आज के दौर में जामिनी रॉय जैसे कलाकार क्यों याद आते हैं? क्या बदलते दौर में, विकास की अंधी दौड़ में और 21वीं सदी की तथाकथित आधुनिकतावाद में उनके चित्रों के पात्र ज्यादा ज़रूरी लगते हैं? क्या उनके पात्रों में रची बसी गांवों की खुशबू, संस्कृतियों और परंपराओं की जीवंतता और हमारे मूल्यों की तलाश पूरी होती है? दरअसल जामिनी राय का कालखंड तब का है जब देश तथाकथित तौर पर इतना विकसित नहीं हुआ था।
इस बार न तो अमोल पालेकर थे और न ही चुनावी मौसम का आतंक। न कोई विवाद और न ही कोई रोक टोक। जाने माने कलाकार प्रभाकर बर्वे के कामकाज को मुंबई के बाद अब दिल्ली में लोग नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट की कला दीर्घा में 28 जुलाई तक आराम से देख सकते हैं। इसी साल फरवरी में मुंबई में आयोजित इस प्रदर्शनी की चर्चा कम और अमोल पालेकर को बोलने से रोकने की चर्चा ज्यादा हुई थी। हालत ये हुई कि प्रभाकर बर्वे के
क्या आपने बावनबूटी साड़ियों के बारे में सुना है? क्या आपको उपेन्द्र महारथी के बारे में पता है? क्या आपको पता है कि किस कलाकार ने गांधी जी के साथ साथ गौतम बुद्ध के शांति और अहिंसा के संदेश को अपने तमाम कला रूपों में कैसे कैसे उतारा या कलिंग की संस्कृति के साथ बंगाल के पुनर्जागरण आंदोलन के नायकों की कथाओं को रंगों और शिल्प की बेहतरीन दुनिया में कैसे आकार दिया? दरअसल हम बात कर रहे हैं उपे