इस मुश्किल दौर में भी कथा संवाद जैसे साहित्यिक आयोजन उम्मीद जगाते हैं

‘बदलते वक्त के साथ कहानियों का संसार बदला है, उन्हें पढ़ने के तौर तरीके भी बदले हैं। अब वो दौर नहीं है कि कहानियां या उपन्यास सोने से पहले नींद की गोली की तरह इस्तेमाल किए जाते थे… दो चार पेज पढ़ा, नींद आ गई फिर किताब किनारे रख दी। अब इंटरनेट पर तमाम प्लेटफॉर्म्स हैं, सोशल मीडिया है, जहां आप जब चाहें, पढ़ सकते हैं। इसलिए लिखते वक्त हमेशा इस बात का ध्यान रखना ज़रूरी है कि हम लिख किसके लिए रहे हैं।‘

जानी मानी लेखिका ममता कालिया ने ये अहम बात कही ग़ाजियाबाद में हुए मीडिया 360 लिट्ररी फाउंडेशन के कथा संवाद कार्यक्रम में। ममता कालिया नए कहानीकारों के लिए एक प्रेरणा की तरह आईं और कथा संवाद में पढ़ी गई हर कहानी पर उन्होंने अपनी टिप्पणियां बेहद संजीदा तरीके से दीं। कुछ नवोदित रचनाकारों ने पहली बार कहानी का प्लॉट बुनने की कोशिश की, कुछ ने कहानी के नए शिल्प प्रयोग किए, लेकिन ममता जी ने किसी को निराश नहीं किया और उस रचनाकार की भावनाएं और कहने के अंदाज़ को समझते औऱ महसूस करते हुए उसपर अपनी बात रखी।

एक नई रचनाकार गार्गी कौशिक ने देर रात बस में अकेले सफ़र के दौरान मन में उठने वाली असुरक्षा की भावना और डर को बताने की कोशिश की और उसे एक सकारात्मक संदेश के साथ खत्म किया कि हम जैसा सोचते हैं, सबकुछ वैसा ही नहीं होता, अच्छे लोग भी हैं जो हमारी सुरक्षा और सम्मान का ध्यान रखते हैं। इसपर ममता जी ने भी अपना ऐसा ही एक अनुभव साझा किया।

युवा कथाकार सिनीवाली शर्मा ने अपनी कहानी में आज के दौर में रिश्तों और संवेदनाओं को बहुत बारीकी से महसूस किया और बेहद खूबसूरती से कई बिंबों का इस्तेमाल करते हुए ये सोचने को मजबूर कर दिया कि कैसे व्यावसायिकता और पेशेगत महत्वाकांक्षाओं की दौड़ में गांव-घर, रिश्ते नाते और यहां तक की संवेदनाएं तक छूट जाती हैं। इसमें मां का वो दर्द भी बहुत खूबसूरती के साथ सामने आया है जहां आखिरी सांस तक एक उम्मीद है, कुछ बहुत खूबसूरत यादों के लम्हे हैं जो भीतर कहीं रचे बसे हैं।

ये कहानी ममता जी के पहुंचने से कुछ पहले पढ़ी गई और इसपर प्रतिक्रिया देने के लिए उस वक्त मौजूद थे अभिनेता रघुबीर यादव। जाहिर है रघुबीर यादव ने कहानी को बहुत गहराई से सुना और अपने वक्तव्य में एक कहानीकार की अहमियत का जिक्र किया। ज्यादा से ज्यादा पढ़ने और सीखने की बात की और बतौर अभिनेता अपने कुछ अनुभव सुनाए। यह भी कहा कि इस कार्यक्रम में आकर उन्हें लखनऊ के उन दिनों की याद आ गई जब तमाम रंगकर्मी, साहित्यकार और लेखक एक साथ मिलते बैठते और रचनात्मक चर्चाएं करते थे। हिन्दी फिल्मकारों की विदेशों से नकल करने और अपनी मौलिकता से दूर रहने पर भी रघुबीर यादव ने टिप्पणी की और व्यावसायिक सिनेमा के प्रति अपना नज़रिया बताया। रघुबीर यादव और जाने माने शायर गोविंद गुलशन ने डॉ भावना कुअंर के नए तांका (जापानी कविता शिल्प का एक रूप) संग्रह ‘यादों का गांव’ का लोकार्पण किया और डॉ कुअंर बेचैन को याद करते हुए उनकी पुत्रवधु के साहित्यिक रूझान की तारीफ की और कहा कि डॉ कुअंर बेचैन की ये परंपरा उनके बेटे प्रगीत और वधू आगे बढ़ा रहे हैं।

