गाजियाबाद में 'कथा रंग' की ओर से आयोजित कथा संवाद में सुनी गई कहानियों पर विमर्श के दौरान सुप्रसिद्ध रचनाकार व कार्यक्रम अध्यक्ष योगेंद्र दत्त शर्मा ने कहा कि मशीनीकरण के इस दौर में संवेदना का क्षरण हो रहा है। इस क्षरण की वजह से समाज में संवेदनशीलता का लोप होता जा रहा है। साहित्य मनुष्य में संवेदना उत्पन्न करता है। उन्होंने कहा कि यह सुखद स्थिति है कि एनसीआर में कहानी लिखने का एक ऐ
परंपरा और सिद्धांत के दायरे से मुक्त लेखन ही कालजई लेखन को जन्म देता है। 'कथा रंग' के 'कथा संवाद' को संबोधित करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार एवं कार्यक्रम अध्यक्ष रवि कुमार सिंह ने कहा कि हर दौर में लेखकों पर अपने परिवेश का दबाव रहता है। लेकिन खास विचारधारा से प्रभावित लेखन न तो अधिक समय तक विमर्श में रहता हैं और न ही इतिहास में जगह बना पाता है। उन्होंने कहा कि रचनाकार को सिद्धांत व परंपरा
'कथा रंग' की ओर से आयोजित कहानी महोत्सव और अलंकरण समारोह के दौरान बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमियों ने इसमें हिस्सा लिया और यह आयोजन एक भव्य 'लिटरेरी फेस्टिवल' के रूप में तब्दील हो गया। दूसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुए जाने माने लेखक अब्दुल बिस्मिल्लाह ने कहा कि जब सदी बदलती है तो कई बदलाव लाती है। वहीं अंतिम सत्र की मुख्य अतिथि मैत्रेयी पुष्पा ने कहा कि ऐसे समारोह नए रचनाकारों को स
गाजियाबाद में साहित्य सृजन को लगातार एक गंभीर और सार्थक मंच देने की परंपरा शुरु करने वाली संस्था मीडिया 360 लिटरेरी फाउंडेशन का कथा संवाद निरंतर अपने मिशन में लगा है। पिछले पांच सालों से लगातार हर महीने कथा संवाद के जरिये तमाम नए रचनाकारों को मंच देने और कथाकारों की एक नई पीढ़ी को समृद्ध करने में लगी इस संस्था ने इस साल का आखिरी कथा संवाद 25 दिसंबर को गाजियाबाद में आयोजित किया। कथा सं
जाने माने रचनाकार सुरेश उनियाल का मानना है कि "कथा संवाद" में हो रहा विमर्श इस आयोजन को साहित्य संसद का स्वरूप प्रदान कर रहा है। कथा संवाद के जरिए कहानी की वाचिक परंपरा समृद्ध हो रही है। 20 नवंबर को कथा सवाद की ताजा कड़ी की अध्यक्षता करते हुए सुरेश उनियाल ने कहा कि यह आम मान्यता है कि प्रकाशित हो कर ही लेखक और लेखन लोकप्रिय होता है। जबकि रामचरित मानस को वाचिक परंपरा ने ही लोक में स्थापि
‘बदलते वक्त के साथ कहानियों का संसार बदला है, उन्हें पढ़ने के तौर तरीके भी बदले हैं। अब वो दौर नहीं है कि कहानियां या उपन्यास सोने से पहले नींद की गोली की तरह इस्तेमाल किए जाते थे... दो चार पेज पढ़ा, नींद आ गई फिर किताब किनारे रख दी। अब इंटरनेट पर तमाम प्लेटफॉर्म्स हैं, सोशल मीडिया है, जहां आप जब चाहें, पढ़ सकते हैं। इसलिए लिखते वक्त हमेशा इस बात का ध्यान रखना ज़रूरी है कि हम लिख किसके लिए
साहित्य देश और समाज की तस्वीर हमारे सामने लाने का शाश्वत जरिया है। कलमकार के रूप में हमारी जिम्मेदारी है कि हम देश में पनप रही विद्रूपताओं और विसंगतियों को देखें, समझें और इस बात का आकलन करें कि इनके निस्तारण में एक कलमकार भूमिका कैसे निभाए। मीडिया 360 लिट्रेरी फाउंडेशन के "कथा संवाद" को संबोधित करते हुए कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ. अशोक मैत्रेय ने उक्त उद्गार प्रकट किए। डॉ. मैत्रेय ने कहा