अखबारों में और मुख्य धारा की मीडिया में संस्कृति और सांस्कृतिक गतिविधियों को कभी कभार जगह मिलती है। कई बार कवरेज बहुत अच्छा भी होता है और नए नए प्रयोग भी होते हैं। दूर दराज़ के अखबारों में भी ऐसी कई रिपोर्ट छपती है जो कहीं गुम हो जाती है। कई अच्छे और ज्ञानवर्धक इंटरव्यू छपते हैं और नई प्रतिभाओं को भी थोड़ी बहुत जगह मिल जाती है। इस हिस्से में हमारी कोशिश मीडिया में होने वाली कुछ खास सांस्कृतिक कवरेज को साभार शामिल करने की है।


मीडिया और संस्कृति
जब गिरीश कर्नाड ने सुनाई अपनी मां की दास्तान…
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June 10, 2019

अमर उजाला ने गिरीश कर्नाड को बेहद सम्मान दिया। उन्हें अपने सर्वोच्च शब्द सम्मान आकाश दीप से सम्मानित किया। उसी दौरान गिरीश कर्नाड ने अपने दिल की बहुत सी बातें अमर उजाला से साझा कीं। इनमें से कुछ को अमर उजाला काव्य ने छापा। वहीं से आभार के साथ हम गिरीश जी की वो बातें आपके साथ साझा कर रहे हैं जिससे उनकी यात्रा के कई पड़ावों के बारे में उन्हीं की जुबानी पता चलता है।

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समाज के ही रंग दिखाती हैं फिल्में – प्रसून जोशी
7 Rang
August 20, 2018

अमर उजाला के सलाहकार संपादक उदय कुमार इन दिनों पोर्ट लुई  में चल रहे  11वें विश्व हिन्दी सम्मेलन में हिस्सा लेने  मॉरीशस में हैं। अमर उजाला और अमर उजाला डॉट कॉम पर उदय जी वहां के सत्रों के कई पहलुओं पर लिख रहे हैं। हिन्दी फिल्मों का भारतीय संस्कृति से कितना गहरा नाता है ये बताने की कोशिश की प्रसून जोशी ने। उदय कुमार की ये रिपोर्ट हम अमर उजाला से साभार '7 रंग 'के पाठकों के लिए  पेश कर रहे ह

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अतीत का आइना
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August 11, 2018

बदलते वक्त और विकास की अंधी दौड़ के साथ तमाम शहर बदल गए। हमारे गाज़ियाबाद की शक्ल-ओ-सूरत भी बदल गई। संस्कार से लेकर संस्कृति तक और विरासत से लेकर राजनीति तक.. आज़ादी के बाद से अबतक कैसे कैसे बदला ये शहर, क्या है इसकी कहानी, कैसी थी इसकी रवायत... हमारे शहर के ऐसे तमाम बुजुर्ग इस बदलाव के गवाह हैं, जिन्होंने गाजियाबाद को पल पल महसूस किया और जिया। ‘अमर उजाला’ ऐसे तमाम आदरणीय बुजुर्गों की या

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अखबारों में केदार जी की याद…
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March 21, 2018

केदार जी का जाना बेशक मीडिया की तमाम खबरों की तरह न रहा हो, सियासत और बयानबाजियों से भरे अखबार और चैनल बेशक साहित्य, संस्कृति और कला के लिए जगह न निकाल पाते हों और केदार नाथ सिंह का नाम बेशक आज के युवा पत्रकार और मीडियाकर्मी न जानते हों, लेकिन अब भी एक पीढ़ी है जो इस परंपरा को निभा रही है। अब भी कुछ अखबार हैं जहां साहित्य और संस्कृति को समझने वाले संवेदनशील लोग बचे हुए हैं। कुछ अखबारों न

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मीडिया और सोशल मीडिया पर अप्पा को नमन…
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October 25, 2017

तमाम अखबार, सोशल मीडिया और टेलीविज़न चैनल ठुमरी साम्राज्ञी और बनारस घराने की अभूतपूर्व शख्सियत गिरिजा देवी को अपने अपने तरीके से श्रद्धांजलि दे रहे हैं... हर कोई इस महान गायिका की तमाम यादों और मन में बस जाने की उनकी गायन शैली के बारे में अपनी भावनाएं अभिव्यक्त कर रहा है... सोशल मीडिया के कुछ साथियों की पोस्ट हम आपको पढ़वाते हैं.. साथ ही अमर उजाला का वो शानदार पेज भी आपके लिए लाए हैं जो

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अपने संस्कार और संस्कृति को कभी मत छोड़िए – गिरिजा देवी
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October 25, 2017

आज पैसा कमाना लोगों की जरूरत है, लेकिन बस यह समझिए कि जैसे आप रोज-रोज बर्गर खाकर जिंदा नहीं रह सकते, क्योंकि जिंदा रहने के लिए चावल-दाल खाना पड़ता है, जिसे खाकर हम पले-बढ़े हैं। वैसे ही, भले ही आज हजार जगहों के साहित्य आ गए हों, हजार जगहों के संगीत आ गए हों, लेकिन हमें अपनी संस्कृति नहीं छोड़नी चाहिए। उनकी अच्छी चीजें ले लीजिए, लेकिन अपने संस्कार, अपनी संस्कृति को कभी मत छोडि़ए।

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ये ‘स्वच्छता अभियान’ सफ़ाई है या सफ़ाया…
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October 23, 2017

अमर उजाला  की अनोखी साहित्यिक पहल ‘बैठक’ की  ‘जुगलबंदी‘ इस बार नामवर सिंह और हिन्दी के विद्वान लेखक और शिक्षाविद् विश्वनाथ त्रिपाठी के बीच हुई। नामवर सिंह और विश्वनाथ त्रिपाठी ने अमर उजाला टीम के साथ अपने ढेर सारे अनुभव बांटे, आलोचकों की परंपरा को अपने अपने नज़रिये से देखा, वामपंथ के साथ साथ दक्षिणपंथ के मौजूदा स्वरूप पर चर्चा की, लेखकों के सम्मान वापसी पर राय जाहिर की।

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‘अमर उजाला’ की साहित्यिक पहल ‘बैठक’
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October 1, 2017

मीडिया से लगभग गायब हो चुके साहित्य और साहित्यकारों को अगर कोई हिन्दी अखबार मंच दे और आज के दौर में पत्रकारिता की नई परिभाषा गढ़े तो बेशक इसके लिए वह बधाई का पात्र है। उत्तर भारत के सबसे विश्वसनीय अखबार ‘अमर उजाला’ ने ऐसी ही पहल की है।

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