आनंद स्वरूप वर्मा बेशक अस्सी बरस के हो गए हों, लेकिन उनके भीतर का जुझारू पत्रकार, लेखक और जनांदोलनों के प्रति उनका समर्पित एक्टिविज्म अब भी किसी उत्साही युवा की तरह बरकरार है। वो लगातार लिखते हैं, अनुवाद करते हैं, आज के तमाम जरूरी सवालों पर उसी शिद्दत के साथ बोलते हैं, साथ ही एक जनपक्षधर पत्रकारिता को जिंदा रखने की कोशिश करते हैं।