिटल न हो सके तो फिर आपका ऊपरवाला ही मालिक है। पुरानी सोच वाले लोग अब भी इसे साजिश और एक दूसरे से काट देने का षडयंत्र मानते हों, लेकिन शायद 21वीं सदी का भारत यही है। और अब 2021 में तो देखिए और क्या क्या नया होता है। 2020 ने जो ज़मीन तैयार की है, उसकी फसल 2021 में लहलहाएगी और आप एक नई अनोखी दुनिया को आकार लेते देखेंगे। तो नई उम्मीदों के साथ स
Read Moreमंगलेश डबराल ने कभी हार नहीं मानी। रचनाकर्म और अपनी जीवनशैली में पूरी ईमानदारी के साथ आखिरी वक्त तक डटे रहे। उनकी कविताएं उनके जीवन के इर्द गिर्द रही हैं जहां पहाड़ भी है और समतल ज़मीन भी, गांव का मुश्किल जीवन भी है और शहरों- महानगरों की आपाधापी भी। रिश्तों की बारीकियां भी हैं, बदलती हुई सामाजिक व्यवस्थाओं और सत्ता के अधिनायकवाद के चेहरे भी हैं। एक अकेलापन और कहीं कुछ छूट जाने का एह
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