रघुबीर यादव अपनी व्यस्तता की वजह से जल्दी चले गए और जानी मानी कथाकार ममता कालिया उसी वक्त पहुंच सकीं। पहले से तय कार्यक्रम के मुताबिक ममता जी ने अध्य़क्षता का ज़िम्मा संभाला, साथ ही कथा संवाद में पढ़ी गई सभी कहानियों पर उनकी सारगर्भित टिप्पणियों ने साहित्यप्रेमियों को बहुत कुछ सीखने का मौका दिया। मनु लक्ष्मी मिश्रा हों या डॉ बीना शर्मा, दोनों की कहानियों ने मन को छुआ। रविद्रकांत त्यागी ने पत्रों और डायरी के पन्नों की शैली में एक जटिल कहानी बुनने की कोशिश की तो सुभाष अखिल ने किन्नर विमर्श पर अपने चर्चित उपन्यास दरमियाना का एक हिस्सा सुनाया। जबकि शिवराज सिंह ने अपनी नई कहानी के प्लॉट में ऑर्गेनिक खेती को लेकर एक नया विषय उठाने की कोशिश की।

ममता कालिया ने कहा कि कथा संवाद में पढ़ी गई कहानियां रिश्तों को नई गर्माहट दे रही हैं। कोविड काल में मानवीय रिश्ते हाशिए पर चले गए थे जिन्हें बचाने के लिए रिश्तों का नए सिरे से बुना जाना जरूरी है। उन्होंने उभरते हुए साहित्यकारों से कहा कि पाठकों की पसंद के लिहाज से रचनाएं रची जाएं तो ज्यादा असरदार होंगी।

गाजियाबाद में पिछले पांच सालों से जारी कथा संवाद का ये सिलसिला पत्रकार, कथाकार और कवि आलोक यात्री की कोशिशों की बदौलत बदस्तूर जारी है और इस सफर में शहर ही नहीं प्रदेश और देश के तमाम जाने माने साहित्यकार, कथाकार और हस्तियां जुड़ी हैं। आलोक यात्री की पहल पर कविताओं पर भी लगातार कार्यक्रम होते रहे हैं और पिछले कुछ महीनों से महफिल-ए-बारादरी के नाम से होने वाले आयोजनों में तमाम कवि, शायर और गीतकारों की बड़ी संख्या में भागीदारी होती रही है। इन आयोजनों में एक बड़ी भूमिका सिल्वरलाइन प्रेस्टीज स्कूल की संचालिका और कवि-गीतकार डॉ माला कपूर की रहती आई है। डॉ माला कपूर ने साहित्य और संस्कृति की इस परंपरा को लगातार समृद्ध किया है और अपने स्कूल में भी नई पीढ़ी के भीतर इन आयोजनों के जरिए संवेदनशीलता और सृजनशीलता का संस्कार विकसित कर रही हैं। इन कार्यक्रमों में सुभाष चंदर, सुभाष अखिल, शिवराज सिंह, गोविंद गुलशन, अक्षयवर नाथ श्रीवास्तव, रिंकल शर्मा, अशोक वासुदेव, तिलक राज अरोड़ा, पराग कौशिक, बीएल बतरा, वागीश शर्मा समेत शहर के तमाम लेखकों, कवियों, साहित्यकारों की अच्छी उपस्थिति ये बताती है कि एक स्वस्थ और रचनात्मक साहित्यिक माहौल बरकरार है।

 

 

 

Posted Date:

December 20, 2021

9:39 pm Tags: , , , , , , , ,
